जब मेरी उपस्थिति मेरे न होने से बेहतर लगने लगे जब मैं एक भी शब्द कहने से पहले दस बार सोचूँ जब बच्चे की सहज किलकारी तक से पड़ता हो किसी की नींद में खलल और जब दोस्तों के अभाव में करना पड़े एकान्त में किसी पत्थर के साथ सलाह-मशवरा तब मैं पड़ता हूँ संघर्ष… Continue reading हिजरत / अग्निशेखर
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जोख़िम / अग्निशेखर
एक लड़की करती है किसी से प्यार सड़कों पर दौड़ने लगती हैं दमकलें साइरन बजाते कवि चढ़ता है अपनी छत पर और मुस्कुराता है कुछ पल वह बदल देता है अपनी कविता का शीर्षक बच निकलती है लड़की
वतन / अग्निशेखर
तुम आते हो यहाँ दूर-दराज़ शहरों में, ओ वतन ! और कौंध जाते हो हर रात लाखों जनों के अलग-अलग सपनों में एक साथ कोई कश्मीरी नहीं जो पहले नींद से उठकर सुनाता नहीं अपने अनुभव तुम ही लू लगने से हमारे गिर पड़ने में गिरते हो राह चलते अचानक साँपों के काटे तुम ही… Continue reading वतन / अग्निशेखर
सुमित्रा / अग्निशेखर
झूठ नहीं बोलेंगी हवाएँ झूठ नहीं बोलेगी पर्वत-शिखरों पर बची हुई थोड़ी-सी बर्फ़ झूठ नहीं बोलेंगे चिनारों के शर्मिन्दा पत्ते उनसे ही पूछो सुमित्रा के मुँह में चीथड़े ठूँसकर उसे कहाँ तक घसीटती ले गई उनकी जीप अपने पीछे बाँधकर हम तो बोलते हैं झूठ कि पहले उसके साथ किया गया था बलात्कार पर हवाएँ… Continue reading सुमित्रा / अग्निशेखर
नर्स सरला भट्ट / अग्निशेखर
उम्हें वह देती है निकालकर अपनी रगों से ख़ून पोंछती है उनके हताहत शरीर साँसों से करती है उनका मरहम दूसरे कमरे में बिस्तर पर निकाली जा रही है उसके एक घायल सम्बन्धी की जान सिहर उठता है उसका रोम-रोम पुलिस को मिलता है चार दिनों के बाद अस्पताल की सड़क पर पड़ा उसका मथा… Continue reading नर्स सरला भट्ट / अग्निशेखर
हम ही / अग्निशेखर
अनुमान लगा सकते हैं हम किसका शव मिला होगा वितस्ता नदी से किसको दी गई होगी फाँसी सेबों के बाग़ में किसको ले गए होंगे घर से उठाकर आँसू किसके गिरे होंगे ओस की तरह घास पर अनुमान लगा सकते हैं हम यहाँ जलावतनी में
कवि लोग / अग्निशेखर
बरसों से भूखी हैं कविताएँ कवि लोग करवा रहे हैं उनसे बंधुआ मज़दूरी शोषण कर रहे हैं भुक्खड़ कवि और आलोचक सो रहे हैं चालान की बहियों पर फड़फड़ा रहे हैं ज़मीन पर पड़े सूखे पतझड़ी पत्ते। बाज़ार में महंगे दामों पर भी उपलब्ध नहीं है कविता की आदिम ख़ुराक न उसकी प्यास के लिए… Continue reading कवि लोग / अग्निशेखर
ललद्यद के नाम-3 / अग्निशेखर
हम पर भी कसी गई फब्तियाँ समय की टेढ़ी आँख ने चुना हमें ही अपनी ही सड़कों पर हमारे पीछे भी लगा वही आदमी जिससे बचने के लिए तुमने मारी थी छलांग तन्दूर में और तुम तो निकलीं थीं स्वर्ग के वस्त्र पहनकर हम- तुम्हारी बेटियाँ झुलस रही हैं इस अलाव में
ललद्यद के नाम-2 / अग्निशेखर
तुम्हारे पास तो भी कच्चा धागा है जिससे तुम खींच रही हो समुद्र में नाव मेरे पास कुछ भी तो नहीं है गरमी के इस कहर में नंगे तलुवों से मापते हुए अन्तहीन रेत सूरज को रोकने की कोशिश है माथे पर धरा मेरे बेख़ून हाथ तुम पार तरने के लिए कर रही हो अपने… Continue reading ललद्यद के नाम-2 / अग्निशेखर
ललद्यद के नाम-1 / अग्निशेखर
तुमने समय के तन्दूर में मारी छलांग और उदित हुई तन ढककर स्वर्ग के वस्त्रों में बिखेरते हुए बर्फ़-सा प्रकाश कहा तुमने, ‘कौन मरेगा और मारेंगे किसको’ तन्दूर में तुम्हारे कूदने और उसमें से निकलने के बीच की वेला में शताब्दियों के बाद आज फिर तप रही है तुम्हारी सन्तान विकल्प की आग में छलांग… Continue reading ललद्यद के नाम-1 / अग्निशेखर