सेचता हूँ लिखूं एक गीत किसी छोटी सी बात पर ! सुना है बड़ी-बड़ी बातों पर लिखे गये हैं बड़े-बड़े गीत परन्तु छोटी बात, क्या वास्तव में छोटी होती है ? खान-पान और मद्यपान पर क्यों लिखूँ मैं गीत, क्या यही है कलम के संसार की रीत? जब बिक रही हो जिंदगी रोटी के दो… Continue reading छोटी-सी बात पर / चंद्र कुमार जैन
Category: Chandra Kumar Jain
आलोक का कहाँ डेरा है? / चंद्र कुमार जैन
आलोक से डरा-सहमा अंधेरा आखिर कहाँ जाकर करता बसेरा ? जानता था लीन हो जाएगा एक क्षण में इसलिए आकर बस गया वह आदमी के मन में अब आदमी के मन में अंधेरा है वह सोचता है आलोक का कहाँ डेरा है ?
आश्चर्य क्या है? / चंद्र कुमार जैन
एक क्षण के बाद दूसरा क्षण क्या है, हँसने के बाद रोना पड़े तो आश्चर्य क्या है ? कली जो खिल रही उद्यान की हर डाल पर, दूसरे क्षण टूटकर गिर जाए तो आ चर्य क्या है ? हाथों पर जिसको पाया और गोद में रखकर दुलराया, कांधों पर उसको ले जाना पड़ जाए तो… Continue reading आश्चर्य क्या है? / चंद्र कुमार जैन
एक कदम / चंद्र कुमार जैन
अंधेरा चाहे जितना घना हो पहाड़ चाहे जितना तना हो एक लौ यदि लग जाए एक कदम यदि उठ जाए कम हो जाता है अंधेरे का असर झुक जाती है पहाड़ की भी नज़र अंधेरा तो रौशनी की रहनुमायी है पहाड़ तो प्रेम की परछाईं है सच तो यह है – धाराओं के विपरीत जो… Continue reading एक कदम / चंद्र कुमार जैन
समझौता / चंद्र कुमार जैन
चीर हरण सत्ता की द्रोपदी का जाने कितने सालों से होता रहा है, और मेरे देश का कृष्ण कुंभकरण की तरह सोता रहा है ! अब मत ढूंढा कोई सावित्री या सीता इस देश में क्योंकि प्रजा का रक्षक राम अपने हाथों में धनुष और बाण की जगह घृण और घोटाला लिये फिरता है, और… Continue reading समझौता / चंद्र कुमार जैन
जीवन के गीत लिखो / चंद्र कुमार जैन
जीवन के गीत लिखो ! कितनी भी पीड़ा हो तुम हँसते मीत दिखो संकल्पी आँखों में सूरज के सपने ले अंधियारी रातों में एक दिया बार दो पलको पर जो ठहरे आँसू उनको भी तुम मोती-सी कीमत तो अंतस् का प्यार दो और नई रीत लिखो जीवन के गीत… जीवन की गागर से छलक-छलक जो… Continue reading जीवन के गीत लिखो / चंद्र कुमार जैन
आंचल भर लो / चंद्र कुमार जैन
छोड़ो अब सपनों की बातें बीत गई नींदों की रातें याद रखो पर – नींदों को नीलाम नहीं करना है सपनों को बदनाम नहीं करना है ! बीते पल की धूमिल बातें अब बिसराओ मेरे साथी, सूरज अभिनंदन करता है गले लगाओ मेरे साथी ! यदि बीते से प्रेम अधिक है याद भाहीदों की तुम… Continue reading आंचल भर लो / चंद्र कुमार जैन
बिटिया मेरी / चंद्र कुमार जैन
न जाने खो गयी बिटिया मेरी तीन साल की उम्र से वह मेरी आँखों का नूर चली गई है मुझसे दूर खो गई है पैसों की खनक में बस गई महलों की रौनक में वह मेरी प्यारी शाहजादी सब कहते उसको आजादी
अनुभूति / चंद्र कुमार जैन
चाहता हूँ मन खुले ऊन के गोले की तरह कि बुन सकूँ स्वेटर कविता की… चाहता हूँ धुना जाये यह मन कपास के गट्ठर की तरह कि पिरो सकूँ धागो में जीवन के बिखरे फूलों को कि बना सकूँ एक माला अनुभूति की…
ताना-बाना / चंद्र कुमार जैन
फूल खिले झर गये कॉटे मिले बिखर गये सुख आया चला गया दु:ख आया नहीं रहा मिलना और बिछुड़ जाना यही है जीवन का ताना-बाना नियम बस एक ही है यहॉ जो आज है वह कल नहीं है…