मत झनकार जोर से / माखनलाल चतुर्वेदी

मत झनकार जोर से स्वर भर से तू तान समझ ले, नीरस हूँ, तू रस बरसाकर, अपना गान समझ ले। फौलादी तारों से कस ले ’बंधन, मुझ पर बस ले, कभी सिसक ले कभी मुसक ले कभी खीझकर हँस ले, कान खेंच ले, पर न फेंक, गोदी से मुझे उठाकर, कर जालिम अपनी मनमानी पर,… Continue reading मत झनकार जोर से / माखनलाल चतुर्वेदी

दूर न रह, धुन बँधने दे / माखनलाल चतुर्वेदी

दूर न रह, धुन बँधने दे मेरे अन्तर की तान, मन के कान, अरे प्राणों के अनुपम भोले भान। रे कहने, सुनने, गुनने वाले मतवाले यार भाषा, वाक्य, विराम बिन्दु सब कुछ तेरा व्यापार; किन्तु प्रश्न मत बन, सुलझेगा- क्योंकर सुलझाने से? जीवन का कागज कोरा मत रख, तू लिख जाने दे।

हरा हरा कर, हरा / माखनलाल चतुर्वेदी

हरा हरा कर, हरा- हरा कर देने वाले सपने। कैसे कहूँ पराये, कैसे गरब करूँ कह अपने! भुला न देवे यह ’पाना’- अपनेपन का खो जाना, यह खिलना न भुला देवे पंखड़ियों का धो जाना; आँखों में जिस दिन यमुना- की तरुण बाढ़ लेती हूँ पुतली के बन्दी की पलकों नज़र झाड़ लेती हूँ।

कौन? याद की प्याली में / माखनलाल चतुर्वेदी

कौन? याद की प्याली में बिछुड़ना घोलता-सा क्यों है? और हृदय की कसकों में गुप-चुप टटोलता-सा क्यों है? अरे पुराने दुःख-दर्दों की गाँठ खोलता-सा क्यों है? महा प्रलय की वाणी में उन्मत्त बोलता-सा क्यों है? क्या है? है यह पुनः मधुर आमंत्रण जंजीरों का? है तू कौन? खिलाड़ी, प्रेरक मरदानों वीरों का?

सुलझन की उलझन है / माखनलाल चतुर्वेदी

सुलझन की उलझन है, कैसी दीवानी, दीवानी! पुतली पर चढ़कर गिरता गिर कर चढ़ता है पानी! क्या ही तल के पागलपन का मल धोने आई हैं? प्रलयंकर शंकर की गंगा जल होने आई हैं? बूँदे , बरछी की नौकों-सी मुझसे खेल रही है! पलकों पर कितना प्राणों– का ज्वार ढकेल रही है! अब क्या रुम-झुम… Continue reading सुलझन की उलझन है / माखनलाल चतुर्वेदी

नाद की प्यालियों, मोद की ले सुरा / माखनलाल चतुर्वेदी

नाद की प्यालियों, मोद की ले सुरा गीत के तार-तारों उठी छा गई प्राण के बाग में प्रीति की पंखिनी बोल बोली सलोने कि मैं आ गई! नेह दे नाथ क्या नृत्य के रंग में भावना की रवानी लुटाने चले? साँस के पास आ, हास के देस छा, याद को झुलने में झूलाने चले! प्रेम… Continue reading नाद की प्यालियों, मोद की ले सुरा / माखनलाल चतुर्वेदी

चल पडी चुपचाप सन-सन-सन हुआ / माखनलाल चतुर्वेदी

चल पडी चुपचाप सन-सन-सन हुआ, डालियों को यों चिताने-सी लगी आँख की कलियाँ, अरी, खोलो जरा, हिल खपतियों को जगाने-सी लगी पत्तियों की चुटकियाँ झट दीं बजा, डालियाँ कुछ- ढुलमुलाने-सी लगीं, किस परम आनन्द- निधि के चरण पर, विश्व-साँसें गीत गाने-सी लगीं। जग उठा तरु-वृन्द-जग, सुन घोषणा, पंछियों में चहचहाहट मच गई; वायु का झोंका… Continue reading चल पडी चुपचाप सन-सन-सन हुआ / माखनलाल चतुर्वेदी

मन धक-धक की माला गूँथे / माखनलाल चतुर्वेदी

मन धक-धक की माला गूँथे, गूँथे हाथ फूल की माला, जी का रुधिर रंग है इसका इसे न कहो, फूल की माला! पंकज की क्या ताब कि तुम पर– मेरे जी से बढ़ कर फूले, मैं सूली पर झूल उठूँ तब, वह ’बेबस’ पानी पर झूले! तुम रीझो तो रीझो साजन, लख कर पंकज का… Continue reading मन धक-धक की माला गूँथे / माखनलाल चतुर्वेदी

ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा / माखनलाल चतुर्वेदी

ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा मेरी सुरत बावली बोली- उतर न सके प्राण सपनों से, मुझे एक सपने में ले ले। मेरा कौन कसाला झेले? तेर एक-एक सपने पर सौ-सौ जग न्यौछावर राजा। छोड़ा तेरा जगत-बखेड़ा चल उठ, अब सपनों में खेलें? मेरा कौन कसाला झेले? देख, देख, उस ओर `मित्र’ की इस बाजू पंकज… Continue reading ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा / माखनलाल चतुर्वेदी

उस प्रभात, तू बात न माने / माखनलाल चतुर्वेदी

उस प्रभात, तू बात न माने, तोड़ कुन्द कलियाँ ले आई, फिर उनकी पंखड़ियाँ तोड़ीं पर न वहाँ तेरी छवि पाई, कलियों का यम मुझ में धाया तब साजन क्यों दौड़ न आया? फिर पंखड़ियाँ ऊग उठीं वे फूल उठी, मेरे वनमाली! कैसे, कितने हार बनाती फूल उठी जब डाली-डाली! सूत्र, सहारा, ढूँढं न पाया… Continue reading उस प्रभात, तू बात न माने / माखनलाल चतुर्वेदी