खेत को देखना किसी बड़े कलाकार के चित्र को देखने जैसा है विशाल काली पृष्ठभूमि जिस पर हरी धारियाँ मानो सावन में धरती ने ओढ़ा हो लहरिया फलक ही फलक तो है सारा जहान ऊपर नीला उजला विरूप में भी तरह तरह के पैटर्न रचता सूरज तक से छेड़खानी करता फलक है स्याह-सफ़ेद रुकी हुई… Continue reading फलक / ऋतुराज
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कोड / ऋतुराज
भाषा को उलट कर बरतना चाहिए मैं उन्हें नहीं जानता यानी मैं उन्हें बख़ूबी जानता हूं वे बहुत बड़े और महान् लोग हैं यानी वे बहुत ओछे, पिद्दी और निकृष्ट कोटि के हैं कहा कि आपने बहुत प्रासंगिक और सार्थक लेखन किया है यानी यह अत्यन्त अप्रासंगिक और बकवास है आप जैसा प्रतिबद्ध और उदार… Continue reading कोड / ऋतुराज
लौटना / ऋतुराज
जीवन के अंतिम दशक में कोई क्यों नहीं लौटना चाहेगा परिचित लोगों की परिचित धरती पर निराशा और थकान ने कहा जो कुछ इस समय सहजता से उपलब्ध है उसे स्वीकार करो बापू ने एक पोस्टकार्ड लिखा, जमनालालजी को, आश्वस्त करते हुए कि लौटूँगा ज़रूर व्यर्थ नहीं जाएगा तुम्हारा स्नेह, तुम्हारा श्रम पर लौटना कभी-कभी… Continue reading लौटना / ऋतुराज
पाँवों के निशान / ऋतुराज
अदृश्य मनुष्यों के पाँव छपे हैं कँक्रीट की सड़क पर जब सीमेण्ट-रोड़ी डाली होंगी वे नंगे पाँव अपार फुर्ती से दौड़े होंगे यहाँ एक तरफ़ सात-आठ निशान हैं तो उल्टी तरफ़ तीन-चार पता चलता है कि कुछ लोग सबसे पहले चले हैं इस सड़क पर वे आए हैं, गए हैं, मुकम्मिल तौर पर लेकिन जहाँ… Continue reading पाँवों के निशान / ऋतुराज
रास्ता / ऋतुराज
बहुत बरस पहले चलना शुरू किया लेकिन अभी तक घर क्यों नहीं पहुँचा ? शुरू में माँ के सामने या इससे भी पहले उसकी उँगली अपनी नन्ही हथेली में भींचे चलता था लद्द से गिर पड़ता था वैसे हरेक शुरूआत इसी तरह होती है लेकिन तबसे लेकर अब तक यानी सत्तर बरस तक पता नहीं… Continue reading रास्ता / ऋतुराज
ज्ञानीजन / ऋतुराज
ज्ञान के आतंक में मेरे घर का अन्धेरा बाहर निकलने से डरता है ज्ञानीजन हँसते हैं बन्द खिड़कियाँ देखकर उधड़े पलस्तर पर बने अकारण भुतैले चेहरों पर और सीलन से बजबजाती सीढ़ियों की रपटन पर ज्ञान के साथ जिनके पास आई है अकूत सम्पदा और जो कृपण हैं मुझ जैसे दूसरों पर दृष्टिपात करने तक… Continue reading ज्ञानीजन / ऋतुराज
सामान / ऋतुराज
वह ट्रेन में चढ़ गया था उसे उतार लिया गया उसका सामान दूसरे डिब्बे में था वह डिब्बा किसी अनजाने स्टेशन पर कट गया वह शख़्स कहीं और था उसका सामान कहीं और उससे कहा गया घर बैठे उतनी ही मज़दूरी देंगे और पीने को दारू बस, मतदान के दिन पहुँच कर वोट पंजे पर… Continue reading सामान / ऋतुराज
सेवाग्राम / ऋतुराज
कई तरह के समय थे वे लोग सबके दस्तावेज तैयार करने में लगे थे कुछ ही पढ़े जाने थे मेरे समय में दूसरों के समय ने प्राणघातक चीरा लगाया उनकी खबरों ने मारकाट की विवश एक लड़की का समय था जिसमें चीरफाड़ करते रहे खबरनवीस और राजनीतिज्ञ उन राजनीतिज्ञों के समय में होती रहीं परमविशिष्ट… Continue reading सेवाग्राम / ऋतुराज
माँ का दुःख / ऋतुराज
कितना प्रामाणिक था उसका दुःख लड़की को दान में देते वक्त जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो लड़की अभी सयानी नहीं थी अभी इतनी भोली सरल थी कि उसे सुख का आभास होता था लेकिन दुःख बाँचना नहीं आता था पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की माँ ने कहा… Continue reading माँ का दुःख / ऋतुराज
परिसर / ऋतुराज
जंगली फूलों ने लॉन के फूलों से पूछा, बताओ क्या दुःख है क्यों सूखे जा रहे हो दिन प्रतिदिन मरे जा रहे हो!! पीले, लाल, जामुनी, सफेद, नीले पचंरगे फूल बड़ी शान से बिना पानी सड़क के किनारे सूखे में खिल रहे थे हर आते-जाते से बतिया रहे थे डरते नहीं थे सर्र से निकलते… Continue reading परिसर / ऋतुराज