ज़हर के घूँट भी हँस हँस के पिए जाते हैं / इक़बाल अज़ीम

ज़हर के घूँट भी हँस हँस के पिए जाते हैं हम बहर-हाल सलीक़े से जिए जाते हैं एक दिन हम भी बहुत याद किए जाएँगे चंद अफ़साने ज़माने को दिए जाते हैं हम को दुनिया से मोहब्बत भी बहुत है लेकिन लाख इल्ज़ाम भी दुनिया को दिए जाते हैं बज़्म-ए-अग़्यार सही अज़-रह-ए-तनक़ीद सही शुक्र है… Continue reading ज़हर के घूँट भी हँस हँस के पिए जाते हैं / इक़बाल अज़ीम

हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते / इक़बाल अज़ीम

हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते अब ठहर जाएँ कहीं शाम के ढलते ढलते अब ग़म-ए-ज़ीस्त से घबरा के कहाँ जाएँगे उम्र गुज़री है इसी आग में जलते जलते रात के बाद सहर होगी मगर किस के लिए हम ही शायद न रहें रात के ढलते ढलते रौशनी कम थी मगर इतना अँधेरा… Continue reading हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते / इक़बाल अज़ीम

बिल-एहतिमाम ज़ुल्म की तजदीद की गई / इक़बाल अज़ीम

बिल-एहतिमाम ज़ुल्म की तजदीद की गई और हम को सब्र ओ ज़ब्त की ताकीद की गई अव्वल तो बोलने की इजाज़त न थी हमें और हम ने कुछ कहा भी तो तरदीद की गई अंजाम-कार बात शिकायात पर रुकी पुर्सिश अगरचे अज़-रह-ए-तम्हीद की गई तज्दीद-ए-इल्तिफ़ात की तज्वीज़ रद हुई तर्क-ए-तअल्लुक़ात की ताईद की गई जीने… Continue reading बिल-एहतिमाम ज़ुल्म की तजदीद की गई / इक़बाल अज़ीम

अपना घर छोड़ के हम लोग वहाँ तक पहुँचे / इक़बाल अज़ीम

अपना घर छोड़ के हम लोग वहाँ तक पहुँचे सुब्ह-ए-फ़र्दा की किरन भी न जहाँ तक पहुँचे मैं ने आँखों में छुपा रक्खे हैं कुछ और चराग़ रौशनी सुब्ह की शायद न यहाँ तक पहुँचे बे-कहे बात समझ लो तो मुनासिब होगा इस से पहले के यही बात ज़बाँ तक पहुँचे तुम ने हम जैसे… Continue reading अपना घर छोड़ के हम लोग वहाँ तक पहुँचे / इक़बाल अज़ीम

ऐ अहल-ए-वफ़ा दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते / इक़बाल अज़ीम

ऐ अहल-ए-वफ़ा दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते सोए हुए ज़ख़्मों को जगा क्यूँ नहीं देते इस जश्न-ए-चराग़ाँ से तो बेहतर थे अँधेरे इन झूटे चराग़ों को बुझा क्यूँ नहीं देते जिस में न कोई रंग न आहंग न ख़ुश-बू तुम ऐसे गुलिस्ताँ को जला क्यूँ नहीं देते दीवार का ये उज़्र सुना जाएगा कब तक दीवार… Continue reading ऐ अहल-ए-वफ़ा दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते / इक़बाल अज़ीम