ख़ून की कमी / एकांत श्रीवास्तव

टीकाटीक दोपहर में भरी सड़क चक्कर खा कर गिरती है रुकमनी ख़ून की कमी है कहते हैं डाक्टर क्या करे रुकमनी ख़ुद को देखे कि तीन बच्चों को पति ख़ुद मरीज़ खाँसता हुआ खींचता रिक्शा आठ-आठ घरॊं में झाड़ू-बरतन करती रुकमनी चक्करघिन्नी-सी काटती चक्कर बच्चों का मुँह देखती है तो सूख जाता है उसका ख़ून… Continue reading ख़ून की कमी / एकांत श्रीवास्तव

नोट गिनने वाली मशीन / एकांत श्रीवास्तव

ऎसी कोई मशीन नहीं जो सपने गिन सके सपने जो धरती पर फैल जाते हैं जैसे बीज हों फूलों के ऎसी कोई मशीन नहीं जो गिन सके इच्छाओं को उस प्रत्येक कम्पन को जो अन्याय और यातना के विरोध में पैदा होता है दहशत पैदा करती है नोटॊं की फड़फड़ाहट कोई पीता है चांदी के… Continue reading नोट गिनने वाली मशीन / एकांत श्रीवास्तव

नहीं आने के लिए कहकर / एकांत श्रीवास्तव

नहीं आने के लिए कह कर जाऊंगा और फिर आ जाऊंगा पवन से, पानी से, पहाड़ से कहूंगा– नहीं आऊंगा दोस्तों से कहूंगा और ऎसे हाथ मिलाऊंगा जैसे आख़िरी बार कविता से कहूंगा– विदा और उसका शब्द बन जाऊंगा आकाश से कहूंगा और मेघ बन जाऊंगा तारा टूटकर नहीं जुड़ता मैं जुड़ जाऊंगा फूल मुरझा… Continue reading नहीं आने के लिए कहकर / एकांत श्रीवास्तव

लोहा / एकांत श्रीवास्तव

जंग लगा लोहा पांव में चुभता है तो मैं टिटनेस का इंजेक्शन लगवाता हूँ लोहे से बचने के लिए नहीं उसके जंग के संक्रमण से बचने के लिए मैं तो बचाकर रखना चाहता हूँ उस लोहे को जो मेरे खून में है जीने के लिए इस संसार में रोज़ लोहा लेना पड़ता है एक लोहा… Continue reading लोहा / एकांत श्रीवास्तव

रास्ता काटना / एकांत श्रीवास्तव

भाई जब काम पर निकलते हैं तब उनका रास्ता काटती हैं बहनें बेटियाँ रास्ता काटती हैं काम पर जाते पिताओं का शुभ होता है स्त्रियों का यों रास्ता काटना सूर्य जब पूरब से निकलता होगा तो नीहारिकाएँ काटती होंगी उसका रास्ता ऋतुएँ बार-बार काटती हैं इस धरती का रास्ता कि वह सदाबहार रहे पानी गिरता… Continue reading रास्ता काटना / एकांत श्रीवास्तव

ताजमहल / एकांत श्रीवास्तव

तुम प्रेम करो मगर ताजमहल के बारे में मत सोचो यों भी यह साधारण प्रेमियों की हैसियत से बाहर की वस्तु है अगर तुम उस स्त्री को- जिससे तुम प्रेम करते हो- कुछ देना चाहते हो तो बेहतर है कि जीवन रहते दो मसलन कातिक की क्यारी से कोई बड़ा पीला गेंदे का फूल यह… Continue reading ताजमहल / एकांत श्रीवास्तव

पत्तों के हिलने की आवाज़ / एकांत श्रीवास्तव

तुम एक फूल को सूँघते हो तो यह उस फूल की महक है शब्दों की महक से गमकता है काग़ज़ का हृदय कस्तूरी की महक से जंगल और मनुष्य की महक से धरती धरती की महक मनुष्य की महक से बड़ी है मगर धरती स्वयं मनुष्य की महक और आवाज़ और स्वप्न से बनी है… Continue reading पत्तों के हिलने की आवाज़ / एकांत श्रीवास्तव

दुःख / एकांत श्रीवास्तव

दु:ख जब तक हृदय में था था बर्फ़ की तरह पिघला तो उमड़ा आँसू बनकर गिरा तो जल की तरह मिट्टी में रिस गया भीतर बीज तक बीज से फूल तक यह जो फूल खिला है टहनी पर इसे देखकर क्या तुम कह सकते हो कि इसके जन्म का कारण एक दु:ख था?

बिजली / एकांत श्रीवास्तव

बिजली गिरती है और एक हरा पेड़ काला पड़ जाता है फिर उस पर न पक्षी उतरते हैं न वसंत एक दिन एक बढ़ई उसे काटता है और बैलगाड़ी के पहिये में बदल देता है दुख जब बिजली की तरह गिरता है तब राख कर देता है या देता है नया एक जन्म।

नमक बेचने वाले / एकांत श्रीवास्तव

(विशाखापट्टनम की सड़कों पर नमक बेचने वालों को देखकर) ऋतु की आँच में समुद्र का पानी सुखाकर नमक के खेतों से बटोरकर सफ़ेद ढेले वे आते हैं दूर गाँवों से शहर की सड़कों पर नमक बेचने वाले काठ की दो पहियों वाली हाथगाड़ी को कमर में फँसाकर खींचते हुए ऐसे समय में जब लगातार कम… Continue reading नमक बेचने वाले / एकांत श्रीवास्तव