सोई नन्हीं आँखें / अक्षय उपाध्याय

वे आँखें
जिनके बारे में
हर कवि ने गीत गाया है
अभी जतन से सोई हैं

ना ना
छूना नहीं

उनमें बन रहे कच्चे स्वप्न हैं
उम्मीदें आकार ले रही हैं
उनमें कल बड़ा होकर
आज होने वाला है
हो सके तो
जतन से सोई इन आँखों को
अपने गीत दो
अपनी ख़ुशी दो
घटनाओं से भरा इतिहास दो

वे आँखें जागेंगी
और जगने से पहले
सुबह का
एक पूरा सूरज दो

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