नीम / सुभद्राकुमारी चौहान

सब दुखहरन सुखकर परम हे नीम! जब देखूँ तुझे। तुहि जानकर अति लाभकारी हर्ष होता है मुझे॥ ये लहलही पत्तियाँ हरी, शीतल पवन बरसा रहीं। निज मंद मीठी वायु से सब जीव को हरषा रहीं॥ हे नीम! यद्यपि तू कड़ू, नहिं रंच-मात्र मिठास है। उपकार करना दूसरों का, गुण तिहारे पास है॥ नहिं रंच-मात्र सुवास… Continue reading नीम / सुभद्राकुमारी चौहान

इसका रोना / सुभद्राकुमारी चौहान

तुम कहते हो – मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है | मैं कहती हूँ – इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है || सच कहती हूँ, इस रोने की छवि को जरा निहारोगे | बड़ी-बड़ी आँसू की बूँदों पर मुक्तावली वारोगे || 1 || ये नन्हे से होंठ और यह लम्बी-सी सिसकी देखो |… Continue reading इसका रोना / सुभद्राकुमारी चौहान

झाँसी की रानी की समाधि पर / सुभद्राकुमारी चौहान

इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी | जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी || यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की | अंतिम लीलास्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की || यहीं कहीं पर बिखर गई वह, भग्न-विजय-माला-सी | उसके फूल यहाँ संचित हैं, है यह स्मृति… Continue reading झाँसी की रानी की समाधि पर / सुभद्राकुमारी चौहान

मेरा जीवन / सुभद्राकुमारी चौहान

मैंने हँसना सीखा है मैं नहीं जानती रोना; बरसा करता पल-पल पर मेरे जीवन में सोना। मैं अब तक जान न पाई कैसी होती है पीडा; हँस-हँस जीवन में कैसे करती है चिंता क्रिडा। जग है असार सुनती हूँ, मुझको सुख-सार दिखाता; मेरी आँखों के आगे सुख का सागर लहराता। उत्साह, उमंग निरंतर रहते मेरे… Continue reading मेरा जीवन / सुभद्राकुमारी चौहान

नीम / सुभद्राकुमारी चौहान

सब दुखहरन सुखकर परम हे नीम! जब देखूँ तुझे। तुहि जानकर अति लाभकारी हर्ष होता है मुझे॥ ये लहलही पत्तियाँ हरी, शीतल पवन बरसा रहीं। निज मंद मीठी वायु से सब जीव को हरषा रहीं॥ हे नीम! यद्यपि तू कड़ू, नहिं रंच-मात्र मिठास है। उपकार करना दूसरों का, गुण तिहारे पास है॥ नहिं रंच-मात्र सुवास… Continue reading नीम / सुभद्राकुमारी चौहान

झिलमिल तारे / सुभद्राकुमारी चौहान

कर रहे प्रतीक्षा किसकी हैं झिलमिल-झिलमिल तारे? धीमे प्रकाश में कैसे तुम चमक रहे मन मारे।। अपलक आँखों से कह दो किस ओर निहारा करते? किस प्रेयसि पर तुम अपनी मुक्तावलि वारा करते? करते हो अमिट प्रतीक्षा, तुम कभी न विचलित होते। नीरव रजनी अंचल में तुम कभी न छिप कर सोते।। जब निशा प्रिया… Continue reading झिलमिल तारे / सुभद्राकुमारी चौहान

उल्लास / सुभद्राकुमारी चौहान

शैशव के सुन्दर प्रभात का मैंने नव विकास देखा। यौवन की मादक लाली में जीवन का हुलास देखा।। जग-झंझा-झकोर में आशा-लतिका का विलास देखा। आकांक्षा, उत्साह, प्रेम का क्रम-क्रम से प्रकाश देखा।। जीवन में न निराशा मुझको कभी रुलाने को आयी। जग झूठा है यह विरक्ति भी नहीं सिखाने को आयी।। अरिदल की पहिचान कराने… Continue reading उल्लास / सुभद्राकुमारी चौहान

खिलौनेवाला / सुभद्राकुमारी चौहान

वह देखो माँ आज खिलौनेवाला फिर से आया है। कई तरह के सुंदर-सुंदर नए खिलौने लाया है। हरा-हरा तोता पिंजड़े में गेंद एक पैसे वाली छोटी सी मोटर गाड़ी है सर-सर-सर चलने वाली। सीटी भी है कई तरह की कई तरह के सुंदर खेल चाभी भर देने से भक-भक करती चलने वाली रेल। गुड़िया भी… Continue reading खिलौनेवाला / सुभद्राकुमारी चौहान

वीरों का कैसा हो वसंत / सुभद्राकुमारी चौहान

आ रही हिमालय से पुकार है उदधि गरजता बार बार प्राची पश्चिम भू नभ अपार; सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त वीरों का कैसा हो वसंत फूली सरसों ने दिया रंग मधु लेकर आ पहुंचा अनंग वधु वसुधा पुलकित अंग अंग; है वीर देश में किन्तु कंत वीरों का कैसा हो वसंत भर रही कोकिला इधर… Continue reading वीरों का कैसा हो वसंत / सुभद्राकुमारी चौहान

पानी और धूप / सुभद्राकुमारी चौहान

अभी अभी थी धूप, बरसने लगा कहाँ से यह पानी किसने फोड़ घड़े बादल के की है इतनी शैतानी। सूरज ने क्‍यों बंद कर लिया अपने घर का दरवाजा़ उसकी माँ ने भी क्‍या उसको बुला लिया कहकर आजा। ज़ोर-ज़ोर से गरज रहे हैं बादल हैं किसके काका किसको डाँट रहे हैं, किसने कहना नहीं… Continue reading पानी और धूप / सुभद्राकुमारी चौहान