तुम हमारे परिवार के मुखिया हो तुम्हारा लाया हुआ धन मुहैया कराता है हमें अन्न। तुम हो तो हम नहीं कहलातीं हैं अनाथ रिश्तेदारों का आना-जाना त्योहारों पर पकवानों का महकना हमारी माँ का गहना सब तुम्ही हो। तुम हो तो सजता है माँ के माथे सिंदूर तुम हो तो ही वह कर पाती है… Continue reading मुक्ति पर्व / आकांक्षा पारे
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ईश्वर / आकांक्षा पारे
ईश्वर, सड़क बुहारते भीखू से बचते हुए बिलकुल पवित्र पहुँचती हूं तुम्हारे मंदिर में ईश्वर जूठन साफ़ करती रामी के बेटे की नज़र न लगे इसलिए आँचल से ढक कर लाती हूँ तुम्हारे लिए मोहनभोग की थाली ईश्वर दो चोटियां गूँथे रानी आ कर मचले उससे पहले तुम्हारे श्रृंगार के लिए तोड़ लेती हूँ बगिया… Continue reading ईश्वर / आकांक्षा पारे
टुकड़ों में भलाई / आकांक्षा पारे
हर जगह मचा है शोर ख़त्म हो गया है अच्छा आदमी रोज़ आती हैं ख़बरें अच्छे आदमी का साँचा बेच दिया है ईश्वर ने कबाड़ी को ‘अच्छे आदमी होते कहाँ हैं का व्यंग्य मारने से चूकना नहीं चाहता कोई एक दिन विलुप्त होते भले आदमी ने खोजा उस कबाड़ी को और मांग की उस साँचे… Continue reading टुकड़ों में भलाई / आकांक्षा पारे
इस बार / आकांक्षा पारे
इस बार मिलने आओ तो फूलों के साथ र्दद भी लेते आना बांटेंगे, बैठकर बतियाएंगे मैं भी कह दूंगी सब मन की। इस बार मिलने आओ तो जूतों के साथ तनाव भी बाहर छोड़ आना मैं कांधे पे तुम्हारे रखकर सिर सुनाऊंगी रात का सपना। इस बार मिलने आओ तो आने की मुश्किलों के साथ… Continue reading इस बार / आकांक्षा पारे
औरत के शरीर में लोहा / आकांक्षा पारे
औरत लेती है लोहा हर रोज़ सड़क पर, बस में और हर जगह पाए जाने वाले आशिकों से उसका मन हो जाता है लोहे का बचनी नहीं संवेदनाएँ बड़े शहर की भाग-दौड़ के बीच लोहे के चने चबाने जैसा है दफ़्तर और घर के बीच का संतुलन कर जाती है वह यह भी आसानी से… Continue reading औरत के शरीर में लोहा / आकांक्षा पारे
सलवटें / आकांक्षा पारे
जो चुभती हैं तुम्हें वो निगाहें नहीं हैं लोगों की वो सलवटें हैं मेरे बिस्तर की जो बन जाती हैं अकसर रात भर करवटें बदलते हुए।
एक टुकड़ा आसमान / आकांक्षा पारे
लड़की के हिस्से में है खिड़की से दिखता आसमान का टुकड़ा खुली सड़क का मुँहाना एक व्यस्त चौराहा और दिन भर का लम्बा इन्तज़ार। खिड़की पर तने परदे के पीछे से उसकी आँखें जमी रहती हैं व्यस्त चौराहे की भीड़ में खोजती हैं निगाहें रोज एक परिचित चेहरा। अब चेहरा भी करता है इन्तज़ार दो… Continue reading एक टुकड़ा आसमान / आकांक्षा पारे
रिश्ते / आकांक्षा पारे
बिना आवाज़ टूटते हैं रिश्ते या उखड़ जाते हैं जैसे धरती का सीना फाड़े मजबूती से खड़ा कोई दरख़्त आंधी से हार कर छोड़ देता है अपनी जड़े!
भरोसा / आकांक्षा पारे
भरोसा बहुत ज़रूरी है इन्सान का इन्सान पर यदि इन्सान तोड़ता है यकीन तब इन्सान ही कायम करता है इसे दोबारा भरोसे ने ही जोड़ रखें हैं पड़ोस भरोसे पर ही चलती है कारोबारी दुनिया भरोसे पर ही आधी दुनिया उम्मीद करती है अच्छे कल की आज भी सिर्फ़ भरोसे पर ही ब्याह दी जाती… Continue reading भरोसा / आकांक्षा पारे
घर / आकांक्षा पारे
सड़क किनारे तनी हैं सैकड़ों नीली, पीली पन्नियाँ ठिठुरती रात झुलसते दिन गीली ज़मीन टपकती छत के बावजूद गर्व से वे कहते हैं उन्हें घर उन घरों में हैं चूल्हे की राख पेट की आग सपनों की खाट हौसले का बक्सा उम्मीद का कनस्तर कल की फ़िक्र किए बिना वे जीते हैं आज कभी अतिक्रमण… Continue reading घर / आकांक्षा पारे