बहुत दिनों तक हुई परीक्षा अब रूखा व्यवहार न हो। अजी, बोल तो लिया करो तुम चाहे मुझ पर प्यार न हो॥ जरा जरा सी बातों पर मत रूठो मेरे अभिमानी। लो प्रसन्न हो जाओ गलती मैंने अपनी सब मानी॥ मैं भूलों की भरी पिटारी और दया के तुम आगार। सदा दिखाई दो तुम हँसते… Continue reading प्रियतम से / सुभद्राकुमारी चौहान
Category: Subhadra Kumari Chauhan
चिंता / सुभद्राकुमारी चौहान
लगे आने, हृदय धन से कहा मैंने कि मत आओ। कहीं हो प्रेम में पागल न पथ में ही मचल जाओ॥ कठिन है मार्ग, मुझको मंजिलें वे पार करनीं हैं। उमंगों की तरंगें बढ़ पड़ें शायद फिसल जाओ॥ तुम्हें कुछ चोट आ जाए कहीं लाचार लौटूँ मैं। हठीले प्यार से व्रत-भंग की घड़ियाँ निकट लाओ॥
समर्पण / सुभद्राकुमारी चौहान
सूखी सी अधखिली कली है परिमल नहीं, पराग नहीं। किंतु कुटिल भौंरों के चुंबन का है इन पर दाग नहीं॥ तेरी अतुल कृपा का बदला नहीं चुकाने आई हूँ। केवल पूजा में ये कलियाँ भक्ति-भाव से लाई हूँ॥ प्रणय-जल्पना चिन्त्य-कल्पना मधुर वासनाएं प्यारी। मृदु-अभिलाषा, विजयी आशा सजा रहीं थीं फुलवारी॥ किंतु गर्व का झोंका आया… Continue reading समर्पण / सुभद्राकुमारी चौहान
भ्रम / सुभद्राकुमारी चौहान
देवता थे वे, हुए दर्शन, अलौकिक रूप था। देवता थे, मधुर सम्मोहन स्वरूप अनूप था॥ देवता थे, देखते ही बन गई थी भक्त मैं। हो गई उस रूपलीला पर अटल आसक्त मैं॥ देर क्या थी? यह मनोमंदिर यहाँ तैयार था। वे पधारे, यह अखिल जीवन बना त्यौहार था॥ झाँकियों की धूम थी, जगमग हुआ संसार… Continue reading भ्रम / सुभद्राकुमारी चौहान
जीवन-फूल / सुभद्राकुमारी चौहान
मेरे भोले मूर्ख हृदय ने कभी न इस पर किया विचार। विधि ने लिखी भाल पर मेरे सुख की घड़ियाँ दो ही चार॥ छलती रही सदा ही मृगतृष्णा सी आशा मतवाली। सदा लुभाया जीवन साकी ने दिखला रीती प्याली॥ मेरी कलित कामनाओं की ललित लालसाओं की धूल। आँखों के आगे उड़-उड़ करती है व्यथित हृदय… Continue reading जीवन-फूल / सुभद्राकुमारी चौहान
मेरे पथिक / सुभद्राकुमारी चौहान
हठीले मेरे भोले पथिक! किधर जाते हो आकस्मात। अरे क्षण भर रुक जाओ यहाँ, सोच तो लो आगे की बात॥ यहाँ के घात और प्रतिघात, तुम्हारा सरस हृदय सुकुमार। सहेगा कैसे? बोलो पथिक! सदा जिसने पाया है प्यार॥ जहाँ पद-पद पर बाधा खड़ी, निराशा का पहिरे परिधान। लांछना डरवाएगी वहाँ, हाथ में लेकर कठिन कृपाण॥… Continue reading मेरे पथिक / सुभद्राकुमारी चौहान
कलह-कारण / सुभद्राकुमारी चौहान
कड़ी आराधना करके बुलाया था उन्हें मैंने। पदों को पूजने के ही लिए थी साधना मेरी॥ तपस्या नेम व्रत करके रिझाया था उन्हें मैंने। पधारे देव, पूरी हो गई आराधना मेरी॥ उन्हें सहसा निहारा सामने, संकोच हो आया। मुँदीं आँखें सहज ही लाज से नीचे झुकी थी मैं॥ कहूँ क्या प्राणधन से यह हृदय में… Continue reading कलह-कारण / सुभद्राकुमारी चौहान
चलते समय / सुभद्राकुमारी चौहान
तुम मुझे पूछते हो ’जाऊँ’? मैं क्या जवाब दूँ, तुम्हीं कहो! ’जा…’ कहते रुकती है जबान किस मुँह से तुमसे कहूँ ’रहो’!! सेवा करना था जहाँ मुझे कुछ भक्ति-भाव दरसाना था। उन कृपा-कटाक्षों का बदला बलि होकर जहाँ चुकाना था॥ मैं सदा रूठती ही आई, प्रिय! तुम्हें न मैंने पहचाना। वह मान बाण-सा चुभता है,… Continue reading चलते समय / सुभद्राकुमारी चौहान
फूल के प्रति / सुभद्राकुमारी चौहान
डाल पर के मुरझाए फूल! हृदय में मत कर वृथा गुमान। नहीं है सुमन कुंज में अभी इसी से है तेरा सम्मान॥ मधुप जो करते अनुनय विनय बने तेरे चरणों के दास। नई कलियों को खिलती देख नहीं आवेंगे तेरे पास॥ सहेगा कैसे वह अपमान? उठेगी वृथा हृदय में शूल। भुलावा है, मत करना गर्व… Continue reading फूल के प्रति / सुभद्राकुमारी चौहान
मुरझाया फूल / सुभद्राकुमारी चौहान
यह मुरझाया हुआ फूल है, इसका हृदय दुखाना मत। स्वयं बिखरने वाली इसकी पंखड़ियाँ बिखराना मत॥ गुजरो अगर पास से इसके इसे चोट पहुँचाना मत। जीवन की अंतिम घड़ियों में देखो, इसे रुलाना मत॥ अगर हो सके तो ठंडी बूँदें टपका देना प्यारे! जल न जाए संतप्त-हृदय शीतलता ला देना प्यारे!!