माया / दुष्यंत कुमार

दूध के कटोरे सा चाँद उग आया।
बालकों सरीखा यह मन ललचाया।
(आह री माया!
इतना कहाँ है मेरे पास सरमाया?
जीवन गँवाया!)

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *