न सोचा न समझा न सीखा न जाना / मीर तक़ी ‘मीर’

न सोचा न समझा न सीखा न जाना मुझे आ गया ख़ुदबख़ुद दिल लगाना ज़रा देख कर अपना जल्वा दिखाना सिमट कर यहीं आ न जाये ज़माना ज़ुबाँ पर लगी हैं वफ़ाओं कि मुहरें ख़मोशी मेरी कह रही है फ़साना गुलों तक लगायी तो आसाँ है लेकिन है दुशवार काँटों से दामन बचाना करो लाख… Continue reading न सोचा न समझा न सीखा न जाना / मीर तक़ी ‘मीर’

उलटी हो गई सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया / मीर तक़ी ‘मीर’

उलटी हो गई सब तदबीरें[1], कुछ न दवा ने काम किया देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया अह्द-ए-जवानी[2] रो-रो काटा, पीरी[3] में लीं आँखें मूँद यानि रात बहुत थे जागे सुबह हुई आराम किया नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी[4] की चाहते हैं सो आप करें हैं, हमको अबस[5] बदनाम किया… Continue reading उलटी हो गई सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया / मीर तक़ी ‘मीर’

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है / मीर तक़ी ‘मीर’

पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग़ तो सारा जाने है लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश के बाले तक उस को फ़लक चश्म-ए-मै-ओ-ख़ोर की तितली का तारा जाने है आगे उस मुतक़ब्बर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं कब मौजूद् ख़ुदा को वो… Continue reading पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है / मीर तक़ी ‘मीर’

इब्तिदा-ऐ-इश्क है रोता है क्या / मीर तक़ी ‘मीर’

इब्तिदा-ए-इश्क़[1] है रोता है क्या आगे-आगे देखिये होता है क्या क़ाफ़िले में सुबह के इक शोर है यानी ग़ाफ़िल[2] हम चले सोता है क्या सब्ज़[3] होती ही नहीं ये सरज़मीं तुख़्मे-ख़्वाहिश[4] दिल में तू बोता है क्या ये निशान-ऐ-इश्क़ हैं जाते नहीं दाग़ छाती के अबस[5] धोता है क्या ग़ैरते-युसूफ़ है ये वक़्त ऐ अजीज़… Continue reading इब्तिदा-ऐ-इश्क है रोता है क्या / मीर तक़ी ‘मीर’

जो इस शोर से ‘मीर’ रोता रहेगा / मीर तक़ी ‘मीर’

जो इस शोर से ‘मीर’ रोता रहेगा तो हम-साया काहे को सोता रहेगा मैं वो रोनेवाला जहाँ से चला हूँ जिसे अब्र[1] हर साल रोता रहेगा मुझे काम रोने से हरदम है नासेह[2] तू कब तक मेरे मुँह को धोता रहेगा बसे गिरया[3] आंखें तेरी क्या नहीं हैं जहाँ को कहाँ तक डुबोता रहेगा मेरे… Continue reading जो इस शोर से ‘मीर’ रोता रहेगा / मीर तक़ी ‘मीर’

जीते-जी कूचा-ऐ-दिलदार से जाया न गया / मीर तक़ी ‘मीर’

जीते-जी कूचा-ऐ-दिलदार से जाया न गया उस की दीवार का सर से मेरे साया न गया दिल के तईं आतिश-ऐ-हिज्राँ से बचाया न गया घर जला सामने पर हम से बुझाया न गया क्या तुनक हौसला थे दीदा-ओ-दिल अपने आह इक दम राज़ मोहब्बत का छुपाया न गया दिल जो दीदार का क़ायेल की बहोत… Continue reading जीते-जी कूचा-ऐ-दिलदार से जाया न गया / मीर तक़ी ‘मीर’

इधर से अब्र उठकर जो गया है / मीर तक़ी ‘मीर’

इधर से अब्र उठकर जो गया है हमारी ख़ाक पर भी रो गया है मसाइब और थे पर दिल का जाना अजब इक सानीहा सा हो गया है मुकामिर-खाना-ऐ-आफाक वो है के जो आया है याँ कुछ खो गया है सरहाने ‘मीर’ के आहिस्ता बोलो अभी टुक रोते-रोते सो गया है

था मुस्तेआर हुस्न से उसके जो नूर था / मीर तक़ी ‘मीर’

था मुस्तेआर हुस्न से उसके जो नूर था ख़ुर्शीद में भी उस ही का ज़र्रा ज़हूर था[1] हंगामा गर्म कुन[2] जो दिले-नासुबूर[3] था पैदा हर एक नाला-ए-शोरे-नशूर था[4] पहुँचा जो आप को तो मैं पहुँचा खुदा के तईं मालूम अब हुआ कि बहोत मैं भी दूर था आतिश बुलन्द दिल की न थी वर्ना ऐ… Continue reading था मुस्तेआर हुस्न से उसके जो नूर था / मीर तक़ी ‘मीर’

दिल-ऐ-पुर खूँ की इक गुलाबी से/ मीर तक़ी ‘मीर’

दिल-ऐ-पुर खूँ की इक गुलाबी से उम्र भर हम रहे शराबी से दिल दहल जाए है सहर से आह रात गुज़रेगी किस खराबी से खिलना कम कम कली ने सीखा है उस की आंखों की नीम-ख्वाबी से काम थे इश्क में बहुत से ‘मीर’ हम ही फ़ारिग हुए शिताबी से

देख तो दिल कि जाँ से उठता है / मीर तक़ी ‘मीर’

देख तो दिल कि जाँ से उठता है ये धुआं सा कहाँ से उठता है गोर किस दिल-जले की है ये फलक शोला इक सुबह याँ से उठता है खाना-ऐ-दिल से ज़िन्हार न जा कोई ऐसे मकान से उठता है नाला सर खेंचता है जब मेरा शोर एक आसमान से उठता है लड़ती है उस… Continue reading देख तो दिल कि जाँ से उठता है / मीर तक़ी ‘मीर’