तुम्हारे चरण / धर्मवीर भारती

ये शरद के चाँद-से उजले धुले-से पाँव, मेरी गोद में ! ये लहर पर नाचते ताज़े कमल की छाँव, मेरी गोद में ! दो बड़े मासूम बादल, देवताओं से लगाते दाँव, मेरी गोद में ! रसमसाती धूप का ढलता पहर, ये हवाएँ शाम की, झुक-झूमकर बरसा गईं रोशनी के फूल हरसिंगार-से, प्यार घायल साँप-सा लेता… Continue reading तुम्हारे चरण / धर्मवीर भारती

ठण्डा लोहा (कविता) / धर्मवीर भारती

ठंडा लोहा! ठंडा लोहा! ठंडा लोहा! मेरी दुखती हुई रगों पर ठंडा लोहा! मेरी स्वप्न भरी पलकों पर मेरे गीत भरे होठों पर मेरी दर्द भरी आत्मा पर स्वप्न नहीं अब गीत नहीं अब दर्द नहीं अब एक पर्त ठंडे लोहे की मैं जम कर लोहा बन जाऊँ – हार मान लूँ – यही शर्त… Continue reading ठण्डा लोहा (कविता) / धर्मवीर भारती

अक्र चहार का मक़बरा / एज़रा पाउण्ड / धर्मवीर भारती

मैं तुम्हारी आत्मा हूँ, निकुपतिस्, मैंने निगरानी की है पिछले पचास लाख वर्षों से, और तुम्हारी मुर्दा आँखें हिलीं नहीं, न मेरे रति-संकेतों को समझ सकीं और तुम्हारे कृश अंग, जिसमें मैं धधकती हुई चलती थी, अब मेरे या अन्य किसी अग्निवर्णी वस्तु के स्पर्श से धधक नहीं उठते ! देखो तुम्हारे सिरहाने तकिया लगाने… Continue reading अक्र चहार का मक़बरा / एज़रा पाउण्ड / धर्मवीर भारती

एक लड़की / एज़रा पाउण्ड / धर्मवीर भारती

एक वृक्ष मेरे हाथों में समाविष्ट हो गया है मेरी बाँहों में अन्दर-अन्दर वृक्ष रस चढ़ रहा है वृक्ष मेरे वक्ष में उग गया है अधोमुखी, डालें मुझमें से उग रही हैं-बाँहों की तरह वृक्ष वह तुम हो तुम हो हरी काई तुम हो वायलेट के फूल जिन पर हवा लहराती है एक शिशु-और इतने… Continue reading एक लड़की / एज़रा पाउण्ड / धर्मवीर भारती

गोदना / वालेस स्टीवेन्स / धर्मवीर भारती

रोशनी मकड़ी है जल पर रेंगती है बर्फ़ के किनारों पर तुम्हारी पलकों के तले और वहाँ अपना जाला बुनती है अपने दो जाले तुम्हारे नेत्रों के जाले हिलगे हैं, तुम्हारे माँस और अस्थियों से जैसे छत की कड़ियों या घासों से तुम्हारे नेत्रों के डोरे हैं जल की सतह पर बर्फ़ के छोरों पर।

मेमने ने देखे जब गैया के आंसू / अशोक चक्रधर

(खेल में मग्न बच्चों को घर की सुध नहीं रहती) माता पिता से मिला जब उसको प्रेम ना, तो बाड़े से भाग लिया नन्हा सा मेमना। बिना रुके बढ़ता गया, बढ़ता गया भू पर, पहाड़ पर चढ़ता गया, चढ़ता गया ऊपर। बहुत दूर जाके दिखा, उसे एक बछड़ा, बछड़ा भी अकड़ गया, मेमना भी अकड़ा।… Continue reading मेमने ने देखे जब गैया के आंसू / अशोक चक्रधर

आलपिन कांड / अशोक चक्रधर

बंधुओ, उस बढ़ई ने चक्कू तो ख़ैर नहीं लगाया पर आलपिनें लगाने से बाज़ नहीं आया। ऊपर चिकनी-चिकनी रैक्सीन अंदर ढेर सारे आलपीन। तैयार कुर्सी नेताजी से पहले दफ़्तर में आ गई, नेताजी आए तो देखते ही भा गई। और, बैठने से पहले एक ठसक, एक शान के साथ मुस्कान बिखेरते हुए उन्होंने टोपी संभालकर… Continue reading आलपिन कांड / अशोक चक्रधर

हम तो करेंगे / अशोक चक्रधर

हम तो करेंगे गुनह करेंगे पुनह करेंगे। वजह नहीं बेवजह करेंगे। कल से ही लो कलह करेंगे। जज़्बातों को जिबह करेंगे निर्लज्जों से निबह करेंगे सुलगाने को सुलह करेंगे। हम ज़ालिम क्यों जिरह करेंगे संबंधों में गिरह करेंगे रस विशेष में विरह करेंगे जो हो, अपनी तरह करेंगे रात में चूके सुबह करेंगे गुनह करेंगे… Continue reading हम तो करेंगे / अशोक चक्रधर

जंगल गाथा / अशोक चक्रधर

1. एक नन्हा मेमना और उसकी माँ बकरी, जा रहे थे जंगल में राह थी संकरी। अचानक सामने से आ गया एक शेर, लेकिन अब तो हो चुकी थी बहुत देर। भागने का नहीं था कोई भी रास्ता, बकरी और मेमने की हालत खस्ता। उधर शेर के कदम धरती नापें, इधर ये दोनों थर-थर कापें।… Continue reading जंगल गाथा / अशोक चक्रधर