कुछ भी छोड़कर मत जाओ इस संसार में अपना नाम तक भी वे अपने शोधार्थियों के साथ कुछ ऐसा अनुचित करेंगे कि तुम्हारे नाम की संलिप्तता उनमें नज़र आएगी कुछ भी छोड़ना होता है जब परछाई को या आत्मा जैसी हवा को तो वह एक सूखे पत्ते को इस तरह उलट-पुलट कर देती है जैसे… Continue reading एक बार में सब कुछ / ऋतुराज
Tag: नज्म
माँ का दुख / ऋतुराज
कितना प्रामाणिक था उसका दुख लड़की को कहते वक़्त जिसे मानो उसने अपनी अंतिम पूंजी भी दे दी लड़की अभी सयानी थी इतनी भोली सरल कि उसे सुख का आभास तो होता था पर नहीं जानती थी दुख बाँचना पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश में कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की माँ ने कहा पानी… Continue reading माँ का दुख / ऋतुराज
दर्शन / ऋतुराज
आदमी के बनाए हुए दर्शन में दिपदिपाते हैं सर्वशक्तिमान उनकी साँवली बड़ी आँखों में कुछ प्रेम, कुछ उदारता, कुछ गर्वीलापन है भव्य वह भी कम नही है जो इंजीनियर है इस विराट वास्तुशिल्प का दलित की दृष्टि में कौतुक है दोनों पक्षों कि लिए यानी प्रभु की सत्ता और बुर्जुआ के उदात्त के लिए एक… Continue reading दर्शन / ऋतुराज
राजधानी में / ऋतुराज
अचानक सब कुछ हिलता हुआ थम गया है भव्य अश्वमेघ के संस्कार में घोड़ा ही बैठ गया पसरकर अब कहीं जाने से क्या लाभ ? तुम धरती स्वीकार करते हो विजित करते हो जनपद पर जनपद लेकिन अज्ञान,निर्धनता और बीमारी के ही तो राजा हो लौट रही हैं सुहागिन स्त्रियाँ गीत नहीं कोई किस्सा मज़ाक सुना… Continue reading राजधानी में / ऋतुराज
शरीर / ऋतुराज
सारे रहस्य का उद्घाटन हो चुका और तुम में अब भी उतनी ही तीव्र वेदना है आनंद के अंतिम उत्कर्ष की खोज के समय की वेदना असफल चेतना के निरवैयक्तिक स्पर्शों की वेदना आयु के उदास निर्बल मुख की विवशता की वेदना अभी उस प्रथम दिन के प्राण की स्मृति शेष है और बीच के… Continue reading शरीर / ऋतुराज
कन्यादान / ऋतुराज
कितना प्रामाणिक था उसका दुख लड़की को दान में देते वक़्त जैसे वही उसकी अंतिम पूंजी हो लड़की अभी सयानी नहीं थी अभी इतनी भोली सरल थी कि उसे सुख का आभास होता था लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की माँ ने कहा… Continue reading कन्यादान / ऋतुराज
लहर / ऋतुराज
द्वार के भीतर द्वार द्वार और द्वार और सबके अंत में एक नन्हीं मछली जिसे हवा की ज़रूरत है प्रत्येक द्वार में अकेलापन भरा है प्रत्येक द्वार में प्रेम का एक चिह्न है जिसे उल्टा पढ़ने पर मछली मछली नहीं रहती है आँख हो जाती है आँख आँख नहीं रहती है आँसू बनकर चल देती… Continue reading लहर / ऋतुराज
नए हाइकु / ऋतु पल्लवी
1- नभ में पंछी सागर – तन मीन कहाँ बसूँ मैं ? 2- कितना लूटा धन संपदा यश घर न मिला . 3-चंदन -साँझ रच बस गयी है मन खाली था. 4-स्याही से मत लिखो ,रचनाओं को मन उकेरो . 5-बच्चे को मत पढ़ाओ तुम ,मन उसका पढ़ो. 6-बात सबसे करते हैं ,मगर मन की नहीं… Continue reading नए हाइकु / ऋतु पल्लवी
औरत / ऋतु पल्लवी
पेचीदा, उलझी हुई राहों का सफ़र है कहीं बेवज़ह सहारा तो कहीं खौफ़नाक अकेलापन है कभी सख्त रूढि़यों की दीवार से बाहर की लड़ाई है… ..तो कभी घर की ही छत तले अस्तित्व की खोज है समझौतों की बुनियाद पर खड़ा ये सारा जीवन जैसे-जैसे अपने होने को घटाता है… दुनिया की नज़रों में बड़ा… Continue reading औरत / ऋतु पल्लवी
आप अपना… / ऋतु पल्लवी
आज मैंने आप अपना आईने में रख दिया है और आईने की सतह को पुरज़ोर स्वयं से ढक दिया है। कुछ पुराने हर्फ– दो-चार पन्ने जिन्हें मैंने रात की कालिख बुझाकर कभी लिखा था नयी आतिश जलाकर आज उनकी आतिशी से रात को रौशन किया है। आलों और दराजों से सब फाँसे खींची यादों के… Continue reading आप अपना… / ऋतु पल्लवी