नहीं रामचरण नहीं था न मदन था न रामस्वरूप कोई और था उस दिन मेरे साथ जिसने सतपुड़ा के जंगलों में भूख की शिकायत की न प्यास की जिसने न छाँह ताकी न पूछा कितना बाक़ी है अभी ठहरने का ठिकाना और
Category: Bhawani Prasad Mishra
आश्वस्त / भवानीप्रसाद मिश्र
हम रात-भर तैरेंगे और अगर डूब नहीं गए सवेरे तक तो कोई न कोई डोंगी छोटी या बड़ी कोई नौका फिर देगी हमें मौक़ा धरती पर पहुँचकर उठल-पुथल करने का !
पीताभ किरन-पंछी / भवानीप्रसाद मिश्र
दूसरे सारे पंछी अपने सारे गीत गा चुके हैं रक्त और नील सारे फूल मेरे आँगन में आ चुके हैं सुनाई नहीं दी एक तुम्हारी ही बोली ओ पीताभ किरण पंछी ओ ठीक कविता की सहोदरा फूल और गीत और धरा सब जैसे धाराहत हैं इस घटना से अनुक्षण रत हैं सब तुम्हारी प्रतीक्षा में… Continue reading पीताभ किरन-पंछी / भवानीप्रसाद मिश्र
क्यों टेरा / भवानीप्रसाद मिश्र
मेरा लहरों पर डेरा तुमने तट से मुझे धरती पर क्यों टेरा दो मुझे अब मुझे वहाँ भी वैसी उथल-पुथल की ज़िन्दगी आदत जो हो गई है डूबने उतराने की तूफ़ानों में गाने की लाओ धरो मेरे सामने वैसी उथल-पुथल की ज़िन्दगी और तब कहो आओ मेरा लहरों पर डेरा तुमने मुझे तट से धरती… Continue reading क्यों टेरा / भवानीप्रसाद मिश्र
चुपचाप उल्लास / भवानीप्रसाद मिश्र
हम रात देर तक बात करते रहे जैसे दोस्त बहुत दिनों के बाद मिलने पर करते हैं और झरते हैं जैसे उनके आस पास उनके पुराने गाँव के स्वर और स्पर्श और गंध और अंधियारे फिर बैठे रहे देर तक चुप और चुप्पी में कितने पास आए कितने सुख कितने दुख कितने उल्लास आए और… Continue reading चुपचाप उल्लास / भवानीप्रसाद मिश्र
ममेदम / भवानीप्रसाद मिश्र
मेरे चलने से हुए हो तुम पथ और रथ हुए हो तुम मेरे रथी होने से रात बनोगे तुम मेरे सोने से और प्रभात मेरे जागने से !
अकर्ता / भवानीप्रसाद मिश्र
तुम तो जब कुछ रचोगे तब बचोगे मैं नाश की संभावना से रहित आकाश की तरह असंदिग्ध बैठा हूँ !
संगीत / भवानीप्रसाद मिश्र
अमरूद से आम पर जा रही है गिलहरी आते-जाते गा रही है गिलहरी इस किचकिच को संगीत हाँ कह सकते हैं भाव है इसमें भावना है भय है चिंता है स्नेह है लय है !
कला-2 / भवानीप्रसाद मिश्र
कोई अलौकिक ही कला हो किसी के पास तो अलग बात है नहीं तो साधारणतया कलाकार को तो लौकिक का ही सहारा है लौकिक के सहारे लोकोपयोगी रचना ही करनी है और ऐसा करते-करते जितनी अलौकिकता आ जाए उतनी अपने भीतर भरनी है कई लोग लोगों को किसी खाई की तरफ़ ले जाएँ ऐसी कुछ… Continue reading कला-2 / भवानीप्रसाद मिश्र
कला-1 / भवानीप्रसाद मिश्र
कला वह है जो सत्य के अनुरूप हो और उठानेवाली हो हमारी पीढ़ियों को यों तो हर लापरवाह साधन बना सकता है गिरने का सीढ़ियों को !