नमक / आग्नेय

उसने कहा : तुम पृथ्वी का नमक बनो वह हाड़-माँस का पुतला बना रहा किसी ने सुई की नोंक चुभा दी करता रहा वह अरण्य-रुदन काल-रात्रि के भय से। किसी ने गुदगुदा दिया खिलखिलता रहा नंदन-वन जैसा। कभी किसी ने बैठा दिया रत्न-जड़ित सिंहासन पर अपनी बत्तीसी दिखा अकड़ गया कंकाल-सा किसी ने गिरा दिया,… Continue reading नमक / आग्नेय

दीमक-समय / आग्नेय

मैं दुधारी तलवार के लिए खड़ा हूँ समय के खिलाफ़ पंख वाले चींटे के पास जितना समय है उतना ही समय है दीमक-समय जीवन का सब कुछ चाट जाएगा गिद्ध-समय शरीर के सारे अंग भकोस लेगा दुधारी तलवार के लिए खड़ा रहेगा मेरा कंकाल क्यों खड़ा हूँ ? फिर भी मैं दुधारी तलवार लिए समय… Continue reading दीमक-समय / आग्नेय

सिर्फ़ प्रतीक्षा / आग्नेय

कहीं कोई सूखा पेड़ फिर हरा हो गया। कहीं कोई बादलों पर फिर इन्द्रधनुष लिख गया। कहीं कोई शाम का सूरज फिर डूब गया। हम भुतही पुलियों पर पतलूनों की जेबों में बादल, इन्द्रधनुष, डूबते सूरज भरे किसकी प्रतीक्षा करते हैं। अरे! वह हरा पेड़ तो फिर से सूख गया! अरे! वह लिखा इन्द्रधनुष फिर… Continue reading सिर्फ़ प्रतीक्षा / आग्नेय

उसके लिए / आग्नेय

रात में जिसे प्यार करता हूँ दिन में उससे ही घृणा करता हूँ अंधकार में ही खड़े रहें सब स्थगित रहे सूर्य का प्रकाश जब तक मैं बचा हूँ जानता हूँ रचा गया है सूर्य जीवन के लिए अंधकार भी तो रचा गया है प्रेम के लिए अंतत: मुझे अंधकार में उसके साथ उसके प्रेम… Continue reading उसके लिए / आग्नेय

शिखर पर बौने / आग्नेय

नहीं ले सका दीमक से उसका विध्वंस मधुमक्खियों से उनका रस तितलियों से उनका रंग चींटियों से उनका गौरव नहीं ले सका सर्वहारा से उनका साहस मित्रों से उनकी आत्मीयता मनुष्यों से उनका सम्मान अपनी दरिद्रता ओढे हुए सोता रहा विद्वानों की सभाओं में अपनी ही ग्लानि पोते हुए मुख पर दिखता रहा सबको सब… Continue reading शिखर पर बौने / आग्नेय

अंत में मैं ही हँसूंगा / आग्नेय

अंत में मैं ही हँसूंगा सर्वप्रथम मैं ही रहूंगा अन्तिम होने पर भी राख की ढेरी होते हुए भी ज्वालामुखी-सा धधकूंगा काफ़्का का किला होकर भी खुले हुए आँगन की तरह खुला रहूँगा गिलहरियोंके लिए उनकी चंचलता चिडियों के लिए उनकी प्रसन्नता चींटियों के लिए उनका अन्न नदियों के लिए उनका जल उदास मनुष्यों की… Continue reading अंत में मैं ही हँसूंगा / आग्नेय

कहाँ हैं वे मेरी कविताएँ / आग्नेय

कहाँ गई वे मेरी कविताएँ क़िताबों के पन्नों में दबा दी गई थीं जो मेरी कविताएँ जो छपने वाली थीं क़िताबों में जिनके लिए सन्तापों की गठरी सिर पर धरे भागता रहा इस नगर से उस नगर तक जिनके लिए हाथियों के पैरों तले कुचला जाता रहा हूँ चींटियों जैसा जिनके लिए मधुमक्खियों को छत्तों… Continue reading कहाँ हैं वे मेरी कविताएँ / आग्नेय

वे अब भी हँस रहे हैं / आग्नेय

अब नहीं चमकता है चन्द्रमा बुझ चुकी है शाम से जलने वाली आग घुप्प अंधेरे में वे सब हँस रहे हैं उनके साथ हँस रहे हैं उनके बच्चे, उनकी बकरियाँ उनके गदहे और उनके कुत्ते मेरे घर और उनके घुप्प अंधेरे के बीच पसरी है एक सड़क दस क़दमों में पार की जा सकने वाली… Continue reading वे अब भी हँस रहे हैं / आग्नेय

मेरा घर, उसका घर / आग्नेय

एक चिड़िया प्रतिदिन मेरे घर आती है जानता नहीं हूँ उसका नाम सिर्फ़ पहचानता हूँ उसको वह चहचहाती है देर तक ढूँढती है दाने : और फिर उड़ जाती है अपने घर की ओर पर उसका घर कहाँ है? घर है भीउसका या नहीं है उसका घर? यदि उसका घर है तब भी उसका घर… Continue reading मेरा घर, उसका घर / आग्नेय

युद्ध / आग्नेय

एक माँ सुनकर अपने बेटे की मृत्यु का समाचार, जला देती है दूसरी माँओं के बेटों को अपने फूस के घर में आए थे जो अतिथि बनकर उसके घर में