सूरज उग के ढल गया अस्त हो गया जाने कितनी बार तवे की तरह तपने लगी धरती जेठ की भरी दुपहरी में भन्नाए बादलों की तरह जिस राह रूठ के चली गयी थीं तुम उसी राह पर मन की रीती छांगल ले आज भी खड़ा हूं मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में।
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साथ-साथ / ओम नागर
तुम निश्चय कर लेतीं तो यूं निरूद्देश्य न होता जीवन। ठंूठ के माथे पर फूट आती दो कोंपलें हथेली की रेखाओं से निराली नहीं होती भाग्य की कहानी। तुम विचार लेतीं तो यूं न धसकती चौमासे में भीत घर-आंगनों के मांडणों पे नहीं फिरता पानी पिछली दीवारों पर चित्रित मोरनी नहीं निगलती हीरों का हार।… Continue reading साथ-साथ / ओम नागर
नाप / ओम नागर
बड़े से बड़े दरजी के भी बस में नहीं है प्रेम का सही-सही नाप लेना। क्षणिक होते है प्रेम की काया के दर्शन जो किसी को दिखते हुए भी नहीं दिखता और नहीं सुहाता किसी को फूटी आंख। अपने-अपने फीतों से लेना चाहते है सबके सब अलग-अलग नाप उद्धव बेचारा कितना ही फिर लें ज्ञान… Continue reading नाप / ओम नागर
हिलोर / ओम नागर
ऐसा तो कैसे हो सकता है कि तुम जो भी कहो मान लूं मैं उसे सच कि इस किनारे से उस किनारे तक के बीच नहीं है अब अंजुरी भर पानी । कि बचपन में नदी की रेत से बनाए गए घर-आंगन ढह गए हैं वक्त की मार से कि नदी के पेट में नहीं… Continue reading हिलोर / ओम नागर
थारी ओळ्यूं को मतलब / ओम नागर
थारी ओळ्यूं को मतलब बिसर जाबो खुद कै तांई। जिनगाणी का खेत में दूरै, घणै दूरै तांई हाल बी दीखै छै तूं ऊमरा ओरती भविस का बीज मुट्ठी में ल्यां। थारी-म्हारी आंख्यां में भैंराती जळ भरी बादळ्यां ज्ये बरसै तो तोल पाड़ द्यै छै कै कोई न्हं अब आपण एक दूजा कै ओळै-दोळै लाख जतन… Continue reading थारी ओळ्यूं को मतलब / ओम नागर
प्रेम-पांच / ओम नागर
प्रेम- आंधो होता सतां बी टटोळ ल्ये छै ज्ये सांस की तताई पिछाण ल्ये छै ज्ये प्रीत को असल उणग्यारो।
प्रेम-च्यार / ओम नागर
प्रेम- आंख की कोर पे धर्यो एक सुपनो ज्ये रोज आंसू की गंगा में करै छै अस्नान अर निखर जावै छै दूणो।
प्रेम-तीन / ओम नागर
प्रेम- साचो सुमिरण राधे-कृष्ण राधे-श्याम राधे-मोहन सीता-राम हीर-रांझा लैला-मजनूं तूं अर म्हूं म्हूं अर तूं।
प्रेम-दोय / ओम नागर
प्रेम- दिवलां कै ओळी-दोळी तीतर्यां की फरक्यां व्हां तांई ज्यां तांई संदी बळ’र न्हं हो जावै भसम।
प्रेम-एक / ओम नागर
प्रेम- होवै तो होज्यां न्हं होवै तो न्हं होवै प्रेम के सामै सब बेबस।