नारी / रामनरेश त्रिपाठी

अलि अलकावलि, गुलाब गाल, कंज दृग,
किंशुक सी नाक, कोकिला सी किलकारी है।
पल्लव अधर, कुंद रदन, कपोत ग्रीवा,
श्रीफल उरोज, रोम-राजी लता प्यारी है॥
वापी नाभि, कदली जघन, रंग चंपक-सा
मृदुता सिरीस सी सुरभि सुखकारी है।
ऐसी मनोहारी वृंदावन में निहारी,
कौन जाने वह कोई फुलवारी है कि नारी है॥

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