Ahmed Faraz Archive
अच्छा था अगर ज़ख्म न भरते कोई दिन और उस कू-ए-मलामत में गुजरते कोई दिन और रातों के तेरी यादों के खुर्शीद उभरते आँखों में सितारे से उभरते कोई दिन और हमने तुझे देखा तो किसी और को ना …
जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना मुझे गुमाँ भी ना हो और तुम बदल जाना ये शोलगी हो बदन की तो क्या किया जाये सो लाजमी है तेरे पैरहन का जल जाना तुम्हीं करो कोई दरमाँ, ये …
गुज़र गए कई मौसम कई रुतें बदलीं उदास तुम भी हो यारों उदास हम भी हैं फक्त तुमको ही नहीं रंज-ए-चाक दमानी जो सच कहें तो दरीदा लिबास हम भी हैं तुम्हारे बाम की शम्में भी तब्नक नहीं मेरे फलक …
मैं तो मकतल में भी किस्मत का सिकंदर निकला कुर्रा-ए-फाल मेरे नाम का अक्सर निकला था जिन्हे जोम वो दरया भी मुझी मैं डूबे मैं के सहरा नज़र आता था समंदर निकला मैं ने उस जान-ए-बहारां को बुहत याद किया …
किस को गुमाँ है अबके मेरे साथ तुम भी थे, हाय वो रोज़ो-शब के मेरे साथ तुम भी थे यादश बख़ैर अहदे-गुज़िश्ता की सोहबतें, एक दौर था अजब के मेरे साथ तुम भी थे बे-महरी-ए-हयात की शिद्दत के बावजूद, दिल …
अजब जूनून-ए-मुसाफ़त में घर से निकला था, ख़बर नहीं है कि सूरज किधर से निकला था, ये कौन फिर से उन्हीं रास्तों में छोड़ गया, अभी अभी तो अज़ाब-ए-सफ़र से निकला था, ये तीर दिल में मगर बे-सबब नहीं उतरा, …
जानाँ दिल का शहर, नगर अफ़सोस का है तेरा मेरा सारा सफ़र अफ़सोस का है किस चाहत से ज़हरे-तमन्ना माँगा था और अब हाथों में साग़र अफ़सोस का है इक दहलीज पे जाकर दिल ख़ुश होता था अब तो शहर …
Abr e bahar ab ke bhe barsa prey prey Gulshan ujaar ujaar hen jangal harey harey Janey ye tashnagi he hawas he ke khud kushi jaltey hen sham hi se jo saghar bharey bharey Hai dil ki maut ahd e …
“फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूँ भी नहीं लब-ओ-दहन भी मिला गुफ़्तगू का फ़न भी मिला मगर जो दिल पे गुज़रती है कह सकूँ भी नहीं मेरी ज़ुबाँ की लुक्नत …
सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते-जाते वरना इतने तो मरासिम थे कि आते-जाते शिकवा-ए-जुल्मते-शब से तो कहीं बेहतर था अपने हिस्से की कोई शमअ जलाते जाते कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जाना फिर भी इक उम्र लगी जान …