भिखारी / उत्पल बैनर्जी

वहाँ डबडबाती आँखों में उम्मीद का बियाबान था किसी विलुप्त होते धीरज की तरह थरथरा रही थी कातर तरलता दूर तक अव्यक्त पीड़ा का संसार बदलते दृश्य-सा फैलता जा रहा था गहरे अविश्वास और धूसर भरोसे में बुदबुदाते होंठ पता नहीं प्रार्थना या कि अभिशाप में काँप रहे थे! ऐश्वर्य को भेदती स्याह खोखल आँखों… Continue reading भिखारी / उत्पल बैनर्जी

हमें दंगों पर कविता लिखनी है / उत्पल बैनर्जी

जब नींद के निचाट अँधेरे में सेंध लगा रहे थे सपने और बच्चों की हँसी से गुदगुदा उठी थी मन की देह, हम जाने किन षड़यंत्रों की ओट में बैठे मंत्रणा करते रहे! व्यंजना के लुब्ध पथ पर क्रियापदों के झुण्ड और धूल भरे रूपकों से बचते जब उभर रहे थे दीप्त विचार तब हम… Continue reading हमें दंगों पर कविता लिखनी है / उत्पल बैनर्जी

इक्कीसवीं सदी की सुबह / उत्पल बैनर्जी

कालचक्र में फँसी पृथ्वी तब भी रहेगी वैसी की वैसी अपने ध्रुवों और अक्षांशों पर वैसी ही अवसन्न और आक्रान्त! धूसर गलियाँ अहिंसा सिखाते हत्यारे असीम कमीनेपन के साथ मुस्कराते निर्लज्ज भद्रजन, असमय की धूप और अंधड़… कुछ भी नहीं बदलेगा! किसी चमत्कार की तरह नहीं आएंगे देवदूत अकस्मात हम नहीं पहुँच सकेंगे किसी स्वर्णिम… Continue reading इक्कीसवीं सदी की सुबह / उत्पल बैनर्जी

बहुत दिनों तक / उत्पल बैनर्जी

जब निराशा का अंधेरा घिरने लगेगा और उग आएंगे दुखों के अभेद्य बीहड़ ऐसे में जब तुम्हारी करुणा का बादल ढँक लेना चाहेगा मुझे शीतल आँचल की तरह मैं लौटा दूंगा उसे कि मुझे सह लेने दो जो तुमने अब तक सहा है! उम्र की दहलीज़ पर जब थमने लगेगा साँसों का ज्वार जीवन के… Continue reading बहुत दिनों तक / उत्पल बैनर्जी

प्रतीक्षा / उत्पल बैनर्जी

मैं भेजूंगा उसकी ओर प्रार्थना की तरह शुभेच्छाएँ, किसी प्राचीन स्मृति की प्राचीर से पुकारूंगा उसे जिसकी हमें अब कोई ख़बर नहीं, अपनी अखण्ड पीड़ा से चुनकर कुछ शब्द और कविताएँ बहा दूंगा वर्षा की भीगती हवाओं में जिसे अजाने देश की किसी अलक्ष्य खिड़की पर बैठा कोई प्रेमी पक्षी गाएगा, मैं सहेज कर रखूंगा… Continue reading प्रतीक्षा / उत्पल बैनर्जी