दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं / क़तील

दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं लोग अब मुझ को तेरे नाम से पहचानते हैं आईना-दार-ए-मोहब्बत हूँ के अरबाब-ए-वफ़ा अपने ग़म को मेरे अंजाम से पहचानते हैं बादा ओ जाम भी इक वजह-ए-मुलाक़ात सही हम तुझे गर्दिश-ए-अय्याम से पहचानते हैं पौफटे क्यूँ मेरी पलकों पे सजाते हो उन्हें ये सितारे तो मुझे शाम… Continue reading दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं / क़तील

प्यार की राह में ऐसे भी मकाम आते हैं/ क़तील

प्यार की राह में ऐसे भी मक़ाम आते हैं | सिर्फ आंसू जहाँ इन्सान के काम आते हैं || उनकी आँखों से रखे क्या कोई उम्मीद-ए-करम | प्यास मिट जाये तो गर्दिश में वो जाम आते हैं || ज़िन्दगी बन के वो चलते हैं मेरी सांस के साथ | उनको ऐसे भी कई तर्ज़-ए-खराम आते… Continue reading प्यार की राह में ऐसे भी मकाम आते हैं/ क़तील

देखते जाओ मगर कुछ भी / क़तील

देखते जाओ मगर कुछ भी जुबां से न कहो | मसलिहत का ये तकाज़ा है की खामोश रहो || लोग देखंगे तो अफसाना बना डालेंगे| यूँ मेरे दिल में चले आओ के आहट भी न हो|| गुनगुनाती हुई रफ्तार बड़ी नेमत है| तुम चट्टानों से भी फूटो तो नदी बन के बहो|| ग़म कोई भी… Continue reading देखते जाओ मगर कुछ भी / क़तील

किया इश्क था जो / क़तील

किया इश्क था जो बा-इसे रुसवाई बन गया यारो तमाम शहर तमाशाई बन गया बिन माँगे मिल गए मेरी आँखों को रतजगे मैं जब से एक चाँद का शैदाई बन गया देखा जो उसका दस्त-ए-हिनाई करीब से अहसास गूँजती हुई शहनाई बन गया बरहम हुआ था मेरी किसी बात पर कोई वो हादसा ही वजह-ए-शानासाई… Continue reading किया इश्क था जो / क़तील

लिख दिया अपने दर पे किसी ने इस जगह प्यार करना मना है / क़तील

लिख दिया अपने दर पे किसी ने, इस जगह प्यार करना मना है प्यार अगर हो भी जाए किसी को, इसका इज़हार करना मना है उनकी महफ़िल में जब कोई आये, पहले नज़रें वो अपनी झुकाए वो सनम जो खुदा बन गये हैं, उनका दीदार करना मना है जाग उठ्ठेंगे तो आहें भरेंगे, हुस्न वालों… Continue reading लिख दिया अपने दर पे किसी ने इस जगह प्यार करना मना है / क़तील

हर बे-ज़बाँ को शोला नवा कह लिया करो / क़तील

हर बेज़ुबाँ को [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”जिसकी आवाज़ में आग हो”]शोला-नवा[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  कह लिया करो यारो, [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”मौन”]सुकूत[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  ही को [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”आवाज़”]सदा[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  कह लिया करो ख़ुद को फ़रेब दो कि न हो तल्ख़ ज़िन्दगी हर संगदिल को जाने-वफ़ा कह लिया करो गर चाहते हो ख़ुश रहें कुछ [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”विशेष उपासक”]बंदगाने-ख़ास[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] जितने सनम हैं उनको ख़ुदा कह लिया करो… Continue reading हर बे-ज़बाँ को शोला नवा कह लिया करो / क़तील

तीन कहानियाँ / क़तील

कल रात इक रईस की बाँहों में झूमकर, लौटी तो घर किसान की बेटी [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”अत्यन्त दुख के साथ”]ब-सद मलाल[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”क्रोधवश”]ग़ैज़ो-ग़जब[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] से बाप का खूँ खौलने लगा, [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”सम्मुख”]दरपेश[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] आज भी था मगर पेट का सवाल। कल रात इक सड़क पे कोई नर्म-नर्म शै, बेताब मेरे पाँव की ठोकर से हो गई, मैं जा… Continue reading तीन कहानियाँ / क़तील

उफ़ुक़ के उस पार ज़िन्दगी के उदास लम्हे उतार आऊँ / क़तील

[ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”क्षितिज”]उफ़ुक़[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] के उस पार ज़िन्दगी के उदास लम्हे उतार आऊँ अगर मेरा साथ दे सको तुम तो मौत को भी उतार आऊँ कुछ इस तरह जी रहा हूँ जैसे उठाए फिरता हूँ लाश अपनी जो तुम ज़रा-सा भी दो सहारा तो [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”जीवन का बोझ”]बारे-हस्ती[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  उतार आऊँ बदल गये ज़िन्दगी के [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”धुरियाँ”]महवर[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] ,[ithoughts_tooltip_glossary-tooltip… Continue reading उफ़ुक़ के उस पार ज़िन्दगी के उदास लम्हे उतार आऊँ / क़तील

दिल को ग़मे-हयात गवारा है इन दिनों / क़तील

दिल को [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”जीवन का दुख”]ग़म-ए-हयात[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  गवारा है इन दिनों पहले जो दर्द था वही चारा है इन दिनों हर [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”आँसुओं की बाढ़”]सैल-ए-अश्क़[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”संतोष का तट”]साहिल-ए-तस्कीं[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] है आजकल दरिया की मौज-मौज किनारा है इन दिनों यह दिल ज़रा-सा दिल तेरी आँखों में खो गया ज़र्रे को आँधियों का सहारा है इन दिनों शम्मओं… Continue reading दिल को ग़मे-हयात गवारा है इन दिनों / क़तील

पत्थर उसे न जान पिघलता भी देख उसे / क़तील

पत्थर उसे न जान पिघलता भी देख उसे ख़ुद अपने तर्ज़ुबात में जलता देख उसे वो सिर्फ़ जिस्म ही नहीं एहसास भी तो है रातों में चाँद बन के निकलता भी देख उसे वो धडकनों के शोर से भी मुतमइन न था अब चंद आहटों से भी बहलता देख उसे आ ही पड़ा है वक़्त… Continue reading पत्थर उसे न जान पिघलता भी देख उसे / क़तील