वो रतजगा था कि अफ़्सून-ए-ख़्वाब तारी था दिए की लौ पे सितारों का रक़्स जारी था मैं उस को देखता था दम-ब-ख़ुद था हैराँ था किसे ख़बर वो कड़ा वक़्त कितना भारी था गुज़रते वक़्त ने क्या क्या न चारा साज़ी की वगरना ज़ख़्म जो उस ने दिया था कारी था दयार-ए-जाँ में बड़ी देर… Continue reading वो रतजगा था कि अफ़्सून-ए-ख़्वाब तारी था / अख़्तर होश्यारपुरी
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उफ़ुक़ उफ़़ुक़ नए सूरज निकलते रहते हैं / अख़्तर होश्यारपुरी
उफ़ुक़ उफ़़ुक़ नए सूरज निकलते रहते हैं दिए जलें न जलें दाग़ जलते रहते हैं मिरी गली के मकीं ये मिरे रफ़ीक़-ए-सफ़र ये लोग वो हैं जो चेहरे बदलते रहते हैं ज़माने को तो हमेशा सफ़र में रहना है जो क़ाफ़िले न चले रस्ते चलते रहते हैं हज़ार संग-ए-गिराँ हो हज़ार जब्र-ए-ज़माँ मगर हयात के… Continue reading उफ़ुक़ उफ़़ुक़ नए सूरज निकलते रहते हैं / अख़्तर होश्यारपुरी
तिलिस्म-ए-गुम्बद-ए-बे-दर किसी पे वा न हुआ / अख़्तर होश्यारपुरी
तिलिस्म-ए-गुम्बद-ए-बे-दर किसी पे वा न हुआ शरर तो लपका मगर शोला-ए-सदा न हुआ हमें ज़माने ने क्या क्या न आइने दिखलाए मगर वो अक्स जो आईना-आशना न हुआ बयाज़-ए-जाँ में सभी शेर ख़ूब-सूरत थे किसी भी मिसरा-ए-रंगीं का हाशिया न हुआ न जाने लोग ठहरते हैं वक़्त-ए-शाम कहाँ हमें तो घर में भी रूकने का… Continue reading तिलिस्म-ए-गुम्बद-ए-बे-दर किसी पे वा न हुआ / अख़्तर होश्यारपुरी
थी तितलियों के तआक़ुब में ज़िंदगी मेरी / अख़्तर होश्यारपुरी
थी तितलियों के तआक़ुब में ज़िंदगी मेरी वो शहर क्या हुआ जिस की थी हर गली मेरी मैं अपनी ज़ात की तशरीह करता फिरता था न जाने फिर कहाँ आवाज़ खो गई मेरी ये सरगुज़िश्त-ए-ज़माना ये दास्तान-ए-हयात अधूर बात में भी रह गई कमी मेरी हवा-ए-कोह-ए-निदा इक ज़रा ठहर कि अभी ज़माना ग़ौर से सुनता… Continue reading थी तितलियों के तआक़ुब में ज़िंदगी मेरी / अख़्तर होश्यारपुरी
मेरे लहू में उस ने नया रंग भर दिया / अख़्तर होश्यारपुरी
मेरे लहू में उस ने नया रंग भर दिया सूरज की रौशनी ने बड़ा काम कर दिया हाथों पे मेरे अपने लहू का निशान था लोगों ने उस के क़त्ल का इल्ज़ाम धर दिया गंदुम का बीज पानी की छागल और इक चराग़ जब मैं चला तो उस ने ये ज़ाद-ए-सफ़र दिया जागा तो माहताब… Continue reading मेरे लहू में उस ने नया रंग भर दिया / अख़्तर होश्यारपुरी
मंज़िलों के फ़ासले दीवार-ओ-दर में रह गए / अख़्तर होश्यारपुरी
मंज़िलों के फ़ासले दीवार-ओ-दर में रह गए क्या सफ़र था मेरे सारे ख़्वाब घर में रह गए अब कोई तस्वीर भी अपनी जगह क़ाएम नहीं अब हवा के रंग ही मेरी नज़र में रह गए जितने मंज़र थे मिरे हम-राह घर तक आए हैं और पस-ए-मंज़र सवाद-ए-रह-गुज़र में रह गए अपने क़दमों के निशाँ भी… Continue reading मंज़िलों के फ़ासले दीवार-ओ-दर में रह गए / अख़्तर होश्यारपुरी
क्या पूछते हो मुझ से कि मैं किस नगर का था / अख़्तर होश्यारपुरी
क्या पूछते हो मुझ से कि मैं किस नगर का था जलता हुआ चराग़ मिरी रह-गुज़र का था हम जब सफ़र पे निकले थे तारों की छाँव थी फिर अपे हम-रिकाब उजाला सहर का था साहिल की गीली रेत ने बख़्शा था पैरहन जैसे समुंदरों का सफ़र चश्म-ए-तर का था चेहरे पे उड़ती गर्द थी… Continue reading क्या पूछते हो मुझ से कि मैं किस नगर का था / अख़्तर होश्यारपुरी
किसे ख़बर जब मैं शहर-ए-जाँ से गुज़र रहा था / अख़्तर होश्यारपुरी
किसे ख़बर जब मैं शहर-ए-जाँ से गुज़र रहा था ज़मीं थी पहलू में सूरज इक कोस पर रहा था हवा में ख़ुशबुएँ मेरी पहचान बन गई थीं मैं अपनी मिट्टी से फूल बन कर उभर रहा था अजीब सरगोशियों का आलम था अंजुमन में मैं सुन रहा था ज़माना तन्क़ीद कर रहा था वो कैसी… Continue reading किसे ख़बर जब मैं शहर-ए-जाँ से गुज़र रहा था / अख़्तर होश्यारपुरी
ख़्वाहिशें इतनी बढ़ीं इंसान आधा रह गया / अख़्तर होश्यारपुरी
ख़्वाहिशें इतनी बढ़ीं इंसान आधा रह गया ख़्वाब जो देखा नहीं वो अभी अधूरा रह गया मैं तोउस के साथ ही घर से निकल कर आ गया और पीछे एक दस्तक एक साए रह गया उस को तो पैराहनों से कोई दिलचस्पी न थी दुख तो ये है रफ़्ता रफ़्ता मैं भी नंगा रह गया… Continue reading ख़्वाहिशें इतनी बढ़ीं इंसान आधा रह गया / अख़्तर होश्यारपुरी
ख़्वाब-महल में कौन सर-ए-शाम आ कर पत्थर मारता है / अख़्तर होश्यारपुरी
ख़्वाब-महल में कौन सर-ए-शाम आ कर पत्थर मारता है रोज़ इक ताज़ा काँच का बर्तन हाथ से गिर कर टूटता है मकड़ी ने दरवाज़े पे जाले दूर तलक बुन रक्खे हैं फिर भी कोई गुज़रे दिनों की ओट से अंदर झाँकता हैं शोर सा उठता रहता है दीवारें बोलती रहती हैं शाम अभी तक आ… Continue reading ख़्वाब-महल में कौन सर-ए-शाम आ कर पत्थर मारता है / अख़्तर होश्यारपुरी