क्रम / अशोक चक्रधर

एक अंकुर फूटा पेड़ की जड़ के पास । एक किल्ला फूटा फुनगी पर । अंकुर बढ़ा जवान हुआ, किल्ला पत्ता बना सूख गया । गिरा उस अंकुर की जवानी की गोद में गिरने का ग़म गिरा बढ़ने के मोद में ।

सो तो है खचेरा / अशोक चक्रधर

गरीबी है- सो तो है, भुखमरी है – सो तो है, होतीलाल की हालत खस्ता है – सो तो खस्ता है, उनके पास कोई रस्ता नहीं है – सो तो है। पांय लागूं, पांय लागूं बौहरे आप धन्न हैं, आपका ही खाता हूं आपका ही अन्न है। सो तो है खचेरा ! वह जानता है… Continue reading सो तो है खचेरा / अशोक चक्रधर

माशो की माँ / अशोक चक्रधर

नुक्कड़ पर माशो की माँ बेचती है टमाटर । चेहरे पर जितनी झुर्रियाँ हैं झल्ली में उतने ही टमाटर हैं । टमाटर नहीं हैं वो सेव हैं, सेव भी नहीं हीरे-मोती हैं । फटी मैली धोती से एक-एक पोंछती है टमाटर, नुक्कड़ पर माशो की माँ । गाहक को मेहमान-सा देखती है एकाएक हो जाती… Continue reading माशो की माँ / अशोक चक्रधर

ठेकेदार भाग लिया / अशोक चक्रधर

फावड़े ने मिट्टी काटने से इंकार कर दिया और बदरपुर पर जा बैठा एक ओर ऐसे में तसले की मिट्टी ढोना कैसे गवारा होता ? काम छोड़ आ गया फावड़े की बगल में। धुरमुट की क़ंदमताल…..रुक गई, कुदाल के इशारे पर तत्काल, झाल ज्यों ही कुढ़ती हुई रोती बड़बड़ाती हुई आ गिरी औंधे मुंह रोड़ी… Continue reading ठेकेदार भाग लिया / अशोक चक्रधर