तुम उस परिन्दे की तरह कब तक डैने फड़फड़ाओगे जिसकी गर्दन पर रखा हुआ है चाहत का चाकू उड़ान भरने से पहले ही तुमने खो दिए हैं अपने पंख प्यास बुझने के पहले ही विष पी लिया अमृत पान के लिए तुम्हारे जैसा कौन मरता है लालसाओं के जलसाघरों में तिल-तिल, घुट-घुट कर न तुम्हें… Continue reading आखेट / आग्नेय
Tag: शेर
सिर्फ़ प्रतीक्षा / आग्नेय
कहीं कोई सूखा पेड़ फिर हरा हो गया। कहीं कोई बादलों पर फिर इन्द्रधनुष लिख गया। कहीं कोई शाम का सूरज फिर डूब गया। हम भुतही पुलियों पर पतलूनों की जेबों में बादल, इन्द्रधनुष, डूबते सूरज भरे किसकी प्रतीक्षा करते हैं। अरे! वह हरा पेड़ तो फिर से सूख गया! अरे! वह लिखा इन्द्रधनुष फिर… Continue reading सिर्फ़ प्रतीक्षा / आग्नेय
मेरा घर / आग्नेय
यह घर जो मेरा घर है मेरे लिए अपमान का घर हो गया है इसकी हर चीज़ जो मेरे लिए लाई गई अचानक मुझसे ही घृणारत है। इस अपमान के घर को अब मुझे छोड़कर जाना ही होगा रेत का महल है मेरा घर, अपमान का घर इसी तरह का होता है ताश का घर… Continue reading मेरा घर / आग्नेय
डसने के पहले / आग्नेय
यद्यपि उसने डसने से पहले कई रंग बदले वह गिरगिट नहीं था बदलते रंगों का यह परिवर्तन सिर्फ़ प्रकृति की माया नहीं थी उसकी आत्मा भी भूरी मटमैली और काली थी रंग बदलने वाली उसकी चमड़ी की तरह दरअसल वह गिरगिट था ही नहीं वह साँप था डसे जाने के पहले उसे ऎसा प्रमाणित करने… Continue reading डसने के पहले / आग्नेय
नमक / आग्नेय
उसने कहा : तुम पृथ्वी का नमक बनो वह हाड़-माँस का पुतला बना रहा किसी ने सुई की नोंक चुभा दी करता रहा वह अरण्य-रुदन काल-रात्रि के भय से। किसी ने गुदगुदा दिया खिलखिलता रहा नंदन-वन जैसा। कभी किसी ने बैठा दिया रत्न-जड़ित सिंहासन पर अपनी बत्तीसी दिखा अकड़ गया कंकाल-सा किसी ने गिरा दिया,… Continue reading नमक / आग्नेय
दीमक-समय / आग्नेय
मैं दुधारी तलवार के लिए खड़ा हूँ समय के खिलाफ़ पंख वाले चींटे के पास जितना समय है उतना ही समय है दीमक-समय जीवन का सब कुछ चाट जाएगा गिद्ध-समय शरीर के सारे अंग भकोस लेगा दुधारी तलवार के लिए खड़ा रहेगा मेरा कंकाल क्यों खड़ा हूँ ? फिर भी मैं दुधारी तलवार लिए समय… Continue reading दीमक-समय / आग्नेय
सिर्फ़ प्रतीक्षा / आग्नेय
कहीं कोई सूखा पेड़ फिर हरा हो गया। कहीं कोई बादलों पर फिर इन्द्रधनुष लिख गया। कहीं कोई शाम का सूरज फिर डूब गया। हम भुतही पुलियों पर पतलूनों की जेबों में बादल, इन्द्रधनुष, डूबते सूरज भरे किसकी प्रतीक्षा करते हैं। अरे! वह हरा पेड़ तो फिर से सूख गया! अरे! वह लिखा इन्द्रधनुष फिर… Continue reading सिर्फ़ प्रतीक्षा / आग्नेय
उसके लिए / आग्नेय
रात में जिसे प्यार करता हूँ दिन में उससे ही घृणा करता हूँ अंधकार में ही खड़े रहें सब स्थगित रहे सूर्य का प्रकाश जब तक मैं बचा हूँ जानता हूँ रचा गया है सूर्य जीवन के लिए अंधकार भी तो रचा गया है प्रेम के लिए अंतत: मुझे अंधकार में उसके साथ उसके प्रेम… Continue reading उसके लिए / आग्नेय
शिखर पर बौने / आग्नेय
नहीं ले सका दीमक से उसका विध्वंस मधुमक्खियों से उनका रस तितलियों से उनका रंग चींटियों से उनका गौरव नहीं ले सका सर्वहारा से उनका साहस मित्रों से उनकी आत्मीयता मनुष्यों से उनका सम्मान अपनी दरिद्रता ओढे हुए सोता रहा विद्वानों की सभाओं में अपनी ही ग्लानि पोते हुए मुख पर दिखता रहा सबको सब… Continue reading शिखर पर बौने / आग्नेय
अंत में मैं ही हँसूंगा / आग्नेय
अंत में मैं ही हँसूंगा सर्वप्रथम मैं ही रहूंगा अन्तिम होने पर भी राख की ढेरी होते हुए भी ज्वालामुखी-सा धधकूंगा काफ़्का का किला होकर भी खुले हुए आँगन की तरह खुला रहूँगा गिलहरियोंके लिए उनकी चंचलता चिडियों के लिए उनकी प्रसन्नता चींटियों के लिए उनका अन्न नदियों के लिए उनका जल उदास मनुष्यों की… Continue reading अंत में मैं ही हँसूंगा / आग्नेय