सूझ का साथी / माखनलाल चतुर्वेदी

सूझ, का साथी- मोम-दीप मेरा! कितना बेबस है यह जीवन का रस है यह छनछन, पलपल, बलबल छू रहा सवेरा, अपना अस्तित्व भूल सूरज को टेरा- मोम-दीप मेरा! कितना बेबस दीखा इसने मिटना सीखा रक्त-रक्त, बिन्दु-बिन्दु झर रहा प्रकाश सिन्धु कोटि-कोटि बना व्याप्त छोटा सा घेरा! मोम-दीप मेरा! जी से लग, जेब बैठ तम-बल पर… Continue reading सूझ का साथी / माखनलाल चतुर्वेदी

गो-गण सँभाले नहीं जाते मतवाले नाथ / माखनलाल चतुर्वेदी

गो-गण सँभाले नहीं जाते मतवाले नाथ, दुपहर आई वर-छाँह में बिठाओ नेक। वासना-विहंग बृज-वासियों के खेत चुगे, तालियाँ बजाओ आओ मिल के उड़ाओ नेक। दम्भ-दानवों ने कर-कर कूट टोने यह, गोकुल उजाड़ा है, गुपाल जू बसाओ नेक। मन कालीमर्दन हो, मुदित गुवर्धन हो, दर्द भरे उर-मधुपुर में समाओ नेक।

चलो छिया-छी हो अन्तर में / माखनलाल चतुर्वेदी

चलो छिया-छी हो अन्तर में! तुम चन्दा मैं रात सुहागन चमक-चमक उट्ठें आँगन में चलो छिया-छी हो अन्तर में! बिखर-बिखर उट्ठो, मेरे धन, भर काले अन्तस पर कन-कन, श्याम-गौर का अर्थ समझ लें जगत पुतलियाँ शून्य प्रहर में चलो छिया-छी हो अन्तर में! किरनों के भुज, ओ अनगिन कर मेलो, मेरे काले जी पर उमग-उमग… Continue reading चलो छिया-छी हो अन्तर में / माखनलाल चतुर्वेदी

यह किसका मन डोला / माखनलाल चतुर्वेदी

यह किसका मन डोला? मृदुल पुतलियों के उछाल पर, पलकों के हिलते तमाल पर, नि:श्वासों के ज्वाल-जाल पर, कौन लिख रहा व्यथा कथा? किसका धीरज `हाँ’ बोला? किस पर बरस पड़ीं यह घड़ियाँ यह किसका मन डोला? कस्र्णा के उलझे तारों से, विवश बिखरती मनुहारों से, आशा के टूटे द्वारों से- झाँक-झाँककर, तरल शाप में-… Continue reading यह किसका मन डोला / माखनलाल चतुर्वेदी

जागना अपराध / माखनलाल चतुर्वेदी

जागना अपराध! इस विजन-वन गोद में सखि, मुक्ति-बन्धन-मोद में सखि, विष-प्रहार-प्रमोद में सखि, मृदुल भावों स्नेह दावों अश्रु के अगणित अभावों का शिकारी- आ गया विध व्याध; जागना अपराध! बंक वाली, भौंह काली, मौत, यह अमरत्व ढाली, कस्र्ण धन-सी, तरल घन -सी सिसकियों के सघन वन-सी, श्याम-सी, ताजे, कटे-से, खेत-सी असहाय, कौन पूछे? पुस्र्ष या… Continue reading जागना अपराध / माखनलाल चतुर्वेदी

खोने को पाने आये हो / माखनलाल चतुर्वेदी

खोने को पाने आये हो? रूठा यौवन पथिक, दूर तक उसे मनाने आये हो? खोने को पाने आये हो? आशा ने जब अँगड़ाई ली, विश्वास निगोड़ा जाग उठा, मानो पा, प्रात, पपीहे का- जोड़ा प्रिय बन्धन त्याग उठा, मानो यमुना के दोनों तट ले-लेकर यमुना की बाहें- मिलने में असफल कल-कलमें- रोयें ले मधुर मलय… Continue reading खोने को पाने आये हो / माखनलाल चतुर्वेदी

तुम मन्द चलो / माखनलाल चतुर्वेदी

तुम मन्द चलो, ध्वनि के खतरे बिखरे मग में- तुम मन्द चलो। सूझों का पहिन कलेवर-सा, विकलाई का कल जेवर-सा, घुल-घुल आँखों के पानी में- फिर छलक-छलक बन छन्द चलो। पर मन्द चलो। प्रहरी पलकें? चुप, सोने दो! धड़कन रोती है? रोने दो! पुतली के अँधियारे जग में- साजन के मग स्वच्छन्द चलो। पर मन्द… Continue reading तुम मन्द चलो / माखनलाल चतुर्वेदी

जो न बन पाई तुम्हारे / माखनलाल चतुर्वेदी

जो न बन पाई तुम्हारे गीत की कोमल कड़ी। तो मधुर मधुमास का वरदान क्या है? तो अमर अस्तित्व का अभिमान क्या है? तो प्रणय में प्रार्थना का मोह क्यों है? तो प्रलय में पतन से विद्रोह क्यों है? आये, या जाये कहीं— असहाय दर्शन की घड़ी; जो न बन पाई तुम्हारे गीत की कोमल… Continue reading जो न बन पाई तुम्हारे / माखनलाल चतुर्वेदी