कबहूँ ऐसा बिरह उपावै रे। पिव बिन देऐं जीव जावै रे॥टेक॥ बिपत हमारी सुनौ सहेली। पिव बिन चैन न आवै रे॥ ज्यों जल मीन भीन तन तलफै। पिव बिन बज्र बिहावै रे॥१॥ ऐसी प्रीति प्रेमको लागै। ज्यों पंखी पीव सुनावै रे॥ त्यों मन मेरा रहै निसबासुर। कोइ पीवकूँ आणि मिलावै रे॥२॥ तौ मन मेरा धीरज… Continue reading कबहूँ ऐसा बिरह उपावै रे / दादू दयाल
Category: Dadu Dayal
क्यों बिसरै मेरा पीव पिया/ दादू दयाल
क्यों बिसरै मेरा पीव पियारा। जीवकी जीवन प्राण हमारा॥टेक॥ क्यौंकर जीवै मीन जल बिछुरें, तुम बिन प्राण सनेही। चिंतामणि जब करतैं छूटै, तब दुख पावै देही॥१॥ माता बालक दूध न देवै, सो कैसैं करि पीवै। निरधनका धन अनत भुलाना, सो कैसे करि जीवै॥२॥ बरखहु राम सदा सुख अमिरत, नीझर निरमल धारा। प्रेम पियाला भर भर… Continue reading क्यों बिसरै मेरा पीव पिया/ दादू दयाल
कोइ जान रे मरम माधइया केर/ दादू दयाल
कोइ जान रे मरम माधइया केरौ। कैसें रहै करै का सजनी प्राण मेरौ॥टेक॥ कौण बिनोद करत री सजनी, कौणनि संग बसेरौ। संत-साध गति आये उनके करत जु प्रेम घनेरौ॥१॥ कहाँ निवास बास कहँ, सजनी गवन तेरौ। घट-घट माहैं रहै निरंतर, ये दादू नेरौ॥२॥
बटाऊ रे चलना आज कि काल / दादू दयाल
हिंदू तुरक न जाणों दोइ। साँईं सबका सोई है रे, और न दूजा देखौं कोइ॥टेक॥ कीट-पतंग सबै जोनिनमें, जल-थल संगि समाना सोइ। पीर पैगम्बर देव-दानव, मीर-मलिक मुनि-जनकौं मोहि॥१॥ करता है रे सोई चीन्हौं, जिन वै रोध करै रे कोइ। जैसैं आरसी मंजन कीजै, राम-रहीम देही तन धोइ॥२॥ साँईंकेरी सेवा कीजै पायौ धन काहेकौं खोइ। दादू… Continue reading बटाऊ रे चलना आज कि काल / दादू दयाल
अरे मेरा अमर उपावणहार रे / दादू दयाल
अरे मेरा अमर उपावणहार रे। खालिक आशिक तेरा॥टेक॥ तुमसूँ राता तुमसूँ माता। तुमसूँ लागा रंग रे खालिक॥१॥ तुमसूँ खेला तुमसूँ मेला। तुमसूँ प्रेम-सनेह रे खालिक॥२॥ तुमसूँ लैणा तुमसूँ दैणा। तुमहीसूँ रत होइ रे खालिक॥३॥ खालिक मेरा आशिक तेरा। दादू अनत न जाइ रे खालिक॥४॥
आव पियारे मीत हमारे / दादू दयाल
आव पियारे मीत हमारे। निस-दिन देखूँ पाँव तुम्हारे॥टेक॥ सेज हमारी पीव सँवारी। दासी तुम्हारी सो धन वारी॥१॥ जे तुझ पाऊँ अंग लगाऊँ। क्यूँ समझाऊँ बारण जाऊँ॥२॥ पंथ निहारूँ बाट सवारूँ। दादू तारूँ तन मन वारूँ॥३॥
जग सूँ कहा हमारा / दादू दयाल
जगसूँ कहा हमारा। जब देख्या नूर तुम्हारा॥टेक॥ परम तेज घर मेरा। सुख-सागर माहिं बसेरा॥१॥ झिलिमिलि अति आनंदा। पाया परमानंदा॥२॥ जोति अपार अनंता। खेलै फाग बसंता॥३॥ आदि अंत असथाना। दादू सो पहिचाना॥४॥
मेरा मेरा छोड़ गँवारा / दादू दयाल
मेरा मेरा छोड़ गँवारा, सिरपर तेरे सिरजनहारा। अपने जीव बिचारत नाहीं, क्या ले गइला बंस तुम्हारा॥टेक॥ तब मेरा कत करता नाहीं, आवत है हंकारा। काल-चक्रसूँ खरी परी रे, बिसर गया घर-बारा॥१॥ जाइ तहाँका संयम कीजै, बिकट पंथ गिरधारा। दादू रे तन अपना नाहीं, तौ कैसे भयो सँसारा॥२॥
इत है नीर नहावन जोग / दादू दयाल
इत है नीर नहावन जोग॥ अनतहि भरम भूला रे लोग॥टेक॥ तिहि तटि न्हाये निर्मल होइ॥ बस्तु अगोचर लखै रे सोइ॥१॥ सुघट घाट अरु तिरिबौ तीर॥ बैठे तहाँ जगत-गुर पीर॥२॥ दादू न जाणै तिनका भेव॥ आप लखावै अंतर देव॥३॥
तब हम एक भये रे भाई / दादू दयाल
तब हम एक भये रे भाई। मोहन मिल साँची मति आई॥टेक॥ पारस परस भये सुखदाई। तब दूनिया दुरमत दूरि गमाई॥१॥ मलयागिरि मरम मिल पाया॥ तब बंस बरण-कुल भरग गँवाया॥२॥ हरिजल नीर निकट जब आया। तब बूँद-बूँद मिल सहज समाया॥३॥ नाना भेद भरम सब भागा। तब दादू एक रंगै रँग लागा॥४॥