देखि-देखि जिय अचरज होई / कबीर

देखि-देखि जिय अचरज होई यह पद बूझें बिरला कोई॥ धरती उलटि अकासै जाय, चिउंटी के मुख हस्ति समाय। बिना पवन सो पर्वत उड़े, जीव जन्तु सब वृक्षा चढ़े। सूखे सरवर उठे हिलोरा, बिनु जल चकवा करत किलोरा। बैठा पण्डित पढ़े कुरान, बिन देखे का करत बखान। कहहि कबीर यह पद को जान, सोई सन्त सदा… Continue reading देखि-देखि जिय अचरज होई / कबीर

मँड़ये के चारन समधी दीन्हा / कबीर

मँड़ये के चारन समधी दीन्हा, पुत्र व्यहिल माता॥ दुलहिन लीप चौक बैठारी। निर्भय पद परकासा॥ भाते उलटि बरातिहिं खायो, भली बनी कुशलाता। पाणिग्रहण भयो भौ मुँडन, सुषमनि सुरति समानी, कहहिं कबीर सुनो हो सन्तो, बूझो पण्डित ज्ञानी॥

राजा के जिया डाहें / कबीर

राजा के जिया डाहें, सजन के जिया डाहें ईहे दुलहिनिया बलम के जिया डाहें। चूल्हिया में चाउर डारें हो हँड़िया में गोंइठी चूल्हिया के पछवा लगावतड़ी लवना। ईहे दुलहिनिया … अँखियाँ में सेनुर कइली हो, पिठिया पर टिकुली धइ धई कजरा एँड़िये में पोतें। ईहे दुलहिनिया … सँझवे के सुत्तल भिनहिये के जागें ठीक दुपहरिया… Continue reading राजा के जिया डाहें / कबीर

राम बिनु / कबीर

राम बिनु तन को ताप न जाई। जल में अगन रही अधिकाई॥ राम बिनु तन को ताप न जाई॥ तुम जलनिधि मैं जलकर मीना। जल में रहहि जलहि बिनु जीना॥ राम बिनु तन को ताप न जाई॥ तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा। दरसन देहु भाग बड़ मोरा॥ राम बिनु तन को ताप न जाई॥ तुम… Continue reading राम बिनु / कबीर

तूने रात गँवायी / कबीर

तूने रात गँवायी सोय के, दिवस गँवाया खाय के। हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥ सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे। बाहर का पट बंद कर ले अंतर का पट खोल रे। माला फेरत जुग हुआ, गया ना मन का फेर रे। गया ना मन का फेर रे। हाथ का… Continue reading तूने रात गँवायी / कबीर

नैया पड़ी मंझधार / कबीर

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार॥ साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये। हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं। अंतरयामी एक तुम आतम के आधार। जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार॥ गुरु बिन कैसे लागे पार॥ मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार। तुम दाता दुख… Continue reading नैया पड़ी मंझधार / कबीर

बीत गये दिन / कबीर

बीत गये दिन भजन बिना रे। भजन बिना रे भजन बिना रे॥ बाल अवस्था खेल गँवायो। जब यौवन तब मान घना रे॥ लाहे कारण मूल गँवायो। अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे॥ कहत कबीर सुनो भई साधो। पार उतर गये संत जना रे॥

भजो रे भैया / कबीर

भजो रे भैया राम गोविंद हरी। राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी॥ जप तप साधन नहिं कछु लागत खरचत नहिं गठरी॥ संतत संपत सुख के कारन जासे भूल परी॥ कहत कबीर राम नहीं जा मुख ता मुख धूल भरी॥

मन लाग्यो मेरो यार / कबीर

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥ जो सुख पाऊँ राम भजन में सो सुख नाहिं अमीरी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥ भला बुरा सब का सुनलीजै कर गुजरान गरीबी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥ आखिर यह तन छार मिलेगा कहाँ फिरत मग़रूरी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥ प्रेम नगर… Continue reading मन लाग्यो मेरो यार / कबीर

बहुरि नहिं / कबीर

बहुरि नहिं आवना या देस॥ टेक॥ जो जो ग बहुरि नहि आ पठवत नाहिं सँस॥ १॥ सुर नर मुनि अरु पीर औलिया देवी देव गनेस॥ २॥ धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस॥ ३॥ जोगी जंगम औ संन्यासी दिगंबर दरवेस॥ ४॥ चुंडित मुंडित पंडित लो सरग रसातल सेस॥ ५॥ ज्ञानी गुनी चतुर अरु… Continue reading बहुरि नहिं / कबीर