होटल में लफड़ा / अशोक चक्रधर

जागो जागो हिन्दुस्तानी, करता ये मालिक मनमानी। प्लेट में पूरी अभी बची हुई है और भाजी के लिए मना जी ! वा….जी ! हम ग्राहक, तू है दुकान… पर हे ईश्वर करुणानिधान ! कुछ अक़्ल भेज दो भेजे में इस चूज़े के लिए, अरे हम बने तुम बने इक दूजे के लिए। भाजी पर कंट्रोल… Continue reading होटल में लफड़ा / अशोक चक्रधर

गरीबदास का शून्य / अशोक चक्रधर

घास काटकर नहर के पास, कुछ उदास-उदास सा चला जा रहा था गरीबदास। कि क्या हुआ अनायास… दिखाई दिए सामने दो मुस्टंडे, जो अमीरों के लिए शरीफ़ थे पर ग़रीबों के लिए गुंडे। उनके हाथों में तेल पिए हुए डंडे थे, और खोपड़ियों में हज़ारों हथकण्डे थे। बोले- ओ गरीबदास सुन ! अच्छा मुहूरत है… Continue reading गरीबदास का शून्य / अशोक चक्रधर

तमाशा (कविता) / अशोक चक्रधर

अब मैं आपको कोई कविता नहीं सुनाता एक तमाशा दिखाता हूँ, और आपके सामने एक मजमा लगाता हूँ। ये तमाशा कविता से बहूत दूर है, दिखाऊँ साब, मंजूर है? कविता सुनने वालो ये मत कहना कि कवि होकर मजमा लगा रहा है, और कविता सुनाने के बजाय यों ही बहला रहा है। दरअसल, एक तो… Continue reading तमाशा (कविता) / अशोक चक्रधर

नई भोर / अशोक चक्रधर

खुशी से सराबोर होगी कहेगी मुबारक मुबारक कहेगी बधाई बधाई आज की रंगीन हलचल दिल कमल को खिला गई मस्त मेला मिलन बेला दिल से दिल को मिला गई रात रानी की महक हर ओर होगी कल जो नई भोर होगी खुशी से सराबोर होगी। कहेगी बधाई बधाई ! चांदनी इस नील नभ में नव… Continue reading नई भोर / अशोक चक्रधर

नया साल हो / अशोक चक्रधर

नव वर्ष की शुभकामनाएं हैपी न्यू इयर, हैपी न्यू इयर। दिलों में हो फागुन, दिशाओं में रुनझुन हवाओं में मेहनत की गूंजे नई धुन गगन जिसको गाए हवाओं से सुन-सुन वही धुन मगन मन, सभी गुनगुनाएं। नव वर्ष की शुभकामनाएं हैपी न्यू इयर, हैपी न्यू इयर। नया साल हो आप सबको मुबारक। ये धरती हरी… Continue reading नया साल हो / अशोक चक्रधर

ज़रा मुस्कुरा तो दे / अशोक चक्रधर

माना, तू अजनबी है और मैं भी, अजनबी हूँ डरने की बात क्या है ज़रा मुस्कुरा तो दे। हूं मैं भी एक इंसां और तू भी एक इंसां ऐसी भी बात क्या है ज़रा मुस्कुरा तो दे। ग़म की घटा घिरी है तू भी है ग़मज़दा सा रस्ता जुदा-जुदा है ज़रा मुस्कुरा तो दे। हाँ,… Continue reading ज़रा मुस्कुरा तो दे / अशोक चक्रधर

चिड़िया की उड़ान / अशोक चक्रधर

चिड़िया तू जो मगन, धरा मगन, गगन मगन, फैला ले पंख ज़रा, उड़ तो सही, बोली पवन। अब जब हौसले से, घोंसले से आई निकल, चल बड़ी दूर, बहुत दूर, जहां तेरे सजन। वृक्ष की डाल दिखें जंगल-ताल दिखें खेतों में झूम रही धान की बाल दिखें गाँव-देहात दिखें, रात दिखे, प्रात दिखे, खुल कर… Continue reading चिड़िया की उड़ान / अशोक चक्रधर

छूटा गांव, छूटी गली / अशोक चक्रधर

रोको, रोको ! ये डोली मेरी कहां चली, छूटा-गाँव, छूटी गली। रोक ले बाबुल, दौड़ के आजा, बहरे हुए कहार, अंधे भी हैं ये, इन्हें न दीखें, तेरे मेरे अंसुओं की धार। ये डोली मेरी कहां चली, छूटा-गाँव, छूटी गली। कपड़े सिलाए, गहने गढ़ाए, दिए तूने मखमल थान, बेच के धरती, खोल के गैया, बांधा… Continue reading छूटा गांव, छूटी गली / अशोक चक्रधर

झूम रही बालियां / अशोक चक्रधर

रे देखो खेतों में झूम रहीं बालियां। फल और फूलों से, पटरी के झूलों से खाय हिचकोले मगन भईं डालियां। रे देखो खेतों में झूम रहीं बालियां। ऋतु है बसंती ये बड़ी रसवंती ये। कोयलिया कूक रही, जादू सा फूंक रही। सखियां हैं चुनमुन है, पायलों की रुनझुन है। मस्ती में जवानी है, अदा मस्तानी… Continue reading झूम रही बालियां / अशोक चक्रधर

सद्भावना गीत / अशोक चक्रधर

गूंजे गगन में, महके पवन में हर एक मन में -सद्भावना। मौसम की बाहें, दिशा और राहें, सब हमसे चाहें -सद्भावना। घर की हिफ़ाज़त पड़ौसी की चाहत, हरेक दिल को राहत, -तभी तो मिले, हटे सब अंधेरा, ये कुहरा घनेरा, समुज्जवल सवेरा -तभी तो मिले, जब हर हृदय में पराजय-विजय में सद्भाव लय में -हो… Continue reading सद्भावना गीत / अशोक चक्रधर