प्रतीक्षा / उत्पल बैनर्जी

मैं भेजूंगा उसकी ओर
प्रार्थना की तरह शुभेच्छाएँ,
किसी प्राचीन स्मृति की प्राचीर से
पुकारूंगा उसे
जिसकी हमें अब कोई ख़बर नहीं,
अपनी अखण्ड पीड़ा से चुनकर
कुछ शब्द और कविताएँ
बहा दूंगा
वर्षा की भीगती हवाओं में
जिसे अजाने देश की किसी अलक्ष्य खिड़की पर बैठा
कोई प्रेमी पक्षी गाएगा,
मैं सहेज कर रखूंगा उन क्षणों को
जब आखि़री बार
अपनी समूची अस्ति से उसने छुआ था मुझे
और धूप के सरोद पर गुनगुना उठा था
हमारा प्रेम,
बार-बार भूलने की कोशिश में
कुछ और अधिक याद करूंगा उसे
छुपाते-छुपाते छलक ही आएंगे आँसू
हर बार दूर जाते-जाते लौट आऊंगा वहीं
जहाँ उसके होने का अहसास
अकस्मात विलीन हो गया था
किसी अधूरे सपने की तरह।

मैं हमेशा की तरह
उसके लिए लेकर आऊंगा
एक कप चाय और थोड़े-से बिस्कुट
और प्रतीक्षा करूंगा उन चिट्ठियों की
जो नहीं आएंगी कभी!!

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