ऐसा नहीं के तेरे बाद अहल-ए-करम नहीं मिले / ऐतबार साज़िद

ऐसा नहीं के तेरे बाद अहल-ए-करम नहीं मिले
तुझ सा नहीं मिला कोई, लोग तो कम नहीं मिले

इक तेरी जुदाई के दर्द की बात और है
जिन को न सह सके ये दिल, ऐसे तो गम नहीं मिले

तुझ से बिछड़ने की खता, इस के सिवा है और क्या
मिल न सकी तबीयतें, अपने कदम नहीं मिले

ये तो हुआ के इश्क में नाम बोहत कमा लिया
खुद को बोहत गवां लिया, दाम-ओ-धरम नहीं मिले

ऐसा दियार-ए-हिज्र ने हम को असीर कर लिया
और किसी का ज़िक्र क्या? खुद को भी हम नहीं मिले

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