वो इत्तेफ़ाक़ से रस्ते में मिल गया था मुझे / अख़्तर अंसारी

वो इत्तफ़ाक़ से रस्ते में मिल गया था मुझे मैं देखता था उसे और वो देखता था मुझे अगरचे उसकी नज़र में थी न [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”दोस्ती,प्यार की भावना”]आशनाई[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] मैं जानता हूँ कि बरसों से जानता था मुझे तलाश कर न सका फिर मुझे वहाँ जाकर ग़लत समझ के जहाँ उसने खो दिया था मुझे बिखर… Continue reading वो इत्तेफ़ाक़ से रस्ते में मिल गया था मुझे / अख़्तर अंसारी

साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं / अख़्तर अंसारी

साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं मुँह से कहते हुए ये बात मगर डरते हैं एक तस्वीर-ए-मुहब्बत है जवानी गोया जिस में रंगो की [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”बदले”]एवज़[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] ख़ून-ए-जिगर भरते हैं [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”गुजरे हुए खुशी भरे दिन”]इशरत-ए-रफ़्ता[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] ने जा कर न किया याद हमें इशरत-ए-रफ़्ता को हम याद किया करते हैं आसमां से कभी… Continue reading साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं / अख़्तर अंसारी

सूरज-सा चमकें / अखिलेश श्रीवास्तव ‘चमन’

सुमन बनें हम हर क्यारी के बन उपवन महकें, चलो दोस्त! हम सूरज बनकर धरती पर चमकें! एक धरा है, एक गगन है, सब की खातिर एक पवन है, फिर क्यों बँटा-बँटा-सा मन है? आओ स्नेह-कलश बनकर हम हर उर में छलकें! कहीं खो गया है अपनापन, सब के होठों पर सूनापन, चुप्पी साधे, हर… Continue reading सूरज-सा चमकें / अखिलेश श्रीवास्तव ‘चमन’

उदास कितने थे–गजल / अखिलेश तिवारी

हम उन सवालों को लेकर उदास कितने थे जवाब जिनके यहीं आसपास कितने थे मिली तो आज किसी अजनबी सी पेश आई इसी हयात को लेकर कयास कितने थे हंसी, मज़ाक, अदब, महफिलें, सुखनगोई उदासियों के बदन पर लिबास कितने थे पड़े थे धूल में अहसास के नगीने सब तमाम शहर में गौहरशनाश कितने थे… Continue reading उदास कितने थे–गजल / अखिलेश तिवारी

वक़्त कर दे न पाएमाल मुझे / अखिलेश तिवारी

वक़्त कर दे न पाएमाल मुझे अब किसी शक्ल में तो ढाल मुझे अक़्लवालों में है गुज़र मेरा मेरी दीवानगी संभाल मुझे मैं ज़मीं भूलता नहीं हरगिज़ तू बड़े शौक से उछाल मुझे तजर्बे थे जुदा-जुदा अपने तुमको दाना दिखा था, जाल मुझे और कब तक रहूँ मुअत्तल-सा कर दे माज़ी मेरे बहाल मुझे

मुलाहिज़ा हो मेरी भी उड़ान, पिंजरे में / अखिलेश तिवारी

मुलाहिज़ा हो मेरी भी उड़ान, पिंजरे में अता हुए हैं मुझे दो जहान‍, पिंजरे में है सैरगाह भी और इसमें आबोदाना भी रखा गया है मेरा कितना ध्यान पिंजरे में यहीं हलाक‍ हुआ है परिन्दा ख़्वाहिश का तभी तो हैं ये लहू के निशान पिंजरे में फलक पे जब भी परिन्दों की सफ़ नज़र आई… Continue reading मुलाहिज़ा हो मेरी भी उड़ान, पिंजरे में / अखिलेश तिवारी

ग़मों के नूर में लफ़्जों को ढालने निकले / अखिलेश तिवारी

ग़मों के नूर में लफ़्जों को ढालने निकले गुहरशनास समंदर खंगालने निकले खुली फ़िज़ाओं के आदी हैं ख़्वाब के पंछी इन्हें क़फ़स में कहाँ आप पालने निकले सफ़र है दूर का और बेचराग़ दीवाने तेरे ही ज़िक्र से रातें उजालने निकले शराबखानो कभी महफ़िलों की जानिब हम ख़ुद अपने आप से टकराव टालने निकले सियाह… Continue reading ग़मों के नूर में लफ़्जों को ढालने निकले / अखिलेश तिवारी

कहाँ तलक यूँ तमन्ना को दर-ब-दर देखूँ / अखिलेश तिवारी

कहाँ तलक यूँ तमन्ना को दर-ब-दर देखूँ सफ़र तमाम करूँ मैं भी अपना घर देखूँ सुना है मीर से दुनिया है आइनाख़ाना तो क्यों न फिर इस दुनिया को बन-सँवर देखूँ छिड़ी है जंग मुझे ले के ख़ुद मेरे भीतर फलक की बात रखूँ या शकिस्ताँ पर देखूँ हरेक शय है नज़र में अभी बहुत… Continue reading कहाँ तलक यूँ तमन्ना को दर-ब-दर देखूँ / अखिलेश तिवारी

तू इश्क में मिटा न कभी दार पर गया / अखिलेश तिवारी

तू इश्क में मिटा न कभी दार पर गया नायब ज़िन्दगी को भी बेकार कर गया मिटटी का घर बिखरना था आखिर बिखर गया अच्छा हुआ कि ज़ेहन से आंधी का डर गया बेहतर था कैद से ये बिखर जाना इसलिए ख़ुश्बू की तरह से मैं फिजा में बिखर गया ‘अखिलेश’ शायरी में जिसे ढूंढते… Continue reading तू इश्क में मिटा न कभी दार पर गया / अखिलेश तिवारी

हम उन सवालों को लेकर उदास कितने थे / अखिलेश तिवारी

हम उन सवालों को लेकर उदास कितने थे जवाब जिनके यहीं आसपास कितने थे हंसी, मज़ाक, अदब, महफ़िलें, सुख़नगोई उदासियों के बदन पर लिबास कितने थे पड़े थे धूप में एहसास के नगीने सब तमाम शहर में गोहरशनाश कितने थे