पुराने उजाड़ मकानों में खेतों-मैदानों में ट्रेन की पटरियों के किनारे सड़क किनारे घूरों में उगी हैं जो लताएँ जंगली करेले की वहीं से तोड़कर लाती हैं तीन बच्चियाँ छोटे-छोटे करेले गहरे हरे कुछ काई जैसे रंग के और मोल-भाव के बाद तीन रुपए में बेच जाती हैं उन तीन रुपयों को वे बांट लेती… Continue reading करेले बेचने आई बच्चियाँ / एकांत श्रीवास्तव
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पाणिग्रहण / एकांत श्रीवास्तव
जिसे थामा है अग्नि को साक्षी मानकर साक्षी मानकर तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं को एक अधूरी कथा है यह जिसे पूरा करना है इसे छोड़ूंगा तो धरती डोल जाएगी ।
यात्रा / एकांत श्रीवास्तव
नदियां थीं हमारे रास्ते में जिन्हें बार-बार पार करना था एक सूर्य था जो डूबता नहीं था जैसे सोचता हो कि उसके बाद हमारा क्या होगा एक जंगल था नवम्बर की धूप में नहाया हुआ कुछ फूल थे हमें जिनके नाम नहीं मालूम थे एक खेत था धान का पका जो धारदार हंसिया के स्पर्श… Continue reading यात्रा / एकांत श्रीवास्तव
पिता के लिए शोकगीत-4 / एकांत श्रीवास्तव
आधी राह तक आए पिता मेरे साथ और उंगली छोड़ दी घर के दर्पण ने दिनों तक याद किया उस एक चेहरे को जो अब उसमें नहीं झाँकता रसोई की एक खाली जगह पर दिनों तक डोलती रही उदासी जहाँ अब कोई थाली परोसी नहीं जाती आंगन में खाली पड़ी रही दिनों तक आराम-कुर्सी बंद… Continue reading पिता के लिए शोकगीत-4 / एकांत श्रीवास्तव
पिता के लिए शोकगीत-3 / एकांत श्रीवास्तव
इस रास्ते पर पड़े हैं फूल लाई और सिक्के इस रास्ते पर गिरे हैं आँसू एक शव आज ले जाया गया है इस रास्ते से इस सन्नाटे में खो गई है किसी के कंठ की लोरी इस धूल में मिल गया है एक स्त्री के जीवन का सबसे सुंदर रंग पेड़ स्तब्ध हैं कि इस… Continue reading पिता के लिए शोकगीत-3 / एकांत श्रीवास्तव
पिता के लिए शोकगीत-2 / एकांत श्रीवास्तव
आदमी अकेला नहीं मरता मरता है घर का एक-एक जन थोड़ी-थोड़ी सी मौत मर जाती है झोलों में भरकर बाज़ार से आनेवाली खुशी आटे के बिना कनस्तर और रोटी के बिना चूल्हा मर जाता है मर जाता है तेल के बिना हर साँझ जलने वाला दिया दिये के बिना मर जाती है देहरी घर की… Continue reading पिता के लिए शोकगीत-2 / एकांत श्रीवास्तव
पिता के लिए शोकगीत-1 / एकांत श्रीवास्तव
गीला सफ़ेद कपड़ा लपेट कर जिसे हम सौंप आए हैं अग्नि को इतनी जल्दी नहीं जाएगा वह गड़ी रहेगी महीनों तक उसकी याद पाँव में बबूल के काँटे की तरह और धीरे-धीरे बहता रहेगा दुख एक रौबदार आवाज़ अब कहीं सुनाई नहीं देगी एक हँसता हुआ चेहरा अब कभी दिखाई नहीं देगा घर की लिपी… Continue reading पिता के लिए शोकगीत-1 / एकांत श्रीवास्तव
दुख / एकांत श्रीवास्तव
दुख वह है जो आँसुओं के सूख जाने के बाद भी रहता है ढुलकता नहीं मगर मछली की आँख-सा रहता है डबडब जो नदी की रेत में अचानक चमकता है चमकीले पत्थर की तरह जब हम उसे भूल चुके होते हैं दुख वह है जिसमें घुलकर उजली हो जाती है हमारी मुस्कान जिसमें भीगकर मज़बूत… Continue reading दुख / एकांत श्रीवास्तव
बांग्ला देश / एकांत श्रीवास्तव
हमारे घर समुद्र में बह गए हमारी नावें समुद्र में डूब गईं हर जगह हर जगह हर जगह उफन रहा है समुद्र हमारे आँगन में समुद्र की झाग हमारे सपनों में समुद्र की रेत अभागे वृक्ष हैं हम बह गई जिनके जड़ों की मिट्टी कभी महामारी कभी तूफ़ान में कभी युद्ध कभी दंगे में कभी… Continue reading बांग्ला देश / एकांत श्रीवास्तव
बीज से फूल तक / एकांत श्रीवास्तव
आ गया भादों का पानी काँस के फूलों को दुलारता और चैत की सुलगती दुपहरी में पड़ी है मन की चट्टान एक दूब की हरियाली तक मयस्सर नहीं तपो इतना तपो ओ सूर्य कि फट जाए दरक जाए यह चट्टान कि रास्ता बन जाए अंकुर फूटने का जीवन बीज से फूल तक यात्रा बन जाए… Continue reading बीज से फूल तक / एकांत श्रीवास्तव