साँस तुम्हारी योजनगंधा, मेघदूत-सा मन मेरा है । दूध धुले हैं पाँव तुम्हारे अंग-अंग दिखती उबटन है मेरी जन्मकुंडली जिसमें लिखी हुई हर पल भटकन है कैसे चलूँ तुम्हारे द्वारे तुम रतनारी,हम कजरारे, कमलनाल-सी देह तुम्हारी देवदारु-सा तन मेरा है । साँझ तुम्हें प्यारी लगती है प्रात सुहाना फूलों वाला मुझे डँसा करता है हर… Continue reading मेघदूत-सा मन / ओम निश्चल
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मौसम ठहर जाए / ओम निश्चल
मेघ का, मल्हार का मौसम ठहर जाए, कुछ करो- यह प्यार का मौसम ठहर जाए । जल रहा मन आज सुधियों के अंगारों में, दर्द कुछ हल्का हुआ है इन फुहारों में, रुप का, अभिसार का मौसम ठहर जाए । कुछ करो- यह प्यार का मौसम ठहर जाए । बादलों की गंध में खोया हुआ… Continue reading मौसम ठहर जाए / ओम निश्चल
फिर घटाएं जामुनी छाने लगी हैं / ओम निश्चल
उठ गए डेरे यहॉं से धूप के डोलियॉं बरसात की आने लगी हैं। चल पड़ी हैं फिर हवाएँ कमल-वन से, घिर गए हैं मेघ नभ पर मनचले, शरबती मौसम नशीला हो रहा तप्त तावे-से तपिश के दिन ढले सुरमई आँचल गगन ने ढँक लिए फिर घटाएँ जामुनी छाने लगी हैं। आह, क्या कादम्बिेनी है, और… Continue reading फिर घटाएं जामुनी छाने लगी हैं / ओम निश्चल
गीतों के गॉंव / ओम निश्चल
फूलों के गाँव फसलों के गाँव आओ चलें गीतों के गाँव। महके कोई रह रह के फूल रेशम हुई राहों की धूल बहती हुई अल्हड़ नदी ढहते हुए यादों के कूल चंदा के गाँव सूरज के गाँव आओ चलें तारों के गाँव। पीपल के पात महुए के पात आँचल भरे हर पल सौगात सावन झरे… Continue reading गीतों के गॉंव / ओम निश्चल
तुम्हारे साथ / ओम निश्चल
तुम्हारे साथ प्रकृति की सैर तुम्हारे मन में नेह अछोर तुम्हारे बोल चपल चंचल किए जाते हैं भाव-विभोर तुम्हारी बॉंहों का आकाश खींचता हर पल अपने पास। तुम्हारे साथ बड़ा होना तुम्हारे संग खड़ा होना तुम्हारे होने भर से ही महकता घर का हर कोना तुम्हारे साथ बिताए पल कराते जीवन का आभास। तुम्हारा साथ… Continue reading तुम्हारे साथ / ओम निश्चल
दिन खनकता है / ओम निश्चल
दिन खनकता है सुबह से शाम कंगन-सा। खुल रहा मौसम हवा में गुनगुनाहट और नरमी धूप हल्के पॉंव करती खिड़कियों पर चहलकदमी खुशबुओं-सी याद ऑंखों में उतरती है तन महकता है सुबह से शाम चंदन-सा। मुँह अँधेरे छोड़ कर अपने बसेरे अब यहॉं तब वहॉं चिड़ियॉं टहलती हैं दीठ फेरे तितलियों-से क्षण पकड़ में पर… Continue reading दिन खनकता है / ओम निश्चल
भीतर एक नदी बहती है / ओम निश्चल
चंचल हिरनी बनी डोलती मन के वन में बाट जोहती, वैसे तो वह चुप रहती है भीतर एक नदी बहती है। सन्नाटे का मौन समझती इच्छाओं का मौन परखती सॉंसों के सरगम से निकले प्राणों का संगीत समझती तन्वंगी, कोकिलकंठी है पीड़ाओं की चिरसंगी है अपने निपट अकेलेपन के वैभव में वह खुश रहती है… Continue reading भीतर एक नदी बहती है / ओम निश्चल
यह वेला प्यार की / ओम निश्चल
पूजन आराधन की अर्चन नीराजन की स्वस्तिपूर्ण जीवन के सुखमय आवाहन की यह वेला सपनों के मोहक विश्राम की। यह वेला शाम की।। यह वेला जीत की यह वेला हार की यह वेला शब्दों के नख-शिख श्रृंगार की दिन भर की मेहनत के बेहतर परिणाम की। यह वेला शाम की।। यह वेला गीत की यह… Continue reading यह वेला प्यार की / ओम निश्चल
नया जनम ले रही है चाहत / ओम निश्चल
ये सर्द मौसम, ये शोख लम्हे फ़िजा में आती हुई सरसता, खनक-भरी ये हँसी कि जैसे क्षितिज में चमके हों मेघ सहसा । हुलस के आते हवा के झोंके धुएँ के फाहे रुई के धोखे कहीं पे सूरज बिलम गया है कोई तो है, जो है राह रोके, किसी के चेहरे का ये भरम है… Continue reading नया जनम ले रही है चाहत / ओम निश्चल
चारो तरफ़ सवाल / ओम निश्चल
चारो तरफ सवाल समय के भटके हुए चरण, कौन हल कर इतने सारे उलझे समीकरण । गश्त कर रहे नियमों के अनुशासन के घोड़े सत्ता के सुख में डूबी कुर्सियॉं कौन छोड़ें सिंहासन तक नहीं पहुँचती आदम की चीख़ें दु:शासन के हाथ हो रहा जिसका चीरहरण ।। चेहरों पर जिनके नक़ाब दिखता कुछ उन्हें नहीं… Continue reading चारो तरफ़ सवाल / ओम निश्चल