जाने किस चाह के किस प्यार के / ऐतबार साज़िद

जाने किस चाह के किस प्यार के गुन गाते हो रात दिन कौन से दिल-दार के गुन गाते हो ये तो देखों के तुम्हें लूट लिया है उस ने इक तबस्सुम पे ख़रीदार के गुन गाते हो अपनी तनहाई पे नाजाँ हो मेरे सादा-मिज़ाज अपने सूने दर ओ दीवार के गुन गाते हो अपने ही… Continue reading जाने किस चाह के किस प्यार के / ऐतबार साज़िद

घर की दहलीज़ से बाज़ार में मत / ऐतबार साज़िद

घर की दहलीज़ से बाज़ार में मत आ जाना तुम किसी चश्म-ए-ख़रीदार में मत आ जाना ख़ाक उड़ाना इन्हीं गलियों में भला लगता है चलते फिरते किसी दरबार में मत आ जाना यूँही ख़ुश-बू की तरह फैलते रहना हर सू तुम किसी दाम-ए-तलब-गार में मत आ जाना दूर साहिल पे खड़े रह के तमाशा करना… Continue reading घर की दहलीज़ से बाज़ार में मत / ऐतबार साज़िद

छोटे छोटे से मफ़ादात लिए फिरते हैं / ऐतबार साज़िद

छोटे छोटे से मफ़ादात लिए फिरते हैं दर-ब-दर ख़ुद को जो दिन रात लिए फिरते हैं अपनी मजरूह अनाओं को दिलासे दे कर हाथ में कासा-ए-ख़ैरात लिए फिरते हैं शहर में हम ने सुना है के तेरे शोला-नवा कुछ सुलगते हुए नग़मात लिए फिरते हैं मुख़्तलिफ़ अपनी कहानी है ज़माने भर से मुनफ़रिद हम ग़म-ए-हालात… Continue reading छोटे छोटे से मफ़ादात लिए फिरते हैं / ऐतबार साज़िद

छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ / ऐतबार साज़िद

छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ लोग ज़िंदा हैं अजब सूरत-ए-हालात के साथ फ़ैसला ये तो बहर-हाल तुझे करना है ज़ेहन के साथ सुलगना है के जज़्बात के साथ गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर इक नई बात निकल आती है हर बात के साथ अब के ये सोच के तुम ज़ख़्म-ए-जुदाई… Continue reading छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ / ऐतबार साज़िद

भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें / ऐतबार साज़िद

भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें आ मेरे दिल मेरे ग़म-ख़्वार कहीं और चलें कोई खिड़की नहीं खुलती किसी बाग़ीचे में साँस लेना भी है दुश्वार कहीं और चलें तू भी मग़मूम है मैं भी हूँ बहुत अफ़्सुर्दा दोनों इस दुख से हैं दो-चार कहीं और चलें ढूँढते हैं कोई सर-सब्ज़ कुशादा सी फ़ज़ा वक़्त… Continue reading भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें / ऐतबार साज़िद