कन्यादान / ऋतुराज

कितना प्रामाणिक था उसका दुख लड़की को दान में देते वक़्त जैसे वही उसकी अंतिम पूंजी हो लड़की अभी सयानी नहीं थी अभी इतनी भोली सरल थी कि उसे सुख का आभास होता था लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की माँ ने कहा… Continue reading कन्यादान / ऋतुराज

लहर / ऋतुराज

द्वार के भीतर द्वार द्वार और द्वार और सबके अंत में एक नन्हीं मछली जिसे हवा की ज़रूरत है प्रत्येक द्वार में अकेलापन भरा है प्रत्येक द्वार में प्रेम का एक चिह्न है जिसे उल्टा पढ़ने पर मछली मछली नहीं रहती है आँख हो जाती है आँख आँख नहीं रहती है आँसू बनकर चल देती… Continue reading लहर / ऋतुराज