तानाशाह जब भी आता है उसके साथ दुनिया की ख़ूबसूरत असंख्य चीज़ें होती हैं वह उन्हें दिखाता है जिनके पास सजाने के लिए कमरे हैं वे दौड़ते हैं तानाशाह जब भी आता है उसके साथ धर्म और जाति और ईश्वर होता है धर्मप्राण जनता और धर्म के कर्णधार लपकते हैं तानाशाह जब भी आता है… Continue reading तानाशाह जब ही आता है / अक्षय उपाध्याय
Category: Akshay Upadhyay
नेता (दो) / अक्षय उपाध्याय
अच्छा बेटा तू इतना अकड़ता है संतरी को मंत्री होने पर रगड़ता है फूँक मारते ही तू फूलेगा फूलेगा तू और एक ही दिन में पचास वर्षों की कमी छू लेगा कभी यहाँ कभी वहाँ मौसम के झूले पे झूलेगा बातों की सिक्कड़ में बँधी तेरी आत्मा चोर दरवाज़ों से साँस लेगी तहख़ानों में विश्राम… Continue reading नेता (दो) / अक्षय उपाध्याय
नेता (एक) / अक्षय उपाध्याय
मसान से फैले प्रदेश में मचान गाड़ नेता अब और बेतुकी नहीं हाँक पा रहे अब तो पिपरिया के, छोटके के पूछे गए ककहरा सवालों के जवाब में भी गाँधी टोपी भकुआ की तरह बबूर की ओर मुँह किए दाँत चियारती है वे जो कल तक शेरवानी की समझ से बकलोल-से दीखने वाले लोग समझे… Continue reading नेता (एक) / अक्षय उपाध्याय
चिड़िया (दो) / अक्षय उपाध्याय
वे नहीं जानते कैसे छोटी चिड़िया बड़े पंखों से उड़ान भरती है और आकाश में एक कोलाहल पैदा करती है चिड़िया जब भी गीत गाते हुए लंबे सफ़र पर होती है यो उसके साथ पूरी पृथ्वी का शोर और प्रेम होता है उसके नन्हें सपने होते हैं और चोंच में दबी हमारी कथाएँ होती हैं… Continue reading चिड़िया (दो) / अक्षय उपाध्याय
चिड़िया (एक) / अक्षय उपाध्याय
चिड़िया कहाँ जाती है आसमान में कहाँ जाती है वह दाने के लिए दाना कहाँ है किसका है पूछता है चूजा चिड़िया लौट आती है चुपचाप घोंसला किसका है घोंसले में अण्डे कौन देगा कौन पर निकालते हुए सेंकेगा अपनी संतानों को पूछती है चिड़िया वृक्ष ख़ामोश है धाँय धाँय, धाँय क्या हुआ ! क्या… Continue reading चिड़िया (एक) / अक्षय उपाध्याय
रात / अक्षय उपाध्याय
नींद में लौटने के लिए स्त्री अपनी दुनिया को समेटती है रात स्त्री की आँखों पर उतरती है बच्चा दौड़ता चला जाता है अपने स्वप्नों के बीच रात उसकी इच्छा को बघारती है रात को सीने में सहेजती युवती गौने का गीत गाती है और भोर की फ़सल अगोरता पुरुष रात को ओढ़ कर अनुभव… Continue reading रात / अक्षय उपाध्याय
धान रोपती स्त्री / अक्षय उपाध्याय
क्यों नहीं गाती तुम गीत हमारे क्यों नहीं तुम गाती बजता है संगीत तुम्हारे पूरे शरीर से आँखें नाचती हैं पृथ्वी का सबसे ख़ूबसूरत नृत्य फिर झील-सी आँखो में सेवार क्यों नहीं उभरते एक नहीं कई-कई हाथ सहेजते हैं तुम्हारी आत्मा को एक नहीं कई-कई हृदय केवल तुम्हारे लिए धड़कते हैं क्यों नहीं फिर तुम्हारा… Continue reading धान रोपती स्त्री / अक्षय उपाध्याय
इस मौसम में / अक्षय उपाध्याय
यह मौसम है फूलों का और बग़ीचे में चलती हैं बन्दूकें कहाँ हैं वे चिड़ियाएँ जो घोंसलों के लिए खर लिए बदहवास भागती हैं आसमान में ! यह मौसम है गाने क और मेरे घर में भूख नाचती है कहाँ हैं वे स्वर जो आदमी को बड़ा करने के लिए अपना रक्त लिए हवाओं में… Continue reading इस मौसम में / अक्षय उपाध्याय
पढ़ता हुआ बच्चा (दो) / अक्षय उपाध्याय
गिटार बजाती माँ का मन भी गिटार जैसा ही बजता है ? क़िताबों से घिरा बच्चा सोचता है । क़िताबों से गिटार बड़ा है माँ के कानों में हर बार कहने से पहले बच्चा खिलखिलाता है और संगीत की दुनिया में लपक जाता है बच्चा कॉपी पर पहला अक्षर क नहीं ग लिखता है ।
पढ़ता हुआ बच्चा (एक) / अक्षय उपाध्याय
बच्चे के बस्ते पर किताबें हैं और उसके खेल का तमंचा भी बच्चा भीतर के क़िताबी भय को तमंचे से उठाने के लिए ऊपर देखाता है पिता के सच को माँ की आँखों में झूठ बना देखता है बच्चा और क़िताबों में लौटने की कोशिश करता है बच्चे का बच्चा मन सोचता है क़िताब और… Continue reading पढ़ता हुआ बच्चा (एक) / अक्षय उपाध्याय