बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये के अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये मगर किसी ने हमे हमसफ़र नही जाना ये और बात के हम साथ साथ सब के गये अब आये हो… Continue reading बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये / फ़राज़
Author: poets
Akhiri Tis Azamane Ko
Akhiri Tis Azamane Ko Ji To Chaha Tha Muskurane Ko Yad Itni Bhi Sakht Jan To Nahin Ik Gharaunda Raha Hai Dahane Ko Sangrezon Main Dhal Gaye Ansu Log Hansate Rahe Dikhane Ko Zakhm-E-Nagma Bhi Lau To Deta Hai Ik Diya Rah Gaya Jalane Ko Jalane Vale To Jal Bujhe Akhir Kaun Deta Khabar Zamane… Continue reading Akhiri Tis Azamane Ko
शायद अभी है राख में कोई शरार भी / ‘अदा’ ज़ाफ़री
शायद अभी है राख में कोई शरार भी क्यों वर्ना इन्तज़ार भी है इज़्तिरार भी ध्यान आ गया है मर्ग-ए-दिल-ए-नामुराद का मिलने को मिल गया है सुकूँ भी क़रार भी अब ढूँढने चले हो मुसाफ़िर को दोस्तो हद्द-ए-निगाह तक न रहा जब ग़ुबार भी हर आस्ताँ पे नासियाफ़र्सा हैं आज वो जो कल न कर… Continue reading शायद अभी है राख में कोई शरार भी / ‘अदा’ ज़ाफ़री
आख़िरी टीस आज़माने को / ‘अदा’ ज़ाफ़री
आख़िरी टीस आज़माने को जी तो चाहा था मुस्कुराने को याद इतनी भी सख़्तजाँ तो नहीं इक घरौंदा रहा है ढहाने को संगरेज़ों में ढल गये आँसू लोग हँसते रहे दिखाने को ज़ख़्म-ए-नग़्मा भी लौ तो देता है इक दिया रह गया जलाने को जलने वाले तो जल बुझे आख़िर कौन देता ख़बर ज़माने को… Continue reading आख़िरी टीस आज़माने को / ‘अदा’ ज़ाफ़री
न ग़ुबार में न गुलाब में मुझे देखना / ‘अदा’ ज़ाफ़री
न ग़ुबार में न गुलाब में मुझे देखना मेरे दर्द की आब-ओ-तब में मुझे देखना किसी वक़्त शाम मलाल में मुझे सोचना कभी अपने दिल की किताब में मुझे देखना किसी धुन में तुम भी जो बस्तियों को त्याग दो इसी रह-ए-ख़ानाख़राब में मुझे देखना किसी रात माह-ओ-नजूम से मुझे पूछना कभी अपनी चश्म पुरआब… Continue reading न ग़ुबार में न गुलाब में मुझे देखना / ‘अदा’ ज़ाफ़री
हर एक हर्फ़-ए-आरज़ू को दास्ताँ किये हुए / ‘अदा’ ज़ाफ़री
हर एक हर्फ़-ए-आरज़ू को दास्ताँ किये हुए ज़माना हो गया है उन को महमाँ किये हुए सुरूर-ए-ऐश तल्ख़ि-ए-हयात ने भुला दिया दिल-ए-हज़ीं है बेकसी को हिज्र-ए-जाँ किये हुए कली कली को गुलिस्ताँ किये हुए वो आयेंगे वो आयेंगे कली कली को गुलिस्ताँ किये हुए सुकून-ए-दिल की राहतों को उन से माँग लूँ सुकून-ए-दिल की राहतों… Continue reading हर एक हर्फ़-ए-आरज़ू को दास्ताँ किये हुए / ‘अदा’ ज़ाफ़री
उजाला दे चराग़-ए-रह-गुज़र / ‘अदा’ ज़ाफ़री
उजाला दे चराग़-ए-रह-गुज़र आसाँ नहीं होता हमेशा हो सितारा हम-सफ़र आसाँ नहीं होता जो आँखों ओट है चेहरा उसी को देख कर जीना ये सोचा था के आसाँ है मगर आसाँ नहीं होता बड़े ताबाँ बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं सहर की राह तकना ता सहर आसाँ नहीं होता अँधेरी कासनी रातें यहीं से… Continue reading उजाला दे चराग़-ए-रह-गुज़र / ‘अदा’ ज़ाफ़री
कोई संग-ए-रह भी चमक उठा / ‘अदा’ ज़ाफ़री
कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहा मेरी रात भी तेरे नाम थी उसे किस ने तीरा-शबी कहा मेरे रोज़ ओ शब भी अजीब थे न शुमार था न हिसाब था कभी उम्र भर की ख़बर न थी कभी एक पल को सदी कहा मुझे जानता भी कोई न था मेरे बे-नियाज़ तेरे सिवा… Continue reading कोई संग-ए-रह भी चमक उठा / ‘अदा’ ज़ाफ़री
ख़ुद हिजाबों सा ख़ुद जमाल सा था / ‘अदा’ ज़ाफ़री
ख़ुद हिजाबों सा ख़ुद जमाल सा था दिल का आलम भी बे-मिसाल सा था अक्स मेरा भी आइनों में नहीं वो भी कैफ़ियत-ए-ख़याल सा था दश्त में सामने था ख़ेमा-ए-गुल दूरियों में अजब कमाल सा था बे-सबब तो नहीं था आँखों में एक मौसम के ला-ज़वाल सा था ख़ौफ़ अँधेरों का डर उजालों से सानेहा… Continue reading ख़ुद हिजाबों सा ख़ुद जमाल सा था / ‘अदा’ ज़ाफ़री
ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह गई / ‘अदा’ ज़ाफ़री
ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह गई लीजिए उन से रस्म-ओ-राह गई आप ही मरकज़-ए-निगाह रहे जाने को चार-सू निगाह गई सामने बे-नक़ाब बैठे हैं वक़्त-ए-हुस्न-ए-मेहर-ओ-माह गई उस ने नज़रें उठा के देख लिया इश्क़ की जुरअत-ए-निगाह गई इंतिहा-ए-जुनूँ मुबारक-बाद पुर्सिश-ए-हाल गाह गाह गई मर मिटे जल्द-बाज़ परवाने अपनी सी शम्मा तो निबाह गई दिल में अज़्म-ए-हरम सही लेकिन उन… Continue reading ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह गई / ‘अदा’ ज़ाफ़री