तर्क-ए-वफ़ा तुम क्यों करते हो? इतनी क्या बेजारी है हम ने कोई शिकायत की है? बेशक जान हमारी है तुम ने खुद को बाँट दिया है कैसे इतनी खानों में सच्चों से भी दुआ सलाम है, झूठों से भी यारी है कैसा हिज्र क़यामत का है, लहू में शोले नाचते हैं आंखें बंद नहीं हो… Continue reading तर्क-ए-वफ़ा तुम क्यों करते हो? / ऐतबार साज़िद
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वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए / ऐतबार साज़िद
जो ख्याल थे, न कयास थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए जो मोहब्बतों की आस थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए जिन्हें मानता नहीं ये दिल, वो ही लोग मेरे है हमसफ़र मुझे हर तरह से जो रास थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए मुझे लम्हा भर की रफ़ाक़तों के सराब बोहत… Continue reading वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए / ऐतबार साज़िद
अभी आग पूरी जली नहीं / ऐतबार साज़िद
अभी आग पूरी जली नहीं, अभी शोले ऊँचे उठे नहीं अभी कहाँ का हूँ मैं गज़लसारा, मेरे खाल-ओ-खद अभी बने नहीं अभी सीनाजोर नहीं हुआ, मेरे दिल के गम का मामला कोई गहरा दर्द मिला नहीं, अभी ऐसे चरके लगे नहीं इस सैल-ए-नूर की निश्बतों से मेरे दरीचा-ए-दिल में आ मेरे ताकचिनो में है रौशनी,… Continue reading अभी आग पूरी जली नहीं / ऐतबार साज़िद
मेरी राहों के / ऐतबार साज़िद
मेरी राहों के जो जुगनू हैं वो तेरे हैं तेरी आँखों के जो अँधेरे हैं वो मेरे है छू सकता नहीं कोई गम तुझको क्यूंकि तुझ पर दुआओं के जो पहरे हैं वो मेरे हैं
किसी दिन, चाहते हैं / ऐतबार साज़िद
किसी दिन, चाहते हैं चुपके से हम उस के जीने पर कोई जलता दिया, कुछ फूल रख आयें के अपने बचपन में वो अंधेरों से भी डरता था उसेफूलों की खुशबू से भी रघबत थी बोहत मुमकिन है, अब भी शब की तारीकी से उस को खौफ आता हो महकते फूल शायद बैस-ए-तस्कीन अब भी… Continue reading किसी दिन, चाहते हैं / ऐतबार साज़िद
फिर उसके जाते ही दिल सुनसान हो कर रह गया / ऐतबार साज़िद
फिर उसके जाते ही दिल सुनसान हो कर रह गया अच्छा भला इक शहर वीरान हो कर रह गया हर नक्श बतल हो गया अब के दयार-ए-हिज्र में इक ज़ख्म गुज़रे वक्त की पहचान हो कर रह गया रुत ने मेरे चारों तरफ खींचें हिसार-ए-बाम-ओ-दर यह शहर फिर मेरे लिए ज़ान्दान हो कर रह गया… Continue reading फिर उसके जाते ही दिल सुनसान हो कर रह गया / ऐतबार साज़िद
भरी महफ़िल में तन्हाई का आलम ढूंढ़ लेता हूँ / ऐतबार साज़िद
भरी महफ़िल में तन्हाई का आलम ढूंढ़ लेता हूँ जहाँ जाता हूँ अपने दिल का मौसम ढूंढ़ लेता हूँ अकेला खुद को जब ये महसूस करता हूँ किसी लम्हे किसी उम्मीद का चेहरा, कोई गम ढूंढ़ लेता हूँ बोहत हंसी नजर आती हैं जो ऑंखें सर-ए-महफ़िल मैं इन आँखों के पीछे चस्म-ए-पूर्णम ढूंढ़ लेता हूँ… Continue reading भरी महफ़िल में तन्हाई का आलम ढूंढ़ लेता हूँ / ऐतबार साज़िद
ऐसा नहीं के तेरे बाद अहल-ए-करम नहीं मिले / ऐतबार साज़िद
ऐसा नहीं के तेरे बाद अहल-ए-करम नहीं मिले तुझ सा नहीं मिला कोई, लोग तो कम नहीं मिले इक तेरी जुदाई के दर्द की बात और है जिन को न सह सके ये दिल, ऐसे तो गम नहीं मिले तुझ से बिछड़ने की खता, इस के सिवा है और क्या मिल न सकी तबीयतें, अपने… Continue reading ऐसा नहीं के तेरे बाद अहल-ए-करम नहीं मिले / ऐतबार साज़िद
तुम को तो ये सावन की घटा कुछ नहीं कहती / ऐतबार साज़िद
तुम को तो ये सावन की घटा कुछ नहीं कहती हम सोख्ता लोगो को ये क्या कुछ नहीं कहती हो लाख कोई शोर मचाता हुआ मौसम दिल चुप हो तो बहार की फिजा कुछ नहीं कहती क्यूँ रेत पे बैठे हो झुकाए हुए सर को के तुमको समंदर की हवा कुछ नहीं कहती पूछा के… Continue reading तुम को तो ये सावन की घटा कुछ नहीं कहती / ऐतबार साज़िद
तुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहे / ऐतबार साज़िद
तुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहे तभी से ये मेरे जमीन-ओ-आसमान नहीं रहे खंडहर का रूप धरने लगे है बाग शहर के वो फूल-ओ-दरख्त, वो समर यहाँ नहीं रहे सब अपनी अपनी सोच अपनी फिकर के असीर हैं तुम्हारें शहर में मेरे मिजाज़ दा नहीं रहें उसे ये गम है, शहर ने हमारी बात… Continue reading तुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहे / ऐतबार साज़िद