सोई नन्हीं आँखें / अक्षय उपाध्याय

वे आँखें जिनके बारे में हर कवि ने गीत गाया है अभी जतन से सोई हैं ना ना छूना नहीं उनमें बन रहे कच्चे स्वप्न हैं उम्मीदें आकार ले रही हैं उनमें कल बड़ा होकर आज होने वाला है हो सके तो जतन से सोई इन आँखों को अपने गीत दो अपनी ख़ुशी दो घटनाओं… Continue reading सोई नन्हीं आँखें / अक्षय उपाध्याय

बेगम अख़्तर को सुनकर / अक्षय उपाध्याय

तुमको सुनना अपने को सुनना है तुमको गाना अपने को गाना है तुमको सुनता और अपने को गाता हूँ तुम गा रही हो हवा काँप रही है तुम गा रही थीं ऋतुएँ बदल रही थीं तुम गा रही थीं खेत पक रहे थे बीज वृक्ष होने को उद्यत थे तुम गा रही थीं हम और,… Continue reading बेगम अख़्तर को सुनकर / अक्षय उपाध्याय

इषिता के लिए (दो) / अक्षय उपाध्याय

हर घर में ऐसी एक लड़की है जो गाती है बालों में रिबन लगाती अपनी गुड़िया के लिए दूल्हा रचाती उसका भी नाम इषिता है हर घर में हर घर में ऐसी एक लड़की है जो बड़ी होती हुई ईख तोड़ती है पिता के सीने से अपना क्चद नापती माँ की कोख में मुँह छिपाकर… Continue reading इषिता के लिए (दो) / अक्षय उपाध्याय

इषिता के लिए (एक)/ अक्षय उपाध्याय

ओ मेरी बच्ची मेरी आत्मा तुम कैसे बड़ी हो‍ओगी ! तुम ऐसे बड़ी होना जैसे घास बड़ी होती है तुम ऐसे बढ़ना जैसे लता बढ़ा करती है तुम्हारे लिए यहाँ देखने को बहुत कुछ होगा तुम्हारे लिए यहाँ खाने को बहुत कुछ होगा तुम्हारे स्वप्नों को सुन रहा हूँ तुम्हारे भीतर चल रही बातचीत समझ… Continue reading इषिता के लिए (एक)/ अक्षय उपाध्याय

गेंद (दो) / अक्षय उपाध्याय

खिलाड़ियों की स्मृति के साथ चुप, उदास इस गेंद के पास अपनी कौन सी दुनिया है किन स्वप्नों के लिए जीवित वह गेंद कौन सी कविता रचेगी सीटी की मार के साथ लथेरी गई बिना जीत की ख़ुशी में पिचकी इस गेंद का हक़ खिलाड़ियों की नींद में ग़ुम हो जाता है मैदान के खाली… Continue reading गेंद (दो) / अक्षय उपाध्याय

गेंद (एक) / अक्षय उपाध्याय

रात में माटी पर गति को महसूस करती पड़ी है गेंद । पृथ्वी के सीने पर नाच कर आँखें खोले तारों को अपलक निहारती खेल की दुनिया रचती पड़ी है गेंद बच्चे को खोजती उसके नर्म पैरों की थकान सोखती फिलहाल गेंद के स्वप्न में बच्चा भी है और मैदान भी बच्चे को उसके गोल… Continue reading गेंद (एक) / अक्षय उपाध्याय

सीने में क्या है तुम्हारे / अक्षय उपाध्याय

कितने सूरज हैं तुम्हारे सीने में कितनी नदियाँ हैं कितने झरने हैं कितने पहाड़ हैं तुम्हारी देह में कितनी गुफ़ाएँ हैं कितने वृक्ष हैं कितने फल हैं तुम्हारी गोद में कितने पत्ते हैं कितने घोंसले हैं तुम्हारी आत्मा में कितनी चिड़ियाँ हैं कितने बच्चे हैं तुम्हारी कोख में कितने सपने हैं कितनी कथाएँ हैं तुम्हारे… Continue reading सीने में क्या है तुम्हारे / अक्षय उपाध्याय

तुम नहीं मिलती तो भी / अक्षय उपाध्याय

तुम नहीं मिलती तो भी मैं नदी तक जाता छूता उसके हृदय को गाता बचपन का कोई पुराना अधूरा गीत तुम नहीं मिलती तो भी तुम नहीं मिलती तो भी पहाड़ के साथ घंटों बतियाता वृक्षों का हाथ पकड़ ऊपर की ओर उठना सीखता बीस और इक्कीस की उमर की कोई न भूलने वाली घटना… Continue reading तुम नहीं मिलती तो भी / अक्षय उपाध्याय

अगर सचमुच यह औरत / अक्षय उपाध्याय

अगर सचमुच यह औरत इस साप्ताहिक के पन्ने से बाहर निकल आए अगर सचमुच यह औरत गरदन पकड़ कर चिल्लाए तो क्या मैं सच कहूँगा ? अगर सचमुच इस औरत के स्तन पूरे मुखपृष्ठ पर छा जाएँ और मेरे एकान्त में गनगनाएँ तो क्या मौं सुनूँगा ? अकेले में, सचमुच के अकेले में यह औरत… Continue reading अगर सचमुच यह औरत / अक्षय उपाध्याय

महाराज समझे कि ना / अक्षय उपाध्याय

अगड़म बम बगड़म बम तिरकिट धुम तिरकिट धुम धूम धूम धूम धूम नाचेगा नाचेगा मालिक वो नाचेगा नाच जमूरे नाच तू नाच जमूरे नाच तू नाचा हे नाचा हुज़ूर नाचा नाचा देखें तो देखें सरकार ज़रा देखें नाचा वो नाचा अगड़म बम बगड़म बम तिरकिट धुम तिरकिट धुम तिन्नाना, तिन्नाना तिन्नाना महाराज समझे कि ना… Continue reading महाराज समझे कि ना / अक्षय उपाध्याय