पतझर का झरना देखो तुम / चंद्र कुमार जैन

मधु-मादक रंगों ने बरबस, इस तन का श्रृंगार किया है ! रंग उसी के हिस्से आया, जिसने मन से प्यार किया है ! वासंती उल्लास को केवल, फागुन का अनुराग न समझो ! ढोलक की हर थाप को केवल, मधुऋतु की पदचाप न समझो !! भीतर से जो खुला उसी ने, जीवन का मनुहार किया… Continue reading पतझर का झरना देखो तुम / चंद्र कुमार जैन