दस्तानों में छिपे हैं हत्यारों के हाथ एक दिवंगत आदमी कह रहा है हर किसी के सामने जाकर, ये दस्ताने मेरी खाल से बने हुए हैं ख़ुश हैं हत्यारे कि सभ्य लोग नहीं करते हैं आत्माओं पर विश्वास
Category: Akbar Haidrabadi
जिन पे अजल तारी थी / अकबर हैदराबादी
जिन पे अजल तारी थी उन को ज़िंदा करता है सूरज जल कर कितने दिलों को ठंडा करता है कितने शहर उजड़ जाते हैं कितने जल जाते हैं और चुप-चाप ज़माना सब कुछ देखा करता है मजबूरों की बात अलग है उन पर क्या इल्ज़ाम जिस को नहीं कोई मजबूरी वो क्या करता है हिम्मत… Continue reading जिन पे अजल तारी थी / अकबर हैदराबादी
जब सुब्ह की दहलीज़ पे / अकबर हैदराबादी
जब सुब्ह की दहलीज़ पे बाज़ार लगेगा हर मंज़र-ए-शब ख़्वाब की दीवार लगेगा पल भर में बिखर जाएँगे यादों के ज़ख़ीरे जब ज़ेहन पे इक संग-ए-गिराँ-बार लगेगा गूँधे हैं नई शब ने सितारों के नए हार कब घर मेरा आईना-ए-अनवार लगेगा गर सैल-ए-ख़ुराफ़ात में बह जाएँ ये आँखें हर हर्फ़-ए-यक़ीं कलमा-ए-इंकार लगेगा हालात न बदले… Continue reading जब सुब्ह की दहलीज़ पे / अकबर हैदराबादी
हाँ यही शहर मेरे ख़्वाबों / अकबर हैदराबादी
हाँ यही शहर मेरे ख़्वाबों का गहवारा था इन्ही गलियों में कहीं मेरा सनम-ख़ाना था इसी धरती पे थे आबाद समन-ज़ार मेरे इसी बस्ती में मेरी रूह का सरमाया था थी यही आब ओ हवा नश-ओ-नुमा की ज़ामिन इसी मिट्टी से मेरे फ़न का ख़मीर उट्ठा था अब न दीवारों से निस्बत है न बाम… Continue reading हाँ यही शहर मेरे ख़्वाबों / अकबर हैदराबादी
घुटन अज़ाब-ए-बदन की / अकबर हैदराबादी
घुटन अज़ाब-ए-बदन की न मेरी जान में ला बदल के घर मेरा मुझ को मेरे मकान में ला मेरी इकाई को इज़हार का वसीला दे मेरी नज़र को मेरे दिल को इम्तिहान में ला सख़ी है वो तो सख़ावत की लाज रख लेगा सवाल अर्ज़-ए-तलब का न दरमियान में ला दिल-ए-वजूद को जो चीर कर… Continue reading घुटन अज़ाब-ए-बदन की / अकबर हैदराबादी
फ़ित्ने अजब तरह के / अकबर हैदराबादी
फ़ित्ने अजब तरह के समन-ज़ार से उठे सारे परिंद शाख़-ए-समर-दार से उठे दीवार ने क़ुबूल किया सैल-ए-नूर को साए तमाम-तर पस-ए-दीवार से उठे जिन की नुमू में थी न मुआविन हवा कोई ऐसे भी गुल ज़मीन-ए-ख़ास-ओ-ख़ार से उठे तस्लीम की सरिश्त बस ईजाब ओ क़ुबूल सारे सवाल जुरअत-ए-इंकार से उठे शहर-ए-तअल्लुक़ात में उडती है जिन… Continue reading फ़ित्ने अजब तरह के / अकबर हैदराबादी
दूर तक बस इक धुंदलका / अकबर हैदराबादी
दूर तक बस इक धुंदलका गर्द-ए-तंहाई का था रास्तों को रंज मेरी आबला-पाई का था फ़स्ल-ए-गुल रुख़्सत हुई तो वहशतें भी मिट गईं हट गया साया जो इक आसेब-ए-सहराई का था तोड़ ही डाला समंदर ने तिलिस्म-ए-ख़ुद-सरी ज़ोम क्या क्या साहिलों को अपनी पहनाई का था और मुबहम हो गया पैहम मुलाक़ातों के साथ वो… Continue reading दूर तक बस इक धुंदलका / अकबर हैदराबादी
बस इक तसलसुल / अकबर हैदराबादी
बस इक तसलसुल-ए-तकरार-ए-क़ुर्ब-ओ-दूरी था विसाल ओ हिज्र का हर मरहला उबूरी था मेरी शिकस्त भी थी मेरी ज़ात से मंसूब के मेरी फ़िक्र का हर फ़ैसला शुऊरी था थी जीती जागती दुनिया मेरी मोहब्बत की न ख़्वाब का सा वो आलम के ला-शुऊरी था तअल्लुक़ात में ऐसा भी एक मोड़ आया के क़ुर्बतों पे भी… Continue reading बस इक तसलसुल / अकबर हैदराबादी
दिल दबा जाता है कितना / अकबर हैदराबादी
दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से कैसी तंहाई टपकती है दर ओ दीवार से मंज़िल-ए-इक़रार अपनी आख़िरी मंज़िल है अब हम के आए हैं गुज़र कर जादा-ए-इंकार से तर्जुमाँ था अक्स अपने चेहरा-ए-गुम-गश्ता का इक सदा आती रही आईना-ए-असरार से माँद पड़ते जा रहे थे ख़्वाब-तस्वीरों के रंग रात उतरती जा… Continue reading दिल दबा जाता है कितना / अकबर हैदराबादी
बदन से रिश्ता-ए-जाँ / अकबर हैदराबादी
बदन से रिश्ता-ए-जाँ मोतबर न था मेरा मैं जिस में रहता था शायद वो घर न था मेरा क़रीब ही से वो गुज़रा मगर ख़बर न हुई दिल इस तरह तो कभी बे-ख़बर न था मेरा मैं मिस्ल-ए-सब्ज़ा-ए-बेगाना जिस चमन में रहा वहाँ के गुल न थे मेरे समर न था मेरा न रौशनी न… Continue reading बदन से रिश्ता-ए-जाँ / अकबर हैदराबादी