पतिव्रता का अंग / कबीर

मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर । तेरा तुझकौं सौंपता, क्या लागै है मोर ॥1॥ भावार्थ – मेरे साईं, मुझमें मेरा तो कुछ भी नहीं,जो कुछ भी है, वह सब तेरा ही । तब, तेरी ही वस्तु तुझे सौंपते मेरा क्या लगता है, क्या आपत्ति हो सकती है मुझे ? `कबीर’ रेख… Continue reading पतिव्रता का अंग / कबीर

जर्णा का अंग / कबीर

भारी कहौं तो बहु डरौं, हलका कहूं तौ झूठ । मैं का जाणौं राम कूं, नैनूं कबहूँ न दीठ ॥1॥ भावार्थ – अपने राम को मैं यदि भारी कहता हूँ, तो डर लगता है, इसलिए कि कितना भारी है वह । और, उसे हलका कहता हूँ तो यह झूठ होगा । मैं क्या जानूँ उसे… Continue reading जर्णा का अंग / कबीर

विरह का अंग / कबीर

अंदेसड़ा न भाजिसी, संदेसौ कहियां । कै हरि आयां भाजिसी, कै हरि ही पास गयां ॥1॥ भावार्थ – संदेसा भेजते-भेजते मेरा अंदेशा जाने का नहीं, अन्तर की कसक दूर होने की नहीं, यह कि प्रियतम मिलेगा या नहीं, और कब मिलेगा; हाँ यह अंदेशा दूर हो सकता है दो तरह से – या तो हरि… Continue reading विरह का अंग / कबीर

सुमिरण का अंग / कबीर

भगति भजन हरि नांव है, दूजा दुक्ख अपार । मनसा बाचा क्रमनां, `कबीर’ सुमिरण सार ॥1॥ भावार्थ – हरि का नाम-स्मरण ही भक्ति है और वही भजन सच्चा है ; भक्ति के नाम पर सारी साधनाएं केवल दिखावा है, और अपार दुःख की हेतु भी । पर स्मरण वह होना चाहिए मन से, बचन से… Continue reading सुमिरण का अंग / कबीर

गुरुदेव का अंग / कबीर

राम-नाम कै पटंतरै, देबे कौं कछु नाहिं । क्या ले गुर संतोषिए, हौंस रही मन माहिं ॥1॥ भावार्थ – सद्गुरु ने मुझे राम का नाम पकड़ा दिया है । मेरे पास ऐसा क्या है उस सममोल का, जो गुरु को दूँ ?क्या लेकर सन्तोष करूँ उनका ? मन की अभिलाषा मन में ही रह गयी… Continue reading गुरुदेव का अंग / कबीर

घूँघट के पट / कबीर

घूँघट का पट खोल रे, तोको पीव मिलेंगे। घट-घट मे वह सांई रमता, कटुक वचन मत बोल रे॥ धन जोबन का गरब न कीजै, झूठा पचरंग चोल रे। सुन्न महल मे दियना बारिले, आसन सों मत डोल रे।। जागू जुगुत सों रंगमहल में, पिय पायो अनमोल रे। कह कबीर आनंद भयो है, बाजत अनहद ढोल… Continue reading घूँघट के पट / कबीर

रे दिल गाफिल गफलत मत कर / कबीर

रे दिल गाफिल गफलत मत कर, एक दिना जम आवेगा ॥ सौदा करने या जग आया, पूँजी लाया, मूल गॅंवाया, प्रेमनगर का अन्त न पाया, ज्यों आया त्यों जावेगा ॥ १॥ सुन मेरे साजन, सुन मेरे मीता, या जीवन में क्या क्या कीता, सिर पाहन का बोझा लीता, आगे कौन छुडावेगा ॥ २॥ परलि पार… Continue reading रे दिल गाफिल गफलत मत कर / कबीर

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में / कबीर

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥ जो सुख पाऊँ राम भजन में सो सुख नाहिं अमीरी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥ भला बुरा सब का सुनलीजै कर गुजरान गरीबी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥ आखिर यह तन छार मिलेगा कहाँ फिरत मग़रूरी में मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी… Continue reading मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में / कबीर

तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के / कबीर

तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के । हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय ॥ सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे । बाहर का पट बंद कर ले अंतर का पट खोल रे । माला फेरत जुग हुआ गया ना मन का फेर रे । गया ना मन… Continue reading तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के / कबीर

केहि समुझावौ सब जग अन्धा / कबीर

केहि समुझावौ सब जग अन्धा ॥ इक दुइ होयॅं उन्हैं समुझावौं, सबहि भुलाने पेटके धन्धा । पानी घोड पवन असवरवा, ढरकि परै जस ओसक बुन्दा ॥ १॥ गहिरी नदी अगम बहै धरवा, खेवन- हार के पडिगा फन्दा । घर की वस्तु नजर नहि आवत, दियना बारिके ढूँढत अन्धा ॥ २॥ लागी आगि सबै बन जरिगा,… Continue reading केहि समुझावौ सब जग अन्धा / कबीर