वो हुस्न जिसको देख के कुछ भी कहा न जाए / खलीलुर्रहमान आज़मी

वो हुस्न जिसको देख के कुछ भी कहा न जाए दिल की लगी उसी से कहे बिन रहा न जाए । क्या जाने कब से दिल में है अपना बसा हुआ ऐसा नगर कि जिसमें कोई रास्ता न जाए । दामन रफ़ू करो कि बहुत तेज़ है हवा दिल का चिराग़ फिर कोई आकर बुझा… Continue reading वो हुस्न जिसको देख के कुछ भी कहा न जाए / खलीलुर्रहमान आज़मी

कोई तुम जैसा था, ऐसा ही कोई चेहरा था / खलीलुर्रहमान आज़मी

कोई तुम जैसा था, ऐसा ही कोई चेहरा था याद आता है कि इक ख़्वाब कहीं देखा था । रात जब देर तलक चाँद नहीं निकला था मेरी ही तरह से ये साया मेरा तनहा था । जाने क्या सोच के तुमने मेरा दिल फेर दिया मेरे प्यारे, इसी मिट्टी में मेरा सोना था ।… Continue reading कोई तुम जैसा था, ऐसा ही कोई चेहरा था / खलीलुर्रहमान आज़मी

कहूँ ये कैसे के जीने का हौसला देते / खलीलुर्रहमान आज़मी

कहूँ ये कैसे के जीने का हौसला देते मगर ये है कि मुझे गम कोई नया देते शब्-ए-गुज़श्ता बहुत तेज़ चल रही थी हवा सदा तो दी पे कहाँ तक तुझे सदा देते कई ज़माने इसी पेच-ओ-ताब में गुज़रे के आस्मां को तेरे पाँवों पर झुका देते हुई थी हमसे जो लग्जिश तो थाम लेना… Continue reading कहूँ ये कैसे के जीने का हौसला देते / खलीलुर्रहमान आज़मी

तेरी सदा का है सदियों से इन्तेज़ार मुझे / खलीलुर्रहमान आज़मी

तेरी सदा का है सदियों से इंतज़ार मुझे मेरे लहू के समुन्दर जरा पुकार मुझे मैं अपने घर को बुलंदी पे चढ़ के क्या देखूं उरूज-ए-फ़न मेरी दहलीज़ पर उतार मुझे उबलते देखी है सूरज से मैंने तारीकी न रास आएगी ये सुब्ह-ए-ज़रनिगार मुझे कहेगा दिल तो मैं पत्थर के पाँव चूमूंगा ज़माना लाख करे… Continue reading तेरी सदा का है सदियों से इन्तेज़ार मुझे / खलीलुर्रहमान आज़मी

तुझसे बिछड़ के दिल की सदा कू-ब-कू गई / खलीलुर्रहमान आज़मी

तुझसे बिछड़ के दिल की सदा कू-ब-कू गई ले आज दर्द-ए-इश्क की भी आबरू गई वो रतजगे रहे न वो नींदों के काफ़िले वो शाम-ए-मैकदा वो शब्-ए-मुश्कबू गई दुनिया अजब जगह है कहीं जी बहल न जाए तुझसे भी दूर आज तेरी आरज़ू गई कितनी अजीब शै थी मगर ख्वाहिश-ए-विसाल जो तेरी हो के भी… Continue reading तुझसे बिछड़ के दिल की सदा कू-ब-कू गई / खलीलुर्रहमान आज़मी

नश्शा-ए-मय के सिवा कितने नशे और भी हैं / खलीलुर्रहमान आज़मी

नश्शा-ए-मय के सिवा कितने नशे और भी हैं कुछ बहाने मेरे जीने के लिए और भी हैं ठंडी-ठंडी सी मगर गम से है भरपूर हवा कई बादल मेरी आँखों से परे और भी हैं ज़िंदगी आज तलक जैसे गुज़ारी है न पूछ ज़िंदगी है तो अभी कितने मजे और भी हैं हिज्र तो हिज्र था… Continue reading नश्शा-ए-मय के सिवा कितने नशे और भी हैं / खलीलुर्रहमान आज़मी

वंदे मातरम् / कन्हैयालाल दीक्षित ‘इंद्र’

बोलियो सब मिल महाशय मंत्र वंदे मातरम्, तीनों भुवन में गूंज जाए शब्द वंदे मातरम्। बन जाए सुखदाई हमारा मंत्र वंदे मातरम्, हो हमारी पाठ-पूजा मंत्र वंदे मातरम्। मंदिर व मस्जिद और गुरुद्वारा व गिरजा हो यही, मज़हब बने हम सभी का एक वंदे मातरम्। हाथ में हो हथकड़ी और बेड़ियां हों पांव में, गाएंगे… Continue reading वंदे मातरम् / कन्हैयालाल दीक्षित ‘इंद्र’

खुला है झूठ का बाज़ार आओ सच बोलें / क़तील

खुला है झूट का बाज़ार आओ सच बोलें न हो बला से ख़रीदार आओ सच बोलें सुकूत छाया है इंसानियत की क़द्रों पर यही है मौक़ा-ए-इज़हार आओ सच बोलें हमें गवाह बनाया है वक़्त ने अपना ब-नाम-ए-अज़मत-ए-किरदार आओ सच बोलें सुना है वक़्त का हाकिम बड़ा ही मुंसिफ़ है पुकार कर सर-ए-दरबार आओ सच बोलें… Continue reading खुला है झूठ का बाज़ार आओ सच बोलें / क़तील

विसाल की सरहदों तक आ कर जमाल तेरा पलट गया है / क़तील

विसाल की सरहदों तक आ कर जमाल तेरा पलट गया है वो रंग तू ने मेरी निगाहों पे जो बिखेरा पलट गया है कहाँ की ज़ुल्फ़ें कहाँ के बादल सिवाए तीरा-नसीबों के मेरी नज़र ने जिसे पुकारा वही अँधेरा पलट गया है न छाँव करने को है वो आँचल न चैन लेने को हैं वो… Continue reading विसाल की सरहदों तक आ कर जमाल तेरा पलट गया है / क़तील

तड़पती हैं तमन्नाएँ किसी आराम से पहले / क़तील

तड़पती हैं तमन्नाएँ किसी आराम से पहले लुटा होगा न यूँ कोई दिल-ए-ना-काम से पहले ये आलम देख कर तू ने भी आँखें फेर लीं वरना कोई गर्दिश नहीं थी गर्दिश-ए-अय्याम से पहले गिरा है टूट कर शायद मेरी तक़दीर का तारा कोई आवाज़ आई थी शिकस्त-ए-जाम से पहले कोई कैसे करे दिल में छुपे… Continue reading तड़पती हैं तमन्नाएँ किसी आराम से पहले / क़तील