नीति के दोहे / कबीर

प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।। जब मैं था तब हरि‍ नहीं, अब हरि‍ हैं मैं नाहिं। प्रेम गली अति साँकरी, तामें दो न समाहिं।। जिन ढूँढा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ। मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।। बुरा जो देखन मैं चला, बुरा… Continue reading नीति के दोहे / कबीर

कबीर के पद / कबीर

1. अरे दिल, प्रेम नगर का अंत न पाया, ज्‍यों आया त्‍यों जावैगा।। सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्‍या क्‍या बीता।। सिर पाहन का बोझा लीता, आगे कौन छुड़ावैगा।। परली पार मेरा मीता खडि़या, उस मिलने का ध्‍यान न धरिया।। टूटी नाव, उपर जो बैठा, गाफिल गोता खावैगा।। दास कबीर कहैं… Continue reading कबीर के पद / कबीर

हमन है इश्क मस्ताना / कबीर

हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ? रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ? जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते, हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ? खलक सब नाम अनपे को, बहुत कर सिर पटकता है, हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से… Continue reading हमन है इश्क मस्ताना / कबीर

कबीर की साखियाँ / कबीर

कस्तूरी कुँडल बसै, मृग ढ़ुढ़े बब माहिँ. ऎसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ.. प्रेम ना बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाय. राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देई लै जाय .. माला फेरत जुग गाया, मिटा ना मन का फेर. कर का मन का छाड़ि, के मन का मनका फेर.. माया मुई न मन… Continue reading कबीर की साखियाँ / कबीर

रहना नहिं देस बिराना है / कबीर

रहना नहिं देस बिराना है। यह संसार कागद की पुडिया, बूँद पडे गलि जाना है। यह संसार काँटे की बाडी, उलझ पुलझ मरि जाना है॥ यह संसार झाड और झाँखर आग लगे बरि जाना है। कहत ‘कबीर सुनो भाई साधो, सतुगरु नाम ठिकाना है॥

मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै / कबीर

मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै। हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार-बार वाको क्यों खोलै। हलकी थी तब चढी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोलै। सुरत कलाली भई मतवाली, मधवा पी गई बिन तोले। हंसा पायो मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोलै। तेरा साहब है घर माँहीं बाहर नैना क्यों खोलै। कहै ‘कबीर सुनो भई साधो, साहब… Continue reading मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै / कबीर

काहे री नलिनी तू कुमिलानी / कबीर

काहे री नलिनी तू कुमिलानी। तेरे ही नालि सरोवर पानी॥ जल में उतपति जल में बास, जल में नलिनी तोर निवास। ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि लागि॥ कहे ‘कबीर जे उदकि समान, ते नहिं मुए हमारे जान।

सहज मिले अविनासी / कबीर

पानी बिच मीन पियासी। मोहि सुनि सुनि आवत हाँसी ।। आतम ग्यान बिना सब सूना, क्या मथुरा क्या कासी । घर में वसत धरीं नहिं सूझै, बाहर खोजन जासी ।। मृग की नाभि माँहि कस्तूरी, बन-बन फिरत उदासी । कहत कबीर, सुनौ भाई साधो, सहज मिले अविनासी ।।

साधो, देखो जग बौराना / कबीर

साधो, देखो जग बौराना । साँची कही तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना । हिन्दू कहत,राम हमारा, मुसलमान रहमाना । आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना । बहुत मिले मोहि नेमी, धर्मी, प्रात करे असनाना । आतम-छाँड़ि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना । आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत… Continue reading साधो, देखो जग बौराना / कबीर

एकै कुँवा पंच पनिहार / कबीर

एकै कुँवा पंच पनिहारी। एकै लेजु भरै नो नारी॥ फटि गया कुँआ विनसि गई बारी। विलग गई पाँचों पनिहारी॥