अब तो पथ यही है / दुष्यंत कुमार

जिंदगी ने कर लिया स्वीकार, अब तो पथ यही है| अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है, एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है, यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है, क्यों करूँ आकाश की मनुहार , अब तो पथ यही है | क्या भरोसा, कांच का… Continue reading अब तो पथ यही है / दुष्यंत कुमार

रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है / दुष्यंत कुमार

रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है यातनाओं के अँधेरे में सफ़र होता है कोई रहने की जगह है मेरे सपनों के लिए वो घरौंदा ही सही, मिट्टी का भी घर होता है सिर से सीने में कभी पेट से पाओं में कभी इक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है ऐसा… Continue reading रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है / दुष्यंत कुमार

ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो / दुष्यंत कुमार

ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो दर्दे—दिल वक़्त पे पैग़ाम भी पहुँचाएगा इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे आज सैयाद को महफ़िल में बुला लो यारो आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे आज संदूक… Continue reading ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो / दुष्यंत कुमार

तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं / दुष्यंत कुमार

तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं मैं बेपनाह अँधेरों को सुब्ह कैसे कहूँ मैं इन नज़ारों का अँधा तमाशबीन नहीं तेरी ज़ुबान है झूठी ज्म्हूरियत की तरह तू एक ज़लील-सी गाली से बेहतरीन नहीं तुम्हीं से प्यार जतायें तुम्हीं को खा जाएँ अदीब यों तो… Continue reading तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं / दुष्यंत कुमार

आग जलती रहे / दुष्यंत कुमार

एक तीखी आँच ने इस जन्म का हर पल छुआ, आता हुआ दिन छुआ हाथों से गुजरता कल छुआ हर बीज, अँकुआ, पेड़-पौधा, फूल-पत्ती, फल छुआ जो मुझे छूने चली हर उस हवा का आँचल छुआ … प्रहर कोई भी नहीं बीता अछूता आग के संपर्क से दिवस, मासों और वर्षों के कड़ाहों में मैं… Continue reading आग जलती रहे / दुष्यंत कुमार

ज़िंदगानी का कोई मक़सद नहीं है / दुष्यंत कुमार

ज़िंदगानी का कोई मक़सद नहीं है एक भी क़द आज आदमक़द नहीं है राम जाने किस जगह होंगे क़बूतर इस इमारत में कोई गुम्बद नहीं है आपसे मिल कर हमें अक्सर लगा है हुस्न में अब जज़्बा—ए—अमज़द नहीं है पेड़—पौधे हैं बहुत बौने तुम्हारे रास्तों में एक भी बरगद नहीं है मैकदे का रास्ता अब… Continue reading ज़िंदगानी का कोई मक़सद नहीं है / दुष्यंत कुमार

अफ़वाह है या सच है ये कोई नही बोला / दुष्यंत कुमार

अफ़वाह है या सच है ये कोई नही बोला मैंने भी सुना है अब जाएगा तेरा डोला इन राहों के पत्थर भी मानूस थे पाँवों से पर मैंने पुकारा तो कोई भी नहीं बोला लगता है ख़ुदाई में कुछ तेरा दख़ल भी है इस बार फ़िज़ाओं ने वो रंग नहीं घोला आख़िर तो अँधेरे की… Continue reading अफ़वाह है या सच है ये कोई नही बोला / दुष्यंत कुमार

हालाते-जिस्म, सूरते—जाँ और भी ख़राब / दुष्यंत कुमार

हालाते जिस्म, सूरती—जाँ और भी ख़राब चारों तरफ़ ख़राब यहाँ और भी ख़राब नज़रों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरे होंठों पे आ रही है ज़ुबाँ और भी ख़राब पाबंद हो रही है रवायत से रौशनी चिमनी में घुट रहा है धुआँ और भी ख़राब मूरत सँवारने से बिगड़ती चली गई पहले से हो… Continue reading हालाते-जिस्म, सूरते—जाँ और भी ख़राब / दुष्यंत कुमार

बाएँ से उड़के दाईं दिशा को गरुड़ गया / दुष्यंत कुमार

बाएँ से उड़के दाईं दिशा को गरुड़ गया कैसा शगुन हुआ है कि बरगद उखड़ गया इन खँडहरों में होंगी तेरी सिसकियाँ ज़रूर इन खँडहरों की ओर सफ़र आप मुड़ गया बच्चे छलाँग मार के आगे निकल गये रेले में फँस के बाप बिचारा बिछुड़ गया दुख को बहुत सहेज के रखना पड़ा हमें सुख… Continue reading बाएँ से उड़के दाईं दिशा को गरुड़ गया / दुष्यंत कुमार

मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे / दुष्यंत कुमार

मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे इस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आयेंगे हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेडो मत हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आयेंगे थोडी आँच बची रहने दो थोडा धुँआ निकलने दो तुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफिर आयेंगे उनको क्या मालूम निरूपित इस सिकता पर क्या बीती… Continue reading मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे / दुष्यंत कुमार