कोइ जान रे मरम माधइया केरौ।
कैसें रहै करै का सजनी प्राण मेरौ॥टेक॥
कौण बिनोद करत री सजनी, कौणनि संग बसेरौ।
संत-साध गति आये उनके करत जु प्रेम घनेरौ॥१॥
कहाँ निवास बास कहँ, सजनी गवन तेरौ।
घट-घट माहैं रहै निरंतर, ये दादू नेरौ॥२॥
कोइ जान रे मरम माधइया केरौ।
कैसें रहै करै का सजनी प्राण मेरौ॥टेक॥
कौण बिनोद करत री सजनी, कौणनि संग बसेरौ।
संत-साध गति आये उनके करत जु प्रेम घनेरौ॥१॥
कहाँ निवास बास कहँ, सजनी गवन तेरौ।
घट-घट माहैं रहै निरंतर, ये दादू नेरौ॥२॥