वेदना / सुभद्राकुमारी चौहान

दिन में प्रचंड रवि-किरणें मुझको शीतल कर जातीं। पर मधुर ज्योत्स्ना तेरी, हे शशि! है मुझे जलाती॥ संध्या की सुमधुर बेला, सब विहग नीड़ में आते। मेरी आँखों के जीवन, बरबस मुझसे छिन जाते॥ नीरव निशि की गोदी में, बेसुध जगती जब होती। तारों से तुलना करते, मेरी आँखों के मोती॥ झंझा के उत्पातों सा,… Continue reading वेदना / सुभद्राकुमारी चौहान

मेरा गीत / सुभद्राकुमारी चौहान

जब अंतस्तल रोता है, कैसे कुछ तुम्हें सुनाऊँ? इन टूटे से तारों पर, मैं कौन तराना गाऊँ?? सुन लो संगीत सलोने, मेरे हिय की धड़कन में। कितना मधु-मिश्रित रस है, देखो मेरी तड़पन में॥ यदि एक बार सुन लोगे, तुम मेरा करुण तराना। हे रसिक! सुनोगे कैसे? फिर और किसी का गाना॥ कितना उन्माद भरा… Continue reading मेरा गीत / सुभद्राकुमारी चौहान

पूछो / सुभद्राकुमारी चौहान

विफल प्रयत्न हुए सारे, मैं हारी, निष्ठुरता जीती। अरे न पूछो, कह न सकूँगी, तुमसे मैं अपनी बीती॥ नहीं मानते हो तो जा उन मुकुलित कलियों से पूछो। अथवा विरह विकल घायल सी भ्रमरावलियों से पूछो॥ जो माली के निठुर करों से असमय में दी गईं मरोड़। जिनका जर्जर हृदय विकल है, प्रेमी मधुप-वृंद को… Continue reading पूछो / सुभद्राकुमारी चौहान

आराधना / सुभद्राकुमारी चौहान

जब मैं आँगन में पहुँची, पूजा का थाल सजाए। शिवजी की तरह दिखे वे, बैठे थे ध्यान लगाए॥ जिन चरणों के पूजन को यह हृदय विकल हो जाता। मैं समझ न पाई, वह भी है किसका ध्यान लगाता? मैं सन्मुख ही जा बैठी, कुछ चिंतित सी घबराई। यह किसके आराधक हैं, मन में व्याकुलता छाई॥… Continue reading आराधना / सुभद्राकुमारी चौहान

व्याकुल चाह / सुभद्राकुमारी चौहान

सोया था संयोग उसे किस लिए जगाने आए हो? क्या मेरे अधीर यौवन की प्यास बुझाने आए हो?? रहने दो, रहने दो, फिर से जाग उठेगा वह अनुराग। बूँद-बूँद से बुझ न सकेगी, जगी हुई जीवन की आग॥ झपकी-सी ले रही निराशा के पलनों में व्याकुल चाह। पल-पल विजन डुलाती उस पर अकुलाए प्राणों की… Continue reading व्याकुल चाह / सुभद्राकुमारी चौहान

तुम / सुभद्राकुमारी चौहान

जब तक मैं मैं हूँ, तुम तुम हो, है जीवन में जीवन। कोई नहीं छीन सकता तुमको मुझसे मेरे धन॥ आओ मेरे हृदय-कुंज में निर्भय करो विहार। सदा बंद रखूँगी मैं अपने अंतर का द्वार॥ नहीं लांछना की लपटें प्रिय तुम तक जाने पाएँगीं। पीड़ित करने तुम्हें वेदनाएं न वहाँ आएँगीं॥ अपने उच्छ्वासों से मिश्रित… Continue reading तुम / सुभद्राकुमारी चौहान

उपेक्षा / सुभद्राकुमारी चौहान

इस तरह उपेक्षा मेरी, क्यों करते हो मतवाले! आशा के कितने अंकुर, मैंने हैं उर में पाले॥ विश्वास-वारि से उनको, मैंने है सींच बढ़ाए। निर्मल निकुंज में मन के, रहती हूँ सदा छिपाए॥ मेरी साँसों की लू से कुछ आँच न उनमें आए। मेरे अंतर की ज्वाला उनको न कभी झुलसाए॥ कितने प्रयत्न से उनको,… Continue reading उपेक्षा / सुभद्राकुमारी चौहान

अनोखा दान / सुभद्राकुमारी चौहान

अपने बिखरे भावों का मैं गूँथ अटपटा सा यह हार। चली चढ़ाने उन चरणों पर, अपने हिय का संचित प्यार॥ डर था कहीं उपस्थिति मेरी, उनकी कुछ घड़ियाँ बहुमूल्य नष्ट न कर दे, फिर क्या होगा मेरे इन भावों का मूल्य? संकोचों में डूबी मैं जब पहुँची उनके आँगन में कहीं उपेक्षा करें न मेरी,… Continue reading अनोखा दान / सुभद्राकुमारी चौहान

परिचय / सुभद्राकुमारी चौहान

क्या कहते हो कुछ लिख दूँ मैं ललित-कलित कविताएं। चाहो तो चित्रित कर दूँ जीवन की करुण कथाएं॥ सूना कवि-हृदय पड़ा है, इसमें साहित्य नहीं है। इस लुटे हुए जीवन में, अब तो लालित्य नहीं है॥ मेरे प्राणों का सौदा, करती अंतर की ज्वाला। बेसुध-सी करती जाती, क्षण-क्षण वियोग की हाला॥ नीरस-सा होता जाता, जाने… Continue reading परिचय / सुभद्राकुमारी चौहान

प्रथम दर्शन / सुभद्राकुमारी चौहान

प्रथम जब उनके दर्शन हुए, हठीली आँखें अड़ ही गईं। बिना परिचय के एकाएक हृदय में उलझन पड़ ही गई॥ मूँदने पर भी दोनों नेत्र, खड़े दिखते सम्मुख साकार। पुतलियों में उनकी छवि श्याम मोहिनी, जीवित जड़ ही गई॥ भूल जाने को उनकी याद, किए कितने ही तो उपचार। किंतु उनकी वह मंजुल-मूर्ति छाप-सी दिल… Continue reading प्रथम दर्शन / सुभद्राकुमारी चौहान