हिंदू तुरक न जाणों दोइ। साँईं सबका सोई है रे, और न दूजा देखौं कोइ॥टेक॥ कीट-पतंग सबै जोनिनमें, जल-थल संगि समाना सोइ। पीर पैगम्बर देव-दानव, मीर-मलिक मुनि-जनकौं मोहि॥१॥ करता है रे सोई चीन्हौं, जिन वै रोध करै रे कोइ। जैसैं आरसी मंजन कीजै, राम-रहीम देही तन धोइ॥२॥ साँईंकेरी सेवा कीजै पायौ धन काहेकौं खोइ। दादू… Continue reading हिंदू तुरक न जाणों दोइ / दादू दयाल
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सोई साध-सिरोमनि / दादू दयाल
सोई साध-सिरोमनि, गोबिंद गुण गावै। राम भजै बिषिया तजै, आपा न जनावै॥टेक॥ मिथ्या मुख बोलै नहीं पर-निंद्या नाहीं। औगुण छोड़ै गुण गहै, मन हरिपद-माहीं॥१॥ नरबैरी सब आतमा, पर आतम जानै। सुखदाई समता गहै, आपा नहिं आनै॥२॥ आपा पर अंतर नहीं, निरमल निज सारा। सतबादी साचा कहै, लै लीन बिचारा॥३॥ निरभै भज न्यारा रहै, काहू लिपत… Continue reading सोई साध-सिरोमनि / दादू दयाल
तू साँचा साहिब मेरा / दादू दयाल
तू साँचा साहिब मेरा। करम करीम कृपाल निहारौ, मैं जन बंदा तेरा॥टेक॥ तुम दीवान सबहिनकी जानौं, दीनानाथ दयाला। दिखाइ दीदार मौज बंदेकूँ, काइक करौ निहाला॥ मालिक सबै मुलिकके साँइ, समरथ सिरजनहारा। खैर खुदाइ खलकमें खेलत, दे दीदार तुम्हारा॥ मैं सिकस्ता दरगह तेरी हरि हजूर तूँ कहिये। दादू द्वारै दीन पुकारै, काहे न दरसन लहिये॥
नूर रह्या भरपूर / दादू दयाल
नूर रह्या भरपूर, अमीरस पीजिये। रस मोहैं रस होइ, लाहा लीजिये॥टेक॥ परगट तेज अनंत पार नहिं पाइये। झिलिमिल-झिलिमिल होइ, तहाँ मन लाइये॥१॥ सहजैं सदा प्रकास, ज्योति जल पूरिया। तहाँ रहै निज दास, सेवग सूरिया॥२॥ सुख-सागर वार न पार, हमारा बास है। हंस रहैं ता माहिं, दादू दास है॥३॥
मन मुरिखा तैं यौं हीं जनम गँवायौ / दादू दयाल
मन मुरिखा तैं यौंहीं जनम गँवायौ। साँईकेरी सेवा न कीन्हीं, इही कलि काहेकूँ आऔ॥टेक॥ जिन बातन तेरौ छूटिक नाहीं, सोई मन तेरौ भायौ। कामी ह्वै बिषयासँग लाग्यो रोम रोम लपटायौ॥१॥ कुछ इक चेति बिचारी देखौ, कहा पाप जिय लायौ। दादुदास भजन करि लीजै, सुपिने जग डहकायौ॥२॥
बाबा नाहीं दूजा कोई / दादू दयाल
बाबा नाहीं दूजा कोई। एक अनेकन नाँव तुम्हारे, मो पैं और न होई॥टेक॥ अलख इलाही एक तूँ तूँ हीं राम रहीम। तूँ हीं मालिक मोहना, कैसो नाँउ करीम॥१॥ साँई सिरजनहार तूँ, तूँ पावन तूँ पाक। तूँ काइम करतार तूँ, तूँ हरि हाजिर आप॥२॥ रमिता राजिक एक तूँ, तूँ सारँग सुबहान। कादिर करता एक तूँ, तूँ… Continue reading बाबा नाहीं दूजा कोई / दादू दयाल
तूँ हीं मेरे रसना तूँ हीं मेरे बैना / दादू दयाल
तूँ हीं मेरे रसना तूँ हीं मेरे बैना। तूँ हीं मेरे स्रवना तूँ हीं मेरे नैना॥टेक॥ तूँ हीं मेरे आतम कँवल मँझारी। तूँ हीं मेरे मनसा तुम्ह परिवारी॥१॥ तूँ हीं मेरे मनहीं तूँ ही मेरे साँसा। तूँ हीं मेरे सुरतैं प्राण निवासा॥२॥ तूँ हीं मेरे नख-सिख सकल सरीरा। तूँ हीं मेरे जिय रे ज्यूँ जलनीरा॥३॥… Continue reading तूँ हीं मेरे रसना तूँ हीं मेरे बैना / दादू दयाल
पंडित राम मिलै सो कीजै / दादू दयाल
पंडित राम मिलै सो कीजै। पढ़ि-पढ़ि बेद पुराण बखाने, सोई तत कहि दीजै॥टेक॥ आतम रोगी बिषय बियाधी, सोइ करि औषध सारा। परसत प्राणी होइ परम सुख, छूटै सब संसारा॥१॥ ये गुण इंद्री अगिनि अपारा, तासन जले सरीरा। तन मन सीतल होइ सदा बतावौ, जिहि पँथ पहुँचै पारा। भूल न परै उलट नहिं आवै, सो कुछ… Continue reading पंडित राम मिलै सो कीजै / दादू दयाल
अहो नर नीका है हरिनाम / दादू दयाल
अहो नर नीका है हरिनाम। दूजा नहीं नाँउ बिन नीका, कहिले केवल राम॥टेक॥ निरमल सदा एक अबिनासी, अजर अकल रस ऐसा। दृढ़ गहि राखि मूल मन माहीं, निरख देखि निज कैसा॥१॥ यह रस मीठा महा अमीरस, अमर अनूपम पीवै। राता रहै प्रेमसूँ माता, ऐसैं जुगि जुगि जीवै॥२॥ दूजा नहीं और को ऐसा, गुर अंजन करि… Continue reading अहो नर नीका है हरिनाम / दादू दयाल
जागि रे सब रैण बिहाणी / दादू दयाल
जागि रे सब रैण बिहाणी। जाइ जनम अँजुलीको पाणी॥टेक॥ घड़ी घड़ी घड़ियाल बजावै। जे दिन जाइ सो बहुरि न आवै॥१॥ सूरज-चंद कहैं समुझाइ। दिन-दिन आब घटती जाइ॥२॥ सरवर-पाणी तरवर-छाया। निसदिन काल गरासै काया॥३॥ हंस बटाऊ प्राण पयाना। दादू आतम राम न जाना॥४॥