झीनी झीनी बीनी चदरिया / कबीर

झीनी झीनी बीनी चदरिया ॥ काहे कै ताना काहे कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया ॥ १॥ इडा पिङ्गला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥ २॥ आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥ ३॥ साँ को सियत मास दस लागे, ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥ ४॥ सो… Continue reading झीनी झीनी बीनी चदरिया / कबीर

दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ / कबीर

दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ ॥ पहिला जनम भूत का पै हौ, सात जनम पछिताहौउ। काँटा पर का पानी पैहौ, प्यासन ही मरि जैहौ ॥ १॥ दूजा जनम सुवा का पैहौ, बाग बसेरा लैहौ । टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ ॥ २॥ बाजीगर के बानर होइ हौ, लकडिन नाच नचैहौ । ऊॅंच नीच… Continue reading दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ / कबीर

भजो रे भैया राम गोविंद हरी / कबीर

भजो रे भैया राम गोविंद हरी । राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी ॥ जप तप साधन नहिं कछु लागत, खरचत नहिं गठरी ॥ संतत संपत सुख के कारन, जासे भूल परी ॥ कहत कबीर राम नहीं जा मुख, ता मुख धूल भरी ॥

करम गति टारै नाहिं टरी / कबीर

करम गति टारै नाहिं टरी ॥ मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि । सीता हरन मरन दसरथ को, बनमें बिपति परी ॥ १॥ कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहॅं वह मिरग चरी । कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि ॥ २॥ पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी… Continue reading करम गति टारै नाहिं टरी / कबीर

राम बिनु तन को ताप न जाई / कबीर

राम बिनु तन को ताप न जाई । जल में अगन रही अधिकाई ॥ राम बिनु तन को ताप न जाई ॥ तुम जलनिधि मैं जलकर मीना । जल में रहहि जलहि बिनु जीना ॥ राम बिनु तन को ताप न जाई ॥ तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा । दरसन देहु भाग बड़ मोरा ॥… Continue reading राम बिनु तन को ताप न जाई / कबीर

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार / कबीर

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ॥ साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये । हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं । अंतरयामी एक तुम आतम के आधार । जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार ॥ गुरु बिन कैसे लागे पार ॥ मैं अपराधी जन्म को मन… Continue reading नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार / कबीर

बीत गये दिन भजन बिना रे / कबीर

बीत गये दिन भजन बिना रे । भजन बिना रे, भजन बिना रे ॥ बाल अवस्था खेल गवांयो । जब यौवन तब मान घना रे ॥ लाहे कारण मूल गवाँयो । अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे ॥ कहत कबीर सुनो भई साधो । पार उतर गये संत जना रे ॥

बहुरि नहिं आवना या देस / कबीर

बहुरि नहिं आवना या देस ॥ जो जो गए बहुरि नहि आए, पठवत नाहिं सॅंस ॥ १॥ सुर नर मुनि अरु पीर औलिया, देवी देव गनेस ॥ २॥ धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस ॥ ३॥ जोगी जङ्गम औ संन्यासी, दीगंबर दरवेस ॥ ४॥ चुंडित, मुंडित पंडित लोई, सरग रसातल सेस ॥… Continue reading बहुरि नहिं आवना या देस / कबीर

तेरा मेरा मनुवां / कबीर

तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे । मै कहता हौं आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी । मै कहता सुरझावन हारी, तू राख्यो अरुझाई रे ॥ मै कहता तू जागत रहियो, तू जाता है सोई रे । मै कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे ॥ जुगन-जुगन समझावत हारा, कहा न मानत… Continue reading तेरा मेरा मनुवां / कबीर

मोको कहां / कबीर

मोको कहां ढूढें तू बंदे मैं तो तेरे पास मे । ना मैं बकरी ना मैं भेडी ना मैं छुरी गंडास मे । नही खाल में नही पूंछ में ना हड्डी ना मांस मे ॥ ना मै देवल ना मै मसजिद ना काबे कैलाश मे । ना तो कोनी क्रिया-कर्म मे नही जोग-बैराग मे ॥… Continue reading मोको कहां / कबीर