शायद किसी भी भाषा के शब्द कोश में अपनी पूरी भयावहता के साथ मौजूद रहने वाला शब्द है भूख जीवन में कई-कई बार पूर्ण विराम की तलाश में कौमाओं के अवरोध नही फलांग पाती भूख। पूरे विस्मय के साथ समय के कंठ में अर्द्धचन्द्राकार झूलती रहती है कभी न उतारे जा सकने वाले गहनों की… Continue reading भूख का अधिनियम-एक / ओम नागर
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मेरे गाँव के स्कूल के बच्चें / ओम नागर
मेरे गाँव के स्कूल के बच्चें नहीं सीख पाते पहली, दूसरी, तीसरी कक्षा तक भी बारहखड़ी, दस तक पहाड़ा जीभ से स्लेट चाटकर मिटाते रहते है दिनभर ‘अ’ से ‘ज्ञ’ तक के तमाम अक्षर । मेरे गाँव के स्कूल के बच्चें अच्छी तरह से बता सकते है बनिये की दुकान पर मिलने वाले जर्दे के… Continue reading मेरे गाँव के स्कूल के बच्चें / ओम नागर
पिता की वर्णमाला / ओम नागर
पिता के लिए काला अक्षर भैंस बराबर। पिता नहीं गए कभी स्कूल जो सीख पाते दुनिया की वर्णमाला पिता ने कभी नहीं किया काली स्लेट पर जोड़-बाकी, गुणा-भाग पिता आज भी नहीं उलझना चाहते किसी भी गणितीय आंकड़े में। किसी भी वर्णमाला का कोई अक्षर कभी घर बैठे परेशान करने नहीं आया पिता को। पिता… Continue reading पिता की वर्णमाला / ओम नागर
तुम्हारा विश्वास / ओम नागर
सतूल की तरह कितनी जल्दी धसक जाता है तुम्हारा विश्वास बनिये की दुकान पर मिलता होता तो कब का धर देता तुम्हारी छाले पड़ी हथेली पे दो मुट्ठी विश्वास। बालू के घरौंदों की तरह पग हटाते ही कण-कण बिखर जाता है, तुम्हारा विश्वास खुद अपने हाथों से आकाश में उछाल देती हो तुम दीवारें, देहरी… Continue reading तुम्हारा विश्वास / ओम नागर
प्रतीक्षा / ओम नागर
सूरज उग के ढल गया अस्त हो गया जाने कितनी बार तवे की तरह तपने लगी धरती जेठ की भरी दुपहरी में भन्नाए बादलों की तरह जिस राह रूठ के चली गयी थीं तुम उसी राह पर मन की रीती छांगल ले आज भी खड़ा हूं मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में।
साथ-साथ / ओम नागर
तुम निश्चय कर लेतीं तो यूं निरूद्देश्य न होता जीवन। ठंूठ के माथे पर फूट आती दो कोंपलें हथेली की रेखाओं से निराली नहीं होती भाग्य की कहानी। तुम विचार लेतीं तो यूं न धसकती चौमासे में भीत घर-आंगनों के मांडणों पे नहीं फिरता पानी पिछली दीवारों पर चित्रित मोरनी नहीं निगलती हीरों का हार।… Continue reading साथ-साथ / ओम नागर
नाप / ओम नागर
बड़े से बड़े दरजी के भी बस में नहीं है प्रेम का सही-सही नाप लेना। क्षणिक होते है प्रेम की काया के दर्शन जो किसी को दिखते हुए भी नहीं दिखता और नहीं सुहाता किसी को फूटी आंख। अपने-अपने फीतों से लेना चाहते है सबके सब अलग-अलग नाप उद्धव बेचारा कितना ही फिर लें ज्ञान… Continue reading नाप / ओम नागर
हिलोर / ओम नागर
ऐसा तो कैसे हो सकता है कि तुम जो भी कहो मान लूं मैं उसे सच कि इस किनारे से उस किनारे तक के बीच नहीं है अब अंजुरी भर पानी । कि बचपन में नदी की रेत से बनाए गए घर-आंगन ढह गए हैं वक्त की मार से कि नदी के पेट में नहीं… Continue reading हिलोर / ओम नागर
थारी ओळ्यूं को मतलब / ओम नागर
थारी ओळ्यूं को मतलब बिसर जाबो खुद कै तांई। जिनगाणी का खेत में दूरै, घणै दूरै तांई हाल बी दीखै छै तूं ऊमरा ओरती भविस का बीज मुट्ठी में ल्यां। थारी-म्हारी आंख्यां में भैंराती जळ भरी बादळ्यां ज्ये बरसै तो तोल पाड़ द्यै छै कै कोई न्हं अब आपण एक दूजा कै ओळै-दोळै लाख जतन… Continue reading थारी ओळ्यूं को मतलब / ओम नागर
प्रेम-पांच / ओम नागर
प्रेम- आंधो होता सतां बी टटोळ ल्ये छै ज्ये सांस की तताई पिछाण ल्ये छै ज्ये प्रीत को असल उणग्यारो।